विजय दर्डा का ब्लॉग: झोली खाली तो बाजार में पैसा आएगा कहां से?

By विजय दर्डा | Published: February 3, 2020 05:09 AM2020-02-03T05:09:05+5:302020-02-03T05:09:05+5:30

बजट को मैं नकारात्मक नहीं कहना चाहूंगा क्योंकि हर पहल में सकारात्मक सोच समाहित होती है लेकिन यह जरूर लग रहा है कि जिस फौरी राहत की जरूरत थी, वह बजट में नहीं दिख रही है. खासतौर पर आर्थिक संकट से उबरने की जो एक छटपटाहट दिखनी चाहिए वह नहीं  है.

Vijay Darda blog: From where will the money come in the market if the bag is empty? | विजय दर्डा का ब्लॉग: झोली खाली तो बाजार में पैसा आएगा कहां से?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण। (फाइल फोटो)

आप सभी को मालूम है कि शनिवार को अमूमन शेयर बाजार बंद रहता है लेकिन इस बार बजट आना था इसलिए खुला हुआ था. बजट के बाद सेंसेक्स ने 988 अंक और निफ्टी ने 300 अंकों का गोता लगाया. कई सारी कंपनियों के शेयर धड़ाम हो गए. शेयर बाजार के इन आंकड़ों से सहज ही समझा जा सकता है कि बजट पर प्रतिक्रिया क्या है! कारोबार जगत बजट की बारीकियों को बेहतर तरीके से समझता है क्योंकि ये वो लोग हैं जो भविष्य पर नजर रखने के पारखी हैं और रोजगार का सृजन भी करते हैं. अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान भी देते हैं.

बजट को मैं नकारात्मक नहीं कहना चाहूंगा क्योंकि हर पहल में सकारात्मक सोच समाहित होती है लेकिन यह जरूर लग रहा है कि जिस फौरी राहत की जरूरत थी, वह बजट में नहीं दिख रही है. खासतौर पर आर्थिक संकट से उबरने की जो एक छटपटाहट दिखनी चाहिए वह नहीं  है. वित्त मंत्री का भाषण लंबा था. और योजनाओं की लंबी फेहरिस्त भी उन्होंने दी है. हम उम्मीद करें कि योजनाएं सफल हों और जो लक्ष्य सरकार ने निर्धारित किया है, वो पूरे हों तथा वाकई अच्छे दिन आ जाएं.

..मगर इस वक्त बड़ा सवाल यह है कि जिन आर्थिक चुनौतियों का पूरा देश सामना कर रहा है उससे सरकार कैसे निपटेगी? बाजार में पैसा कहां से आएगा? एक उम्मीद थी कि सरकार करदाताओं को इनकम टैक्स में कुछ छूट देगी जिससे उनकी जेब मजबूत हो सके और वे अपनी जरूरतों पर पैसा खर्च कर सकें. सभी को इसकी उम्मीद थी क्योंकि यह एक ऐसा रास्ता है जिससे सीधे बाजार में पैसा पहुंच सकता है. जब उपभोक्ताओं की जेब में पैसा होगा तो ही वे खर्च करेंगे और पैसा बाजार में पहुंचेगा. मगर ऐसा नहीं हुआ. टैक्स स्लैब के मामले में सरकार ने गजब की कलाबाजी दिखाई. एक नया स्लैब खड़ा कर दिया लेकिन यह भी कह दिया कि इस स्लैब से कर चुकाएंगे तो पुरानी रियायतें छोड़नी होंगी.

पुराने स्लैब में  मकान खरीदने, बच्चों की पढ़ाई पर होने वाले खर्च, बीमा खर्च जैसी करीब 70 रियायतें मिलती थीं. अब यदि ये रियायतें छोड़कर कोई व्यक्ति नए स्लैब में आना चाहे तो उसे कोई लाभ नहीं होने वाला है. बिल्कुल आदर्श स्थिति में यदि किसी व्यक्ति को पुराने स्लैब के हिसाब से 30 हजार रुपए की छूट मिलती थी तो नए स्लैब में केवल 25 हजार रुपए की छूट ही मिलेगी. जाहिर सी बात है कि नए स्लैब में केवल वही लोग आना चाहेंगे जिन्होंने कहीं इन्वेस्ट नहीं किया है या करने की स्थिति नहीं हैं या फिर करना नहीं चाहते. सीधी सी बात है कि मध्यमवर्ग पहले भी खाली जेब था और अब भी खाली जेब रहेगा तो सवाल यह है कि बाजार में पैसा लगाएगा कहां से? यानी इस मामले में कोई रिफॉर्मेशन नहीं है.

