विजय दर्डा का ब्लॉग: योग और उद्योग ला सकते हैं जीवन में खुशहाली

By विजय दर्डा | Published: June 22, 2020 06:07 AM2020-06-22T06:07:52+5:302020-06-22T06:07:52+5:30

Vijay Darda's Blog: Yoga and Industry Can Bring Prosperity in Life | विजय दर्डा का ब्लॉग: योग और उद्योग ला सकते हैं जीवन में खुशहाली

विश्व भर में 21 जून को योग दिवस मनाया गया.

Highlightsयोग किसी धर्म का हिस्सा नहीं है. यह सबके लिए है और सभी को इसे अपनाना चाहिए. योग हमारी जिंदगी में शामिल हो तो हमारे शरीर में विषाणुओं से लड़ने की क्षमता विकसित होगी. यो

पूरे विश्व ने 21 जून को योग दिवस मनाया. इसी संदर्भ में लोकमत समूह द्वारा आयोजित वेबिनार में  पहले आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक और विश्व में शांति तथा भाईचारे के लिए अग्रदूत की भूमिका निभाने वाले श्री श्री रविशंकर जी और उसके बाद भारतीय योग के माध्यम से सारे विश्व को स्वस्थ बनाने का बीड़ा उठाने वाले योग गुरु स्वामी रामदेव जी से लंबी बातचीत हुई. मैंने उन दोनों से पूछा कि योग का महत्व वैज्ञानिक रूप से स्थापित है और यूरोप तथा विश्व के अन्य देशों में इसकी पढ़ाई हो रही है तो हमारे देश में इसे पाठ्यक्रम में शामिल क्यों नहीं किया जा रहा है? क्यों नहीं तीन साल की उम्र से ही बच्चों को योग सिखाया जाए? दिक्कतें क्या हैं?

दोनों ने कहा कि योग हमारी जिंदगी का हिस्सा होना ही चाहिए.  श्री श्री ने तो यह भी कहा कि स्कूल में तो योग हो ही, सभी कार्यस्थलों पर भी योग अनिवार्य किया जाना चाहिए. अपने कार्यस्थल पर व्यक्ति कितने तनाव में रहता है! इन सभी स्थलों पर अभी तक योग की व्यवस्था हो जानी चाहिए थी. इतनी देर क्यों हो गई? स्वामी रामदेव जी ने बड़ी अच्छी बात कही कि योग किसी धर्म का हिस्सा नहीं है. यह सबके लिए है और सभी को इसे अपनाना चाहिए. घर-घर में यदि योग हो तो इससे उत्तम कुछ और हो ही नहीं सकता.  

बातचीत में योग के साथ उद्योग शब्द भी उभरकर आया क्योंकि स्वामी रामदेव जी ने योग के साथ उद्योग में भी अपनी धाक जमाई है. राष्ट्रीय तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आयुव्रेदिक उत्पाद के क्षेत्र में आने के लिए बाध्य करने का श्रेय उन्हें ही जाता है. योग और उद्योग दोनों ही ऐसे मार्ग हैं जिन पर चल कर स्वास्थ्य की समृद्घि के साथ ही हमारा देश आर्थिक आत्मनिर्भरता भी प्राप्त कर सकता है. दिक्कत यह है कि आज न केवल हमारा देश बल्कि दुनिया के अन्य देश भी स्वास्थ्य के मामले में लगातार कमजोर होते जा रहे हैं (या फिर जानबूझकर कमजोर किए जा रहे हैं). प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो रही है जिसका नतीजा है कि महामारी के इस दौर में कोविड-19 ने लाखों लोगों की जान ले ली. जिनकी प्रतिरोधक क्षमता ठीक थी, वे स्वस्थ हो गए.  कभी सार्स, कभी चिकनगुनिया तो कभी स्वाइन फ्लू का शिकार लोग होते रहते हैं और होते रहेंगे. मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जो महीने में जितने का किराना नहीं खरीदते उससे ज्यादा दवाइयों पर खर्च करते हैं.

यदि योग हमारी जिंदगी में शामिल हो तो हमारे शरीर में विषाणुओं से लड़ने की क्षमता  विकसित होगी.  योग और आयुव्रेद व्यक्ति को स्वस्थ बनाए रखने में सक्षम हैं लेकिन दुर्भाग्य है कि अंग्रेजी दवाइयों का अंतरराष्ट्रीय नेक्सस इतना शक्तिशाली है कि उसने आयुव्रेद, यूनानी तथा होम्योपैथी को दबोच लिया है. इन दवाई कंपनियों के दबाव के सामने विश्व स्वास्थ्य संगठन गूंगी गुड़िया की तरह है. 2018 के आंकड़े बताते हैं कि दवाइयों का सालाना कारोबार पूरी दुनिया में करीब 91 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा पहुंच गया है और सालाना वृद्घि दर 6.3 प्रतिशत है. एक रुपए की लागत वाली दवाई सौ रुपए में बेची जा रही है. मुङो तो लगता है कि ऐसा नेक्सस काम कर रहा है जो लोगों को जंक फूड की तरफ आकर्षित करता है ताकि अस्वास्थ्यकर खाना खाकर लोग बीमार पड़ें, फिर दवाइयां खाएं और मेडिकल इंश्योरेंस के जाल में भी फंसें!

