हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एक शानदार पहल की है. मगर उससे पहले इस बात को समझिए कि उन्हें ऐसी पहल करने की जरूरत क्यों पड़ी? वे कुल्लू जिले के बागा सराहन स्थित सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालय में पहुंचे. विद्यार्थियों के साथ बातचीत के क्रम में उन्हें एहसास हुआ कि बच्चों का सामान्य ज्ञान अत्यंत कम है. उन्हें वो पुराना जमाना याद आ गया जब स्कूल में प्रार्थना सभा के ठीक बाद बच्चे अपनी कक्षा में ब्लैक बोर्ड पर उस दिन के प्रमुख समाचार लिखा करते थे.
इस तरह की प्रथा होने के कारण बच्चे सुबह अखबार पढ़कर आते थे. मगर धीरे-धीरे वह प्रथा लगभग समाप्त हो गई. प्रमुख समाचार लिखने का फायदा यह होता था कि बच्चों की जानकारियों में रोज इजाफा होता था. वे तात्कालिक विषयों से अवगत होते थे और धीरे-धीरे वैचारिक रूप से सक्षम बनते थे. बाद के दिनों में विद्यार्थियों के बीच ऑनलाइन और सोशल मीडिया का जैसे-जैसे प्रभाव बढ़ने लगा, जानकारियों से बच्चे दूर होने लगे और रील्स में मशगूल हो गए.
यह बात छिपी नहीं है कि ऑनलाइन और सोशल मीडिया पर यदि जानकारियां मिलती भी हैं, तो उसकी विश्वसनीयता का स्रोत पुख्ता नहीं होता. कई बार एक ही विषय पर अलग-अलग साइट्स भिन्न-भिन्न जानकारियां परोसती हैं. उन्हें प्रामाणिक कैसे माना जाए?
इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया की अंधी दौड़ में इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने की बात करना भी आधुनिकता का विरोध माना जा सकता है! अखबार चूंकि आपके सामने होता है इसलिए वह किसी को आप दिखा सकते हैं, प्रमाण के तौर पर कहीं प्रस्तुत कर सकते हैं.
यदि अखबार में कुछ गलत छपे तो आप अखबार के दफ्तर में जाकर संपादक से सवाल पूछ सकते हैं. अखबार के संपादकों को अखबार तैयार करते वक्त इस बात का एहसास होता है कि वे अपने पाठकों के प्रति जिम्मेदार हैं. यदि एक शब्द भी गलत लिखा गया तो पाठकों की तीखी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ सकता है. इसीलिए ज्यादातर अखबार जानकारियों के स्रोत को पुख्ता करते हैं और फिर उसे प्रकाशित करते हैं.
अखबार की एक बड़ी खासियत यह भी होती है कि उसमें किसी भी एक विषय पर आप विभिन्न विचारधाराओं से परिचित हो सकते हैं. हर पक्ष को जानने या समझने का मौका मिलता है. यही कारण है कि पढ़ाई के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवा अखबार का सहारा लेते हैं.
अखबार में उन्हें जो जानकारियां मिलती हैं, वे उनकी मानसिक समृद्धि में इजाफा करती हैं. यही कारण है कि अखबारों की विश्वसनीयता आज भी कायम है. हिमाचल सरकार के इस कदम को शानदार कहने में कोई गुरेज नहीं है. जरा कल्पना कीजिए कि हिमाचल के स्कूलों में अब कितना बेहतरीन वातावरण होगा. बच्चे सुबह स्कूल आने के बाद ब्लैक बोर्ड पर प्रमुख समाचारों को लिखेंगे.
जिन बच्चों ने अखबार नहीं भी पढ़ा होगा, उन्हें भी खबरों की जानकारी मिल जाएगी और उनमें अखबार पढ़ने की ललक भी पैदा होगी क्योंकि मास्टर साहब किसी भी दिन ब्लैक बोर्ड पर बुला लेंगे! निश्चित रूप से हिमाचल के बच्चे जानकारियों के समंदर में तैरेंगे. जिंदगी में और बेहतर करेंगे.
संभव है कि हिमाचल की यह पहल दूसरे राज्यों को भी पसंद आए और वे भी इस तरह की प्रथा फिर से शुरु करें. यदि ऐसा होता है तो यह भारत के सभी राज्यों के विद्यार्थियों के लिए एक नई शुरुआत होगी. उम्मीद करें कि वह दिन जल्दी आए!