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विजय दर्डा का ब्लॉग: धर्म के नाम पर मोहब्बत को मत कुचलिए

By विजय दर्डा | Updated: May 9, 2022 08:05 IST

जिस देश की बुनियाद में सहिष्णुता हो, जिस देश ने ‘सर्वे  भवंतु सुखिन:’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का सूत्र रचा वहां नफरत कैसे पनप सकती है. सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव के विष पी लेने की पौराणिक मान्यता वाले देश में लोग दूसरों के प्रति इतने निर्दयी क्यों हो गए?

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दो घटनाओं को लेकर मैं बहुत सोच में उलझा हुआ हूं. एक घटना हैदराबाद की है जहां एक हिंदू लड़के नागार्जुन ने अपनी खास दोस्त सुल्ताना से शादी कर ली. लड़की का परिवार और समुदाय इसे बर्दाश्त नहीं कर पाया और नागार्जुन की हत्या कर दी गई. दूसरी घटना हजार किलोमीटर दूर गुजरात में हुई जहां एक हिंदू परिवार में पूजा-पाठ चल रहा था. लाउडस्पीकर की ऊंची आवाज हिंदू पड़ोसी को सहन नहीं हुई, उन्होंने पूजा-पाठ कर रहे दो हिंदुओं पर हमला कर दिया.

पहली घटना को स्वाभाविक तौर पर सांप्रदायिक रंग दे दिया गया. ऐसे मामलों में पहले भी ऐसा ही होता रहा है. चाहे हिंदू लड़का मुसलमान लड़की से या मुसलमान लड़का हिंदू लड़की से शादी करे, दोनों ही समाज इसे अपने धर्म पर हमला मान लेते हैं. नतीजा खौफनाक होता है. लेकिन यहां दूसरी घटना में तो हिंदुओं ने हिंदुओं पर हमला किया! वह भी पूजा-पाठ में लाउडस्पीकर की आवाज ऊंची को लेकर! 

दोनों घटनाओं के कारणों की तलाश करें तो साफ समझ में आता है कि दोनों घटनाओं का कारण केवल एक है और वह है असहिष्णुता! मैं इस बात को लेकर परेशान हूं कि जिस देश की बुनियाद में सहिष्णुता हो, जिस देश ने ‘सर्वे  भवंतु सुखिन:’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का सूत्र रचा, जिस देश ने आर्यों से लेकर शक और हूण तक को आत्मसात कर लिया, जहां भगवान श्रीराम से लेकर भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद तक ने सहिष्णुता का संदेश दिया वहां इतनी असहिष्णुता कहां से आ गई? 

सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव के विष पी लेने की पौराणिक मान्यता वाले देश में लोग दूसरों के प्रति इतने निर्दयी क्यों हो गए? हम गीता, कुरान-ए-पाक, गुरु ग्रंथ साहिब या बाइबिल की बात करें, कोई भी धर्म असहिष्णु होना नहीं सिखाता तो फिर हालात इतने गंभीर क्यों हो गए? मुझे लगता है कि धर्म के नाम पर रोटी सेंकने वालों ने ऐसा कुचक्र रचा कि हमारी सभ्य संस्कृति शिकार हो गई. 

जीवन से बड़ा धर्म हो गया और धर्म के नाम पर जान लेना आम बात हो गई. बाबासाहब आंबेडकर ने स्पष्ट कहा था कि सामाजिक विषमता को मिटाना है, समरसता लाना है और कुरीतियों को हटाना है तो प्रेम विवाह को बढ़ावा देना होगा. मैं आपको बताना चाहूंगा कि अब तो विज्ञान भी यह साबित कर चुका है कि प्यार प्राकृतिक तत्व है. उसे हमें बनाने वाले ने ही रचा है. हमारे शरीर में डोपामाइन और नॉरएपिनेफ्रीन नाम के हार्मोन प्यार पैदा करते हैं. यह कितना बड़ा अधर्म है कि एक-दूसरे को पसंद करने वाले दो युवाओं ने शादी कर ली तो उन्हें मौत के घाट उतार दिया? 

