उमेश चतुर्वेदी का ब्लॉग: अमेरिका में बढ़ा हिंदी का चलन
By उमेश चतुर्वेदी | Updated: September 27, 2018 15:56 IST2018-09-27T15:56:12+5:302018-09-27T15:56:12+5:30
अमेरिका की धरती पर हिंदी बोलने वालों की संख्या बढ़कर आठ लाख 63 हजार हो जाना सामान्य बात नहीं है।

उमेश चतुर्वेदी का ब्लॉग: अमेरिका में बढ़ा हिंदी का चलन
मातृभाषा, अपनी माटी और अपने लोगों की अहमियत तब ज्यादा समझ में आती है, जब हम उससे दूर होते हैं। अपनी माटी से दूर परायों के बीच निजी स्मृतियां और रिश्ते हूक की तरह याद आते हैं, ऐसे माहौल में सुकून अपनी बोली-बानी में अभिव्यक्ति के साथ ही अपना खान-पान, अपनी परंपराएं देती हैं।
लेकिन परदेसी माटी पर अपनी बोली-बानी के इस्तेमाल और अपनी परंपराओं में जीने का साहस तब आता है, जब अपने जैसे लोगों की संख्या बढ़ता है। कहना न होगा कि अमेरिकी धरती पर हिंदी की बढ़ती पहुंच के पीछे भी यही मनोविज्ञान काम कर रहा है।
अमेरिका की धरती पर हिंदी बोलने वालों की संख्या बढ़कर आठ लाख 63 हजार हो जाना सामान्य बात नहीं है।
अमेरिकी जनगणना ब्यूरो ने साल 2017 के लिए जो अमेरिकी कम्युनिटी सर्वे रिपोर्ट जारी की है, उसके मुताबिक अमेरिका की कुल जनसंख्या यानी 30.5 करोड़ लोगों में से करीब 21.8 फीसदी लोग अपने घरों, आपसी सामुदायिक व्यवहार और दूसरे कार्यों के लिए अंग्रेजी की बजाय अपनी भाषाओं का प्रयोग करते हैं।
समें भारतीय मूल के लोगों की बड़ी संख्या है। इन भारतीयों में सबसे बड़ी संख्या हिंदी वालों की है। दूसरे नंबर पर चार लाख 34 हजार की संख्या वाला गुजराती समुदाय है, जो आपसी बातचीत में गुजराती का इस्तेमाल करता है।
हिन्दी के बाद है तेलुगु
इसके बाद तेलुगुभाषी लोगों की संख्या है, जो करीब चार लाख पंद्रह हजार है। हिंदी भाषियों की यह संख्या साल 2010 में छह लाख से कुछ ही ज्यादा थी।
वैसे हिंदी को लेकर अमेरिकी भारतीय समुदाय पहले से ही सचेत और कार्यशील है। यहां मंदिरों और भारतीयों के सामुदायिक केंद्रों में रविवार और दूसरी छुट्टियों के दिन हिंदी पढ़ाई और सिखाई जाती है।
जिनमें ज्यादातर भारतीय मूल के ही परिवारों के लोग और बच्चे होते हैं, जिनका अहम मकसद अपने मूल और अपनी माटी से खुद को जोड़े रखना होता है।
यहां के येल, न्यूयार्क और विनकांसन विश्वविद्यालयों में पहले से ही हिंदी की पढ़ाई हो रही है। इन विश्वविद्यालयों में छात्रों की तादाद भी हर साल बढ़ती जा रही है।
गौर करने वाली बात यह है कि अमेरिका के इन विश्वविद्यालयों में हिंदी सिखाने-पढ़ाने वाले प्राध्यापक सिर्फ भारतीय मूल के ही नहीं, बल्कि अमेरिकी मूल के भी लोग हैं। अंकल सैम की धरती पर बढ़ती अपनी हिंदी की यह विनम्र धमक उम्मीद जताती है कि आने वाले दिनों में वह और नए कीर्तिमान गढ़ सकती है