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जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की अनसुलझी पहेली, आखिर इस्तीफा क्यों देना पड़ा?

By हरीश गुप्ता | Updated: July 30, 2025 05:20 IST

पहला झटका तब लगा जब धनखड़ ने एक सार्वजनिक समारोह में अचानक कहा कि वह अगस्त 2027 में सेवानिवृत्त हो जाएंगे- अगर कोई ‘दैवीय हस्तक्षेप’ न हो.

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ठळक मुद्देबमुश्किल दस दिन बाद ही पद छोड़ दिया. नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था. साउथ ब्लॉक में भौंहें तन गईं.

जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफे ने दिल्ली के सत्ता के गलियारों में खलबली मचा दी है. हाल के दिनों तक, उन्हें व्यवस्था का एक भरोसेमंद व्यक्ति माना जाता था और यहां तक कि 2027 में राष्ट्रपति पद की दौड़ में भी उनके शामिल होने की चर्चा थी. धनखड़ और मोदी अक्सर मिलते थे और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी उपराष्ट्रपति भवन में मेहमान बनकर आ चुके थे.  तो आखिर उन्हें इस्तीफा क्यों देना पड़ा? पहला झटका तब लगा जब धनखड़ ने एक सार्वजनिक समारोह में अचानक कहा कि वह अगस्त 2027 में सेवानिवृत्त हो जाएंगे- अगर कोई ‘दैवीय हस्तक्षेप’ न हो.

बमुश्किल दस दिन बाद ही उन्होंने पद छोड़ दिया. यह संयोग इतना अजीब था कि इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था. कुछ लोग कहते हैं कि धनखड़ अपने औपचारिक दर्जे में कुछ ज्यादा ही यकीन करने लगे थे, और वीवीआईपी सुविधाओं- महंगी बुलेटप्रूफ कारें, विस्तृत विदेशी प्रोटोकॉल, और अन्य तामझाम- की मांग करने लगे थे, जिससे साउथ ब्लॉक में भौंहें तन गईं.

कुछ लोग पिछली सर्दियों में राज्यसभा में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के विफल होने के बाद से विपक्ष के प्रति उनके नरम रुख की ओर इशारा करते हैं. क्या यह राजनेता बनने की कोशिश थी? या वह बहुत सारे समीकरणों को संतुलित करने की कोशिश कर रहे थे? इनमें से कोई भी सिद्धांत विश्वसनीय नहीं है. अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पीएम के साथ उनके व्यक्तिगत समीकरण बढ़ने के बाद, वह अपने पद से बहुत बड़े हो गए और केंद्रीय मंत्रियों को महत्वहीन समझते हुए व्यवहार करना शुरू कर दिया. बातें प्रधानमंत्री तक पहुंचीं और कहीं कुछ गड़बड़ हो गई.

सौहार्द्र हवा हो गया. यह केवल समय की बात थी और एक फ्लैश पॉइंट इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ विवादास्पद महाभियोग प्रस्ताव था. क्या धनखड़ ने बंदूक खुद चलाई या उसे धीरे से उनके कंधे पर रख दिया गया, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है.

लेकिन अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने खुद को तेजी से अलग-थलग पाया- सरकार के लिए बहुत औपचारिक, विपक्ष के लिए बहुत सतर्क.  लुटियंस दिल्ली में, निकास शायद ही कभी सरल होता है. लेकिन धनखड़ का परिदृश्य से गायब होना- बिना किसी हलचल, विदाई या धूमधाम के- फुसफुसाते हुए एक रहस्य छोड़ गया है.

पर्दा गिरते ही शुरू हुए कठिन दिन

सुनहरे दिन बीत चुके हैं. अपने अचानक और अभी तक अस्पष्ट इस्तीफे के बाद, जगदीप धनखड़ महसूस कर रहे होंगे कि रायसीना हिल के बाद जिंदगी एकांतप्रिय अनुभव हो सकती है- कुछ सुविधाओं के साथ भी. उनके नए आलीशान उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में अब सन्नाटा पसरा है. उनके सचिवालय के लिए बनाया गया विशेष विंग वीरान पड़ा है.

ज्यादातर अधिकारियों को पहले ही वापस भेज दिया गया है; बाकी अपना सामान समेट रहे हैं. हालांकि अधिकारियों को आमतौर पर काम समेटने के लिए 15 दिन का समय मिलता है, लेकिन धनखड़ का कार्यालय रातोंरात बंद हो गया लगता है.  क्या यह जल्दबाजी में हुई विदाई है? पूर्व उपराष्ट्रपति होने के नाते, उन्हें अभी भी एक सुसज्जित घर, वफादार कर्मचारियों का एक समूह - निजी सचिव, सहायक, दो चपरासी  और कार्यालय भत्ता भी मिलेगा.  वे अपने जीवनसाथी या साथी के साथ भारत में कहीं भी उच्च श्रेणी की उड़ान भर सकते हैं और चिकित्सा सुविधाओं का आनंद ले सकते हैं.  