प्यार करना कोई जुर्म है क्या? धर्म की रोटी सेंकने वालो, तुम्हें किसने ये अधिकार दिया? मैंने समय-समय पर विभिन्न मान्यताओं के युवाओं से बातें की हैं. कोई भी युवा इस तरह की बातों को तरजीह नहीं देता है लेकिन धर्म के नाम पर उसे उकसाया जाता है. धर्म के ठेकेदारों के बारे में फिल्म पीके में आमिर खान ने बहुत सटीक कहा था कि जिस भगवान ने ये जहान बनाया, उसके छोटे से गोले का तुम छोटा सा आदमी भगवान की रक्षा करेगा? अपने भगवान की रक्षा करना बंद करो नहीं तो इस गोला में इंसान नहीं सिर्फ जूता रह जाएगा...!  

...और ये लाउडस्पीकर कोई विषय है क्या? विषय तो गरीबी मिटाना, सबको रोटी, कपड़ा और मकान देना, सबके लिए स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करना या सबको रोजगार देना होना चाहिए. ...कर्कश आवाज से लोगों को तकलीफ देना लाउडस्पीकर का काम नहीं है. लाउडस्पीकर से तो गरीबों, किसानों, शोषितों और वंचितों की आवाज बुलंद होनी चाहिए! इसे धर्म में क्यों डुबो रहे हैं? झगड़ा इस बात का है कि हमारे लाउडस्पीकर से तुम्हारे लाउडस्पीकर की आवाज ऊंची कैसे? 

बंद करिए इस तरह के बकवास विषय अन्यथा देश गलत राह पर चला जाएगा. मुझे तो बार-बार अपना बचपन याद आता है. हम छोटे थे. अजान होती थी तो गांव के लोग उठ कर काम में लग जाते थे. उस वक्त भावना ही नहीं थी कि अजान क्यों करते हैं. किसी गांव में दस तो किसी गांव में बीस और कहीं मुसलमानों के 100 घर होते थे. ईद  और दिवाली पर सारा गांव खुशियों से भर जाता था. सभी त्यौहार, सभी समुदायों के लोग मिलकर मनाते थे! लेकिन वातावरण को इतना गंदा कर दिया गया है कि धर्म के नाम पर खून बहने में देर नहीं लगती.

वाकई हालात खराब हैं. देश के सामने धार्मिक उन्माद की गहरी खाई है. ...और जो लोग यह कहते हैं कि ऐसे उन्माद पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ क्यों नहीं बोलते तो मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या पीएम का इतना ही काम रह गया है? वे धर्म की रक्षा करें या फिर देश को विकास की राह पर ले जाएं? उन्हें क्या पता कि कौन सा संगठन क्या उत्पात मचाने की तैयारी कर रहा है? परिवार का कोई भी मुखिया अपने घर को तबाह करेगा क्या? मोदीजी के समय में तो मुस्लिम देशों से भारत के रिश्ते मजबूत हुए हैं. कई मुस्लिम देशों में मंदिर भी बने हैं.

जब कोई मुझसे धर्म को लेकर उतावलेपन की बात करता है तो मैं उससे पूछता हूं कि हम किसी समुदाय को इस देश से वंचित कर सकते हैं क्या? बिल्कुल नहीं कर सकते. तो फिर साथ-साथ प्रेम और एक-दूसरे के प्रति सम्मान भाव के साथ क्यों नहीं रह सकते? जरा सोचिए कि एक समुदाय यदि टार्गेट पर हो तो उस समुदाय के वैज्ञानिकों, वकीलों, उद्योगपतियों, विद्यार्थियों और प्रबुद्ध लोगों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? और ध्यान रखिए कि आतंकवादियों की क्रूर हरकतों के लिए किसी समुदाय को शंका के घेरे में खड़ा कर देना नाइंसाफी है. ध्यान रखिए कि जो बड़ा होता है उसकी जिम्मेदारी बड़ी होती है.

धर्म के नाम पर लड़ने में जो ऊर्जा और शक्ति आप बर्बाद कर रहे हैं उसे कुरीतियों को दूर करने में खर्च कीजिए. यह देश अभी भी अंधश्रद्धा का शिकार है. तंत्र के नाम पर बच्चों की बलि चढ़ा देने, जादू-टोने के नाम पर किसी महिला को डायन करार देने की घटनाएं अभी भी हो रही हैं. तो...इसे दूर करिए न!

टॅग्स :हैदराबादगुजरात
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