global warming: समुद्र से लेकर पहाड़ तक जलवायु संकट की मार, तो अब क्या करें आगे?
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 24, 2025 06:02 IST2025-06-24T06:02:18+5:302025-06-24T06:02:18+5:30
global warming: डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट कहती है कि समुद्री सतह का तापमान अब हर दशक में 0.24 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा है-ये ग्लोबल औसत (0.13 डिग्री सेल्सियस) से लगभग दोगुना है.

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निशांत सक्सेना
साल 2024 एशिया के लिए सिर्फ गर्म नहीं था, ये एक जलवायु चेतावनी की घंटी जैसा था- कभी धधकते शहर, कभी पिघलते ग्लेशियर, तो कभी डूबते खेत. वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएमओ) की ताजा रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन एशिया 2024’ बताती है कि एशिया अब पूरी दुनिया से लगभग दोगुनी रफ्तार से गरम हो रहा है और इसका असर हर किसी की जिंदगी पर पड़ रहा है. 2024 में एशिया का औसत तापमान 1991-2020 की तुलना में 1.04 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा. चीन, जापान, कोरिया, म्यांमार जैसे देशों में महीनों तक लगातार हीटवेव्स चलीं.
एशिया का पूरा समुद्री इलाका अब तेजी से गर्म हो रहा है. डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट कहती है कि समुद्री सतह का तापमान अब हर दशक में 0.24 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा है-ये ग्लोबल औसत (0.13 डिग्री सेल्सियस) से लगभग दोगुना है. 2024 में रिकॉर्डतोड़ ‘मरीन हीटवेव्स’ आईं. अगस्त-सितंबर के दौरान, करीब 15 मिलियन वर्ग किलोमीटर समुद्र इस हीटवेव से प्रभावित हुआ- यानी पूरी धरती के महासागरीय क्षेत्र का 10 प्रतिशत हिस्सा. इससे मछलियों की ब्रीडिंग, समुद्री जीव-जंतु और तटीय आजीविकाओं पर सीधा असर पड़ा.
छोटे द्वीपीय देशों और भारत के तटीय क्षेत्रों के लिए ये एक नया खतरा बन चुका है. ‘तीसरा ध्रुव’ कहा जाने वाला हाई माउंटेन एशिया- जो तिब्बती पठार और हिमालय क्षेत्र में फैला है- अब तेजी से अपनी बर्फ खो रहा है. 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार 24 में से 23 ग्लेशियरों का द्रव्यमान घटा. मध्य हिमालय और तियन शान की चोटियों पर कम बर्फबारी और अत्यधिक गर्मी ने ग्लेशियरों को खोखला बना दिया है.
उरुमची ग्लेशियर नंबर 1, जो 1959 से मॉनिटर किया जा रहा है, उसने अब तक की सबसे बड़ी बर्फीली गिरावट दर्ज की. ग्लेशियरों के पिघलने से भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं. इसका सीधा असर पानी की सुरक्षा और लाखों लोगों की जिंदगी पर पड़ता है जो इन नदियों पर निर्भर हैं. डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट बताती है कि 2024 में कहीं सूखा तो कहीं भीषण बाढ़ ने जिंदगी को उलट-पलट कर दिया.
संदेश साफ है: जलवायु बदल रही है, तैयारी ही रक्षा है. डब्ल्यूएमओ की महासचिव सेलेस्टे साओलो ने कहा, ‘मौसम अब सिर्फ मौसम नहीं रहा, ये लोगों की आजीविका, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा का सवाल बन गया है.’ रिपोर्ट सरकारों के लिए एक सीधा संदेश है: जलवायु संकट को आंकड़ों से नहीं, तैयारी और नीतियों से जवाब देना होगा.
तो अब क्या करें आगे?
गांव-शहरों में लोकल वेदर वार्निंग सिस्टम्स को मजबूत करना होगा. जलवायु शिक्षा और तैयारी को स्कूलों से लेकर पंचायतों तक पहुंचाना होगा. और सबसे अहम, स्थानीय कहानियों के जरिये लोगों को जोड़ना होगा- क्योंकि आंकड़े डराते हैं, लेकिन कहानियां समझाती हैं.