सवाल है कि चीन ने अपनी चिकित्सा पद्धति को विकसित कर लिया है तो हम अपनी देशी चिकित्सा पद्धति को क्यों नहीं विकसित कर सकते? योग और आयुर्वेद की हमारी विरासत बहुत पुरानी है. हमने दुनिया को योग और प्राणायाम सिखाया है. ये वो माध्यम हैं जिन्हें हम पूरी तरह अपना लें तो स्वास्थ्य पर होने वाला लाखों करोड़ों का खर्च बच सकता है जिसका उपयोग समाज को मजबूत करने में हो सकता है. आखिर यह पैसा टैक्स पेयर्स का ही तो है!

स्वामी रामदेव जी से पहले हमारे देश के योगाचार्य बेल्लुर कृष्णमाचार सुन्दरराजा  आयंगर का  नाम पूरी दुनिया में बड़ी श्रद्धा के साथ लिया जाता रहा है. प्रथम विश्वयुद्ध के ठीक बाद वे दुनिया के लिए भले-चंगे रहने का संदेश लेकर आए. आयंगर योग के नाम से उन्होंने एक नई विधा स्थापित की. गिनीज बुक में 98 साल की सबसे बुजुर्ग योग टीचर के रूप में दर्ज अमेरिकन योग मास्टर ताओ पोचरेन लिंच ने भी आयंगर जी से योग सीखा था. आयंगर जी को चीन ने भी अपने देश का सर्वोच्च सम्मान दिया था. योग के महत्व को समझते हुए 1958 में  बेल्जियम की राजमाता ने उन्हें आमंत्रित किया और उनसे शीर्षासन सीखा. जे कृष्णमूर्ति, जयप्रकाश नारायण, सचिन तेंदुलकर जैसे और भी बहुत से लोग पद्म विभूषण आयंगर जी के शिष्य रहे हैं.

हमारे यहां मुंगेर में बिहार स्कूल ऑफ योगा का काम अद्वितीय है. इसके अलावा अन्य कई स्थानों पर भी योग के पुराने पीठ हैं. ऋषिकेश तो योगा कैपिटल के रूप में विख्यात हो चुका है. ऐसी विरासत को हम कितना आगे बढ़ा पा रहे हैं, यह हमें सोचना होगा. योग हमारे जीवन मूल्यों को भी संस्कारित करता है. हमारे यहां अप्पा साहब धर्माधिकारी, प्रहलाद पई और अन्ना साहब मोरे जैसे लोगों ने समाज में संस्कार को गहराई तक रोपने का काम किया है. हमें उनकी विरासत को भी संभालना चाहिए. हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं योग करते हैं. हमारे पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री पंडित नेहरू, मोरारजी देसाई, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी भी योग करते थे. इसके बावजूद योग को राजाश्रय नहीं मिलना आश्चर्यजनक है! स्वामी रामदेव जी से मैंने पूछा कि ऐसा क्यों? उनका जवाब था- निर्णय करने में मोदी जी थोड़ा ङिाझक जाते हैं.  

बहरहाल, अभी हम लोग फिर से स्वदेशी की बात जोर शोर से कर रहे हैं. चीन के सामान के बहिष्कार की बात कर रहे हैं. मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया की बात कर रहे हैं लेकिन क्या हमारे यहां ऐसी व्यवस्था है कि हम चीन और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का सामना कर पाएं? हमारे देश में कुछ उद्योग घराने हैं जिनकी साख अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है. निश्चित ही पतंजलि, डाबर, विको जैसी कंपनियां यशस्वी रूप से संघर्ष कर रही हैं लेकिन यह संघर्ष बहुत लंबा है.

अपने इस कॉलम में मैंने उद्योगों को लेकर कई बार लिखा है कि हमें अपनी नीतियों में सहजता लानी होगी तभी देश के उद्योग विकसित हो पाएंगे और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सामने टिक पाएंगे. हमारे अपने उद्योग जब पनपेंगे तभी राष्ट्र आत्मनिर्भर होगा. मौजूदा दौर की हकीकत यही है कि योग और उद्योग ही हमें दुनिया के स्तर पर शक्तिशाली बना सकते हैं.  इसलिए दवाई की आदत से पहले बचपन में ही योग की लत लग जानी चाहिए ताकि वह कभी छूटे ही नहीं. ..तो योग और देशी उद्योग के प्रोडक्ट को अपनी जिंदगी काहिस्सा बनाइए, जीवन खुशहाल बनेगा.

Web Title: Vijay Darda's Blog: Yoga and Industry Can Bring Prosperity in Life

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