बजट में किसानों के लिए बहुत कुछ प्रावधान की बात कही जा रही है. वाकई प्रावधान किए भी गए हैं लेकिन इससे सीधे तौर पर किसान की जेब में कोई पैसा फौरी तौर पर नहीं पहुंच रहा है. पैसा रहेगा नहीं तो वह आधुनिक कृषि यंत्र कहां से खरीदेगा और उत्पादन कैसे बढ़ाएगा. केवल समर्थन मूल्य बढ़ाने से किसानों की आय दोगुनी नहीं हो सकती. इसके लिए उत्पादन बढ़ाना ज्यादा जरूरी है. जो घोषणाएं हुई हैं, वे लंबी अवधि में फलदायी हो सकती हैं लेकिन मौजूदा आर्थिक संकट का क्या?

आर्थिक संकट से उबरने के लिए उपभोक्ता और बाजार के बीच सीधा संबंध होना चाहिए. यह संबंध पैदा होता है पैसे से. जब उपभोक्ता की जेब में पैसा होगा तो वह मकान खरीदेगा, टीवी फ्रिज, वाहन और अन्य सामान खरीदेगा. पैसा होगा तो वह घूमने जाएगा और एंटरटेनमेंट पर भी खर्च करेगा. जाहिर सी बात है कि  बाजार में सामान की मांग होगी तो उद्योग जगत उसका निर्माण करेगा और कारोबारी उसे उपभोक्ताओं तक पहुंचाएगा. अभी बाजार में पैसा नहीं है इसलिए मांग नहीं है. पूरा चेन ध्वस्त हो गया है. अभी कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां आर्थिक सुस्ती का असर नहीं पड़ा हो. सरकार आर्थिक मंदी नहीं मानती वह सुस्ती शब्द का उपयोग करती है इसलिए मैं भी सुस्ती कह रहा हूं! हमारा निर्माण उद्योग और वाहन उद्योग तो पूरी तरह चौपट होने के कगार पर है. इस कारण करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गई हैं. बेरोजगारी ने भयावह रूप धारण कर लिया है.

निश्चित रूप से डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स (डीडीटी) हटाया जाना अच्छा कदम  है. इससे कंपनी के शेयरों में निवेश करने वाले छोटे निवेशकों के अलावा म्यूचुअल फंड व विदेशी निवेशकों को फायदा होगा. लेकिन दूसरी ओर कंपनी के प्रवर्तकों पर आयकर की दर 34 से बढ़ाकर 43 प्रतिशत कर दी गई है. इससे संपत्ति का निर्माण करने वाले उद्योगपतियों पर कर का बोझ बढ़ेगा. इससे निवेश नहीं होगा तथा बेरोजगारी बढ़ेगी.

इतना ही नहीं, 10 करोड़ से ज्यादा का कारोबार करने वाली कंपनियों की बिक्री पर 0.01 प्रतिशत ट्रांजेक्शन टैक्स लगाया गया है. इसका नुकसान हिंदुस्तान यूनीलीवर जैसी बड़ी कंपनियों को होगा क्योंकि कर 50 लाख से ज्यादा की वार्षिक बिक्री पर वसूल किया जाना है. इसका बोझ डिस्ट्रीब्यूटर्स, स्टॉकिस्ट्स, डीलर्स पर पड़ेगा और करदाता को भी तकलीफ होगी. बजट में अनिवासी भारतीयों की व्याख्या बदल दी गई है. अब विदेश में 180 दिन के बजाय 240 दिन रहने वाला प्रवासी भारतीय कहलाएगा. उनकी विदेश में होने वाली आमदनी पर भी टैक्स लगाया गया है. उन्हें भारत में प्रचलित दरों से टैक्स भरना पड़ेगा. इससे अप्रवासी भारतीयों का भारत में निवेश प्रभावित होगा. यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि बजट से निवेश को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद ढह गई है.

 देशी उद्योग जगत के लिए ऐसी कोई क्रांतिकारी घोषणा नहीं हुई है जिससे आर्थिक सुस्ती खत्म होने के कोई आसार नजर आएं. फिर आर्थिक विकास होगा कैसे? हमारी आर्थिक विकास दर लगातार घटते हुए 5 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है और वित्त मंत्री ने 2020-21 के लिए लक्ष्य 10 प्रतिशत का रखा है. सवाल यह है कि क्या एलआईसी, एयर इंडिया और दूसरी कंपनियों की इक्विटी बेचने से 10 प्रतिशत का लक्ष्य हासिल हो जाएगा? बहरहाल देश के अर्थशास्त्री इस बात पर भरोसा करने को तैयार नहीं हैं. फिर आम आदमी कैसे भरोसा करे?

Web Title: Vijay Darda blog: From where will the money come in the market if the bag is empty?

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