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प्रमुख उर्दू अखबारों ने अटल बिहारी वाजपेयी को इस तरह किया याद

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: August 23, 2018 16:06 IST

‘इन्कलाब डेली’ मुंबई ने लिखा है, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का इस दुनिया से कूच कर जाना इस एतबार से मुल्क का बड़ा नुकसान है कि उनकी शक्ल में एक सर्वमान्य लोकप्रिय और सूझ-बूझ रखने वाला लीडर अपने पीछे कभी न भरने वाली कमी छोड़ गया है।

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राजश्री यादव

उर्दू मीडिया का मानना है कि पूर्व प्रधानमंत्री, भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयी की नज्में, उनके सराहनीय फैसले, उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व, उनकी जानदार शैली, उनकी कश्मीर पॉलिसी, हुकूमत चलाने की काबिलियत। उन्हें किस तरह से याद करें या किन-किन खानों में उन्हें बांटें?  ये सवाल भी है और शायद जवाब भी क्योंकि वाजपेयी जी को किसी एक फ्रेम में माला पहनाकर याद करते हुए भुलाया नहीं जा सकता है। कश्मीर के अलगाववादी नेता भी वाजपेयी की कश्मीर संबंधी पॉलिसी के मुरीद थे, वहीं लाहौर के सफर के दौरान वाजपेयी ने जब पाकिस्तान की अवाम से खिताब किया तो नवाज शरीफ ये बोलने से नहीं चूके थे कि वाजपेयी जी आप तो पाकिस्तान में भी चुनाव जीत सकते हैं, ये थी उनकी लोकप्रियता।

‘इन्कलाब डेली’ मुंबई ने लिखा है, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का इस दुनिया से कूच कर जाना इस एतबार से मुल्क का बड़ा नुकसान है कि उनकी शक्ल में एक सर्वमान्य लोकप्रिय और सूझ-बूझ रखने वाला लीडर अपने पीछे कभी न भरने वाली कमी छोड़ गया है। वाजपेयी मुल्क के उन सीनियर और तजुर्बेकार नेताओं में से एक थे, जिनका एहतराम न सिर्फ उनकी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता करते थे बल्कि अन्य पार्टियों के लोग भी उन्हें इज्जत की निगाहों से देखते थे। संसद भवन में हों या रेडियो, टी।वी। पर उनके भाषण बड़े गौर से सुने जाते थे। 

ये भाषण वे लोग भी सुनते थे जिन्हें उनकी विचारधारा से परहेज  था या जो आरएसएस से उनके संबंध या जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी में उनकी मौजूदगी से बेचैन थे। लोकसभा में उनके संबोधनों के दौरान ऐसी खामोशी छा जाती थी कि सिर्फ एक ही आवाज गूंजती थी और वो अटल बिहारी वाजपेयी की आवाज होती थी। चूंकि वाजपेयी शायर थे इसलिए उनकी बोलने की शैली इतनी मीठी और प्रभावशाली थी कि हर कोई उनका मुरीद हो जाता था। वाजपेयी जी को ये एजाज हासिल था कि वे 1938 से 2005 तक लोकसभा के लिए 10 बार चुने गए। इसके अलावा भी उन्हें कई और सम्मान प्राप्त हुए थे।

‘राष्ट्रीय रोजनामा सहारा’, नई दिल्ली ने लिखा है, पाकिस्तान के वजीरे आजम इमरान खान के शपथग्रहण समारोह में भारत के पूर्व क्रिकेटर और पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के  शामिल होने के सिलसिले में जो बवाल मचा है, वो किसी तरह थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक तरह से सिद्धू का पाकिस्तानी दौरा विवादों में घिर गया है। एक तरफ जहां भाजपा ने सिद्धू के पाकी दौरे को जुर्म करार दिया है तो दूसरी जानिब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी गहरी नाराजगी का इजहार किया है। 

सिद्धू का शपथग्रहण समारोह में पीओके के प्रधानमंत्री के साथ बैठना और पाकिस्तानी फौज के सरबराह से गले लगना यकीनन एक नापसंदीदा अमल कहा जा सकता है। लेकिन इस बात को भी देखने की जरूरत है कि इसमें सिद्धू का कोई अपना दखल नहीं था। इन बातों को जो लोग जरूरत से ज्यादा हवा दे रहे हैं, इससे ये भी जाहिर होता है कि कुछ अनासिर भारत और पाक को करीब आते नहीं देखना चाहते। इमरान खान के सत्ता में आने के बाद जिस तरह भारत के नेताओं ने खुशी का इजहार किया है और दोनों मुल्कों के बीच ताल्लुकात बेहतर होने की उम्मीद जाहिर की है, उससे यही अंदाज होता है कि वक्त अब आ गया है कि दोनों मुल्क अपनी कड़वाहट को दूर करने के लिए एक बार फिर बातचीत का सिलसिला शुरू करें ताकि दोनों मुल्क अच्छे पड़ोसी की तरह रह सकें।

‘डेली हिन्दुस्तान एक्सप्रेस’, नई दिल्ली ने लिखा है, खूबसूरत और दिलकश लगने वाला केरल आजकल बेहद खौफनाक सैलाब की जद में है। अब तक 250 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, लाखों लोग बेघर हो गए हैं। वाकई केरल के लिए ये सब कुछ ठहर जाने का वक्त है। इस परीक्षा की घड़ी में केरल को हर तरफ से मदद और दुआओं की जरूरत है। सरकार के लिए इस मुसीबत से भी बड़ा चैलेंज प्रभावितों के पुनर्वास का है। और अंत में ।।अपना जमाना आप बनाते हैं अहले दिल/ हम वो नहीं कि जिनको जमाना बना गया। (साभार..मुंसिफ डेली)

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