मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज में ‘अमृत स्नान’ के अवसर पर जो कुछ हुआ वह हृदय-विदारक है. कितने घायल हुए, कितने भगदड़ में मर गए, इस संख्या को लेकर विवाद होता रहेगा; इस भयानक हादसे के कारणों को लेकर भी विवाद चलता रहेगा. निश्चित रूप से यह एक भयंकर त्रासदी है, जिसे लेकर सारा देश उद्विग्न है.
बहरहाल, इस सब की चर्चा देश में खूब हो रही है. होनी भी चाहिए, पर ‘अमृत स्नान’ की उस रात प्रयागराज में कुछ और भी ऐसा हुआ था जिसकी उतनी चर्चा नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी. जब लाखों की संख्या में श्रद्धालु शरण पाने के लिए उमड़ रहे थे, भूखे-प्यासे परेशान हो रहे थे तो इलाहाबाद के मुसलमानों ने अपने हिंदू भाइयों के लिए मस्जिदों के दरवाजे खोल दिए थे, परेशान यात्रियों को अपने घरों में जगह दी थी.
उन्हें चाय दी, खाना दिया, बिस्तर दिए, दवाइयां दीं. उस रात कुंभ में पवित्र त्रिवेणी में स्नान करने के लिए आए परेशान यात्रियों के लिए मस्जिदों के परिसर खोल देने वाले, अपने घरों में महिलाओं और बच्चों को पनाह देने वाले इलाहाबाद के मुसलमानों ने जो किया, उसके महत्व को आज नहीं तो कल अवश्य समझा जाएगा. समझा जाना ही चाहिए.
ऐसा नहीं है कि इस तरह का अनुकरणीय काम देश में पहली बार हुआ है. अतीत में भी हिंदू और मुसलमान, दोनों इस तरह के उदाहरण प्रस्तुत करते रहे हैं. कुछ साल पहले कोलकाता के एक मंदिर के दरवाजे उन नमाजी मुसलमानों के लिए खोल दिए गए थे जो तेज वर्षा के कारण खुले में ईद की नमाज नहीं पढ़ पा रहे थे. वे दिन भी थे जब ईद और दीपावली हिंदू-मुसलमान मिलकर मनाते थे. हिंदू मीठी सेवइयों के लिए अपने मुसलमान पड़ोसी की ईद का इंतजार करते थे और मुसलमान हिंदू मित्र से दीपावली की मिठाई पाना अपना अधिकार समझते थे.
ऐसा नहीं है कि मेलजोल की यह भावना अब खत्म हो गई है. पर एक दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई यह भी है कि स्वतंत्र भारत में दोनों मजहबों के बीच दीवारें उठाने की कोशिश अब अक्सर होने लगी है. दोनों ही वर्गों में ऐसी आवाजें उठ जाती हैं, जिन्हें सुनकर दुख भी होता है और निराशा भी होती है. यह काम जो भी करते हैं, वे देश को बांटने वाले हैं, जोड़ने वाले नहीं.
धार्मिक सहिष्णुता के संदर्भ में एक बात और हमें याद रखनी होगी. आज भले ही हिंदू-मुसलमान के बीच दीवारें उठाने की कोशिशें हो रही हों, पर हकीकत यह है कि देश का हर नागरिक इसी मिट्टी में जन्मा है, इसी देश की हवा उसकी सांसों में है. इसलिए, ऐसी हर कोशिश को नाकाम करने की जरूरत है जो जोड़ने के बजाय बांटने की कोशिश करे. बुनियादी बात यह है कि हम सब मनुष्य हैं.
हमारे भीतर की मनुष्यता जिंदा रहनी चाहिए. बुनियाद है यह मनुष्यता. इस बुनियाद को मजबूत करना है. मजबूत रखना है. अहया भोजपुरी का एक शेर याद आ रहा है- ‘सब हिफाजत कर रहे हैं मुस्तकिल दीवार की/ जबकि हमला हो रहा है मुस्तकिल बुनियाद पर.’ मुस्तकिल का मतलब होता है मजबूत. इस मजबूती को और मजबूत करना जरूरी है. यह काम कहने से नहीं, करने से होगा.