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विजय दर्डा का ब्लॉग: महामारी के दौरान क्यों बेकाबू हो गई महंगाई?

By विजय दर्डा | Updated: June 7, 2021 10:58 IST

केंद्र सरकार के स्तर पर महंगाई को लेकर चिंता जरूर दिखाई गई है लेकिन वह चिंता धरातल पर उतरती हुई बिल्कुल ही नहीं दिख रही है. शासन ने वास्तव में यह जानने की कोशिश ही नहीं की है कि महंगाई से आम आदमी का क्या हाल है?

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ऐसा शायद ही कोई घर होगा जिसकी आय को कोरोना ने प्रभावित नहीं किया होगा! क्या बड़ा और क्या छोटा? हर कोई परेशान है. करोड़ों लोगों की आजीविका प्रभावित हुई. किसी की नौकरी चली गई तो किसी का धंधा चौपट हो गया. बहुत से लोग तो कर्ज तले दबे पड़े हैं. वे ईएमआई नहीं भर पा रहे हैं. 

ऐसे में बढ़ती महंगाई ने उन्हें और तबाह कर दिया है. हर घर का बजट गड़बड़ा गया है. दुखद यह है कि किसी भी स्तर पर इस महंगाई की नकेल कसने की कोशिश दिखाई नहीं दे रही है.

पिछले साल जब कोरोना का प्रकोप बढ़ने लगा और लॉकडाउन की अवधि भी बढ़ने लगी तो बाजार के विशेषज्ञों ने स्पष्ट रूप से सरकार को चेतावनी दे दी थी कि यदि लंबे समय तक हालात ऐसे ही रहे तो आम आदमी को महंगाई मार डालेगी. आज वही स्थिति आ पहुंची है. जो लोग सामान खरीदने बाजार जाते हैं, उन्हें अंदाजा है कि कीमतें किस कदर बढ़ी हैं. 

क्या सरकार को यह पता नहीं है कि खुदरा बाजार में खाने के तेल की कीमतें पिछले दस साल में सबसे ज्यादा चल रही हैं. पिछले एक साल में ही खाद्य तेलों की कीमतें करीब 40 प्रतिशत तक पहुंच चुकी हैं. मई 2020 में सरसों तेल की कीमत खुदरा बाजार में 115 से 120 रुपए प्रति लीटर थी जो इस समय 170 से 175 रुपए लीटर तक जा पहुंची है. 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मई 2010 में सरसों तेल की कीमत 63 रुपए प्रति लीटर थी. दूसरे खाद्य तेलों की भी अभी  यही हालत है. पिछले एक साल में पाम ऑयल की कीमतों में 45 से 50 प्रतिशत का उछाल आया है. जानकार कह रहे हैं कि पिछले तीन-चार महीनों में कीमतें ज्यादा बढ़ी हैं.

खुदरा बाजार में दाल की कीमतें भी प्रति किलो 115 से 120 रुपए तक पहुंच चुकी हैं. आश्चर्यजनक यह है कि आप थोक व्यापारियों से बात करें तो वे बताएंगे कि थोक में कीमतें उतनी नहीं बढ़ी हैं जितना खुदरा बाजार में दिख रहा है. तो सवाल पैदा होता है कि कहीं कालाबाजारी तो नहीं हो रही है या लॉकडाउन के नाम पर ग्राहकों को लूटा तो नहीं जा रहा है? 

कारण जो भी हो, शासन की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इस पर नजर रखे. दुर्भाग्य की बात है कि इस दिशा में कहीं कोई सार्थक कदम उठता नहीं दिख रहा है. केंद्र सरकार के स्तर पर महंगाई को लेकर चिंता जरूर दिखाई गई है लेकिन वह चिंता धरातल पर उतरती हुई बिल्कुल ही नहीं दिख रही है. शासन ने वास्तव में यह जानने की कोशिश ही नहीं की है कि महंगाई से आम आदमी का क्या हाल है? यहां मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि अनाज, दलहन और तिलहन की कीमतों में उछाल से हमारे किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है. किसान का तो हर हाल में गला ही घोंटा जा रहा है.

यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि महंगाई में उछाल के पीछे सरकारी नीतियां भी हैं. पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर जो नीतियां हैं वह महंगाई को बढ़ाने में मदद कर रही हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में इजाफे की बात करके पेट्रोलियम कंपनियां पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ा देती हैं लेकिन जब कच्चे तेल की कीमतें कम होती हैं तो पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम नहीं की जाती हैं. तब केंद्र और राज्य सरकारें टैक्स बढ़ा देती हैं. 

मार्च 2020 से मई 2020 के दौरान  केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी में प्रति लीटर 13 रु. और डीजल पर 16 रु. की वृद्धि की थी जबकि कोरोना के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें उस दौरान कम हुई थीं. सरकारी तेल कंपनियों ने इस दौरान अपना खजाना भर लिया.

आप जानकर दंग रह जाएंगे कि पिछले एक साल में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में करीब-करीब 20 रुपए प्रति लीटर का इजाफा हुआ है जबकि बेस प्राइस में 4 रुपए से ज्यादा की वृद्धि नहीं हुई है. सरकार को बताना चाहिए कि पेट्रोल और डीजल पर इतना टैक्स क्यों? आज कई जगह पेट्रोल की कीमत प्रति लीटर 100 रुपए तक जा पहुंची है. पिछले एक महीने में 18 बार पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ी हैं.

पेट्रोल आम आदमी के घर का बजट सीधे तौर पर गड़बड़ा देता है तो डीजल पिछले दरवाजे से हमला करता है. जब भी डीजल की कीमतें बढ़ती हैं तो माल ढुलाई की दर स्वाभाविक तौर पर बढ़ जाती है. इससे सभी चीजें महंगी होती हैं. महंगाई रोकने के लिए खासकर डीजल की कीमतों पर अंकुश बहुत जरूरी है. ..और सरकार यह कर सकती है. अभी जब कुछ राज्यों में चुनाव चल रहे थे तब सरकारी  पेट्रोलियम कंपनियों ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर अंकुश लगाए रखा जबकि कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही थीं. 

क्या आदमी को यह खेल समझ में नहीं आता है? क्या बेवकूफ है आम आदमी? लोग सब समझते हैं कि चुनाव में लोगों को प्रभावित करने के लिए कीमतों पर अंकुश रखा जाता है. पेट्रोलियम कंपनियों को अघोषित निर्देश होते हैं कि अभी कीमत मत बढ़ाओ!

आज महंगाई के कारण हालात खराब हैं. आम आदमी परेशान हाल है. ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर अंकुश लगाएं जिससे महंगाई पर अंकुश लगे. हालात सुधर जाएं, लोगों की जेब में फिर से पैसा आने लगे, उद्योग-धंधे फिर से अपने पैरों पर खड़े हो जाएं तो टैक्स फिर बढ़ा लीजिएगा. अभी तो राहत दीजिए सरकार!

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