लेकिन ध्यान रहे, यह सत्ता में रहते हुए नहीं, सत्ता जाने के बाद की सुविधा है.  रोजाना खुफिया ब्रीफिंग, लाल कालीन स्वागत और प्रधानमंत्री से निकटता के दिन अब बीत चुके हैं.  उच्चस्तरीय पहुंच, संवैधानिक अधिकार और भविष्य में राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी की सुगबुगाहट - सब एक झटके में गायब हो गए.

अब, उन्हें 2000 वर्ग फुट के घर, द्वितीय श्रेणी के फर्नीचर और सरकारी टेलीफोन लाइन (जैसा सांसदों को दिया जाता है) से ही काम चलाना होगा- ये सब विशेषाधिकार से ज्यादा सांत्वना जैसा लग रहा है.  कभी राष्ट्रपति के बाद दूसरे नंबर पर रहे एक व्यक्ति का अब राजनीतिक संध्याकाल में दबे पांव चलना उतना ही नाटकीय है जितना कि उनका उच्च पद पर आगमन. धनखड़ के लिए, पन्ना पलट चुका है. अध्याय समाप्त हो चुका है. और सन्नाटा गहरा रहा है. देखना यह है कि क्या एक किसान अपने समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ेगा.

दिल्ली की महिला मुख्यमंत्री ट्रोल का शिकार

यह दिल्ली के राजनीतिक डेजा वू का एक उत्कृष्ट मामला है - हालांकि इस बार पैमाना छोटा है और लक्ष्य भाजपा की पहली महिला मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता हैं. उनके आधिकारिक आवास और आसपास के कैंप कार्यालय के लिए एक मामूली 60 लाख रुपए की नवीकरण योजना निष्पादन से पहले ही रद्द कर दी गई.

सोशल मीडिया पर उन्माद पैदा करने के लिए पर्याप्त थी, जिसमें ट्रोल हर लाइट, पंखे और एयर कंडीशनर पर टूट पड़े. पीडब्ल्यूडी टेंडर, जिसे अब ‘प्रशासनिक कारणों’ से वापस ले लिया गया है, में 24 एयर कंडीशनर, 39 पंखे और 115 लैंप सूचीबद्ध थे - जो राजनिवास मार्ग पर सीएम को आवंटित दो बंगलों में फैले थे.

हालांकि यह राशि लुटियंस के मानकों से बहुत कम है, ट्रोल्स के लिए यह मौका था, गुप्ता का ‘सार्वजनिक धन पर विलासिता’ के लिए मजाक उड़ाया.  कई लोगों ने पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल के 40 करोड़ रुपए के ‘शीशमहल’ नवीकरण के साथ तुलना की. गुप्ता के खेमे ने तर्क दिया कि 60 लाख रुपए के बजट में दो इमारतों के लिए बुनियादी ढांचे का उन्नयन शामिल है,

जिनमें से एक उनका आधिकारिक सार्वजनिक कार्यालय है. लेकिन बारीकियों को ऑनलाइन शायद ही कभी सुना जाता है. शोर में इजाफा करते हुए एक नया सरकारी आदेश आया जिसमें गुप्ता को 1.5 लाख रुपए का फोन खरीदने की अनुमति दी गई, जो पहले की 50000 रुपए की सीमा से अधिक है.

हालांकि बढ़ोत्तरी एक दशक बाद हुई है लेकिन ट्रोल ने संयोग का फायदा उठाया और इसे ‘वीवीआईपी आराम के साथ 5 जी सरकार’ करार दिया. डिजिटल हंगामे के बावजूद, गुप्ता ने अपनी पहली जनसुनवाई शुरू की , नागरिकों से सीधे जुड़ते हुए और इस बात पर जोर देते हुए कि ‘सार्वजनिक सेवा सर्वोच्च है.’ लेकिन दिल्ली की पहली भाजपा महिला मुख्यमंत्री होने के नाते, उन्हें पहले से ही यह समझ आ गया है कि मीम्स और बदनामी के दौर में, शासन के मामूली कदम भी धारणा की लड़ाई छेड़ सकते हैं. तब से वे चुप ही रही हैं.

टूटती लॉबी, बनती एकता

राज्यसभा में विपक्षी महिला सांसदों ने राजनीति को दरकिनार करते हुए संसद के नए भवन में खराब शौचालयों, कॉफी की कमी और बैठने की कम जगह की समस्या को उठाया. उन्होंने सभापति जगदीप धनखड़ से बुनियादी जरूरतों को दुरुस्त करने का आग्रह किया और एक साहसिक विचार पेश किया : सदन के भोजन कक्षों के बीच की खुली जगह को सेंट्रल हॉल जैसा मेलजोल का क्षेत्र बना दिया जाए. धनखड़ ने तुरंत कार्रवाई की, लेकिन चर्चा है कि प्रधानमंत्री इस लाउंज योजना से सहमत नहीं हैं. अब धनखड़ के न होने से कोई समाधान भी नहीं है.

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