विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: भ्रष्टाचार से लड़ने वालों का देना होगा साथ
By विश्वनाथ सचदेव | Published: September 12, 2019 04:35 PM2019-09-12T16:35:55+5:302019-09-12T16:35:55+5:30
हम यह भूल जाते हैं कि चुटकी भर नमक से महात्मा गांधी ने पूरे अंग्रेजी साम्राज्य को चुनौती दी थी- और उस ताकत को हराया था, जिसके साम्राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता था. आज वही नमक एक चुनौती बनकर हमारे सामने खड़ा है- हमसे करने वाले सभी लोग अपने “प्रभाव और “हैसियत” के बल पर साफ बच निकलने की कोशिश में लगे हैं. इस तरह की हर कोशिश को नाकामयाब करके ही भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को किसी सार्थक परिणाम तक पहुंचाया जा सकता है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के एक गांव की घटना है यह. कस्बे के एक पत्रकार ने गांव के स्कूल में “मिड डे मील’' योजना के अंतर्गत बच्चों को दी जाने वाली नमक और रोटी का एक वीडियो तैयार करके सोशल मीडिया पर डाल दिया था. शोर तो मचना था, मचा भी. अरबों रुपयों की यह मिड डे मील योजना बच्चों के स्वास्थ्य और उनकी शिक्षा को ध्यान में रख कर चलाई जा रही है. नियम से पौष्टिक भोजन दिए जाने के दावे सरकारें लगातार करती रही हैं. यह पहली बार नहीं है जब इन दावों पर दिखाने वाला पत्रकार अपराधी ठहराया जाता है या नहीं, पर यह सारा किस्सा व्यवस्था में लगे दीमक को ही उजागर कर रहा है.
बहरहाल, इस चुटकीभर नमक वाली घटना ने मुझे प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी “नमक का दरोगा'’ की याद दिला दी थी. उस कहानी में नमक के दरोगा की ईमानदारी का चित्रण किया गया है और यह भी पर चढ़कर बोल रहा है. संतरी से लेकर मंत्री तक भ्रष्टाचार के शिकार होते दिख रहे हैं. बड़े से बड़े व्यक्ति पर भ्रष्टाचार का आरोप लगना तो जैसे एक आम बात बन गई है और बड़ों-बड़ों को भ्रष्टाचार का अपराधी घोषित होते देखकर आश्चर्य नहीं होता.
बच्चों को ‘मिड डे मील’ में सिर्फ नमक-रोटी खिलाकर संबंधित व्यक्ति ने कितना पैसा कमा लिया सा लगता हो, पर हकीकत यह है कि चुटकी भर नमक मानवीय संवेदनाओं को चुनौती दे रहा है. मिर्जापुर के उस स्कूल में बच्चों की थाली में पड़ा चुटकी भर नमक पूरे समाज की संवेदना और मानसिकता पर सवालिया निशान लगा रहा है.
हम यह भूल जाते हैं कि चुटकी भर नमक से महात्मा गांधी ने पूरे अंग्रेजी साम्राज्य को चुनौती दी थी- और उस ताकत को हराया था, जिसके साम्राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता था. आज वही नमक एक चुनौती बनकर हमारे सामने खड़ा है- हमसे करने वाले सभी लोग अपने “प्रभाव और “हैसियत” के बल पर साफ बच निकलने की कोशिश में लगे हैं. इस तरह की हर कोशिश को नाकामयाब करके ही भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को किसी सार्थक परिणाम तक पहुंचाया जा सकता है.
सवाल सिर्फ एक स्कूल में चल रही गड़बड़ी का नहीं है, सवाल जीवन के हर क्षेत्र में फैले-पनपते भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का है. समाज और शासन का ताकतवर तबका अपने को उजला दिखाने की हर संभव कोशिश करता है.
हर अपराधी पर सवालिया निशान लग रहे हैं, पर शायद पूछ रहा है, कुछ गैरत बची भी है कि अपनी सारी ताकत लगाकर स्वयं को यह पहली बार है जब सोशल नहीं हममें? निरपराध बताना चाहता है और यह मीडिया पर वायरल हुआ ऐसा जिस तरह इस नमक-रोटी वाले.
इस ताकत के सामने मिड डे मील की अमानत में है. पर, इसका कारण सिर्फ मिड डे शिकार बनाया जा रहा है, वह सामान्य व्यक्ति अक्सर स्वयं को खयानत करने वाले सभी. मील की एक गंभीर खामी ही नहीं है, भ्रष्टाचार-मुक्त भारत बनाने के सहारे असहाय पाता है और अक्सर तो वह लोग अपने ‘प्रभाव’ और चर्चा का विषय है कि भ्रष्टाचार बताया गया है कि भले ही ‘ऊपर की होगा, पता नहीं, पर यह सबको पता. दावों की पोल खोलकर रख देता है...