विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: देश में भयमुक्त वातावरण निर्मित करना सभी का दायित्व

By विश्वनाथ सचदेव | Published: September 7, 2020 09:23 PM2020-09-07T21:23:01+5:302020-09-07T21:23:01+5:30

विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने भय-मुक्त सवेरे के आलोक में अपने देश के जगने के बात कही थी. गांधी ने भी भयमुक्तता को स्वाधीनता की एक शर्त बताया था.

Vishwanath Sachdev blog: Creating fear-free environment in the country | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: देश में भयमुक्त वातावरण निर्मित करना सभी का दायित्व

विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: देश में भयमुक्त वातावरण निर्मित करना सभी का दायित्व

आज से ठीक 103 साल पहले, वर्ष 1917 में गांधी ने बिहार के चंपारण में तत्कालीन ब्रिटिश कानूनों को चुनौती दी थी. जब उन्हें तत्काल चंपारण छोड़ने का आदेश दिया गया था तो उन्होंने यह कहते हुए आदेश मानने से इंकार कर दिया था कि वे उस कानून को अनुचित मानते हैं. उन्होंने सरकारी आदेश को नहीं, कानून को चुनौती दी थी. उन्होंने कहा था, कोई आवश्यक नहीं कि हर कानून उचित ही हो. उन्होंने यह भी कहा था कि अनुचित नियमों का विरोध करना व्यक्ति का अधिकार ही नहीं, कर्तव्य भी है. वे अपनी कर्तव्य- पूर्ति की जिद पर अड़े रहे और अदालत को उन्हें रिहा करना पड़ा. यह गांधी के सत्याग्रह की वह जीत थी जिसने हमारी स्वतंत्रता की लड़ाई को नई दिशा देकर एक निर्णायक दौर में पहुंचा दिया था. लाखों-करोड़ों की प्रेरणा बना था गांधी का वह सत्याग्रह और आज भी अनुचित के खिलाफ लड़ी जाने वाली हर लड़ाई को एक कर्तव्य-पूर्ति के रूप में समझने-स्वीकारने वाला हर ‘सिपाही’ गांधी के उस प्रकरण से प्रेरणा प्राप्त करता है. देश के वरिष्ठ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने जब देश की सर्वोच्च अदालत में यह कहा था कि अभिव्यक्ति की आजादी उनका अधिकार है, पर इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण उसके खिलाफ खड़ा होना उनका कर्तव्य है, जिसे वह गलत मानते हैं, तो वह गांधी से मिली प्रेरणा का ही उदाहरण रख रहे थे.

प्रशांत भूषण को एक रुपया दंड

सर्वोच्च अदालत ने उनके तर्क को नहीं स्वीकारा और उन्हें अदालत की अवमानना का दोषी ठहराते हुए सजा सुना दी- या तो एक रुपया दंड भरो या फिर तीन महीने की जेल और तीन साल तक वकालत न कर पाने की सजा भुगतो. प्रशांत भूषण ने ‘अदालत के आदेश का सम्मान करते हुए’ एक रुपए का दंड भरना स्वीकारा. लेकिन अदालत में पुनर्विचार याचिका प्रस्तुत करने का अपना अधिकार उन्होंने सुरक्षित रखा. इससे उठे मुद्दे निश्चित रूप से जागरूक नागरिकों की चिंता और चिंतन का विषय बनने चाहिए.

इस सारे प्रकरण में एक और भी महत्वपूर्ण बात उभर कर सामने आई है. प्रशांत भूषण ने अपनी प्रतिक्रिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और इस स्वतंत्रता की रक्षा के प्रति नागरिक के कर्तव्यों का भी हवाला दिया है. वे गलत के खिलाफ खड़े होने को अपना कर्तव्य मानते हैं. यह सच भी है. जनतंत्र की सफलता और सार्थकता नागरिक की जागरूकता और कर्तव्य-परायणता पर निर्भर करती है. यदि कहीं कुछ अनुचित अथवा गलत हो रहा है तो उसके खिलाफ आवाज उठाना प्रबुद्ध नागरिक का कर्तव्य है. इसी संदर्भ में जनतंत्र के चारों पायों - विधायिका, कार्यपालिका न्यायपालिका और खबरपालिका- की ईमानदारी की चर्चा होती है. जरूरी है कि चारों आधार मजबूत और निष्पक्ष हों ही नहीं, दिखें भी.

कार्यपालिका में उठते हैं भ्रष्टाचार के मुद्दे

इसका मतलब है उन्हें अपने कहे-किए के प्रति लगातार सावधान रहना होता है. इसी संदर्भ में विधायिका में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले तत्वों की बात उठती है, कार्यपालिका में भ्रष्टाचार के मुद्दे उठते हैं, न्यायपालिका से अपेक्षा की जाती है कि वह उस पर उंगली उठाने का अवसर किसी को न दे. जहां तक खबरपालिका यानी मीडिया का सवाल है, उसके आचरण पर भी इन दिनों काफी चर्चा हो रही है. मीडिया वालों के पास यह कहने का अवसर भी है कि वे अपना नियंत्रण खुद करते हैं, पर विधायिका या न्यायपालिका को तो हर पल सावधानी बरतनी ही होगी. और हर जागरूक नागरिक का कर्तव्य है कि वह गलत को गलत कहने के अपने कर्तव्य पालन के प्रति सावधान रहे.

अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की बात हमारे यहां अक्सर होती है, पर इस अधिकार के साथ जुड़े कर्तव्यों के प्रति हम अक्सर असावधानी बरतते हैं. सच तो यह है कि जो गलत लगता है उसे गलत कहने के अपने कर्तव्य के बारे में हम न सोचते हैं, न सोचना चाहते हैं. प्रशांत भूषण ने न्यायपालिका की कथित अवमानना के संदर्भ में इस मुद्दे को उठाया है. आवश्यकता यह है कि हममें से हर एक इस मुद्दे पर विचार करे. जैसे आजादी की रक्षा के लिए खतरे उठाने होते हैं, वैसे ही स्वतंत्रता और जनतंत्र के मूल्यों की रक्षा के लिए साहस की आवश्यकता होती है. विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने भय-मुक्त सवेरे के आलोक में अपने देश के जगने के बात कही थी. गांधी ने भी भयमुक्तता को स्वाधीनता की एक शर्त बताया था. जनतंत्र का आधार कहलाने वाले स्तंभों का भी यह दायित्व बनता है कि वे देश में ऐसा वातावरण बनाने में मददगार हों जिसमें नागरिक किसी भी प्रकार के भय से मुक्त होकर अपनी बात कह सके.

Web Title: Vishwanath Sachdev blog: Creating fear-free environment in the country

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