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हरीश गुप्ता का ब्लॉग : महाराष्ट्र की राजनीति में असहज शांति

By हरीश गुप्ता | Updated: September 2, 2021 12:30 IST

शिवसेना और राकांपा के राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस से हाथ मिलाने के बावजूद महाराष्ट्र में एक असहज शांति बनी हुई है. महाराष्ट्र के बाहर शिवसेना और राकांपा दोनों किसी तरह का गठबंधन नहीं करना चाहती थी ।

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ठळक मुद्दे शिवसेना और राकांपा महाराष्ट्र के बाहर गठबंधन करने को तैयार नहीं थी रणनीतिकार प्रशांत किशोर कांग्रेस से इन दिनों नाराज चल रहे हैं पंजाब में चल रही उछल-पुछल राष्ट्र विरोधी ताकतों के लिए स्थान बन सकती है

शिवसेना और राकांपा के राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस से हाथ मिलाने के बावजूद महाराष्ट्र में एक असहज शांति बनी हुई है. दोनों महाराष्ट्र के बाहर कोई गठबंधन करने के लिए अनिच्छुक थे, लेकिन जब सोनिया गांधी ने उन्हें 19 पार्टियों की बैठक में आमंत्रित किया तो वे एक साथ आने के लिए तैयार हो गए. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बैठक में शामिल होने के लिए अनिच्छुक थे क्योंकि प्रदेश कांग्रेस के नेता, विशेष रूप से पीसीसी प्रमुख नाना पटोले अलग ही धुन अलाप रहे थे. इसलिए, उद्धव ने कॉन्क्लेव में शामिल होने से पहले एक शर्त रखी कि गठबंधन को कमजोर करने के लिए किसी भी कांग्रेस नेता को सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

यहां तक कि अगर कांग्रेस 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव अकेले ही लड़ने की इच्छुक हो, तब भी 2021 में इसका ढिंढोरा पीटने की कोई जरूरत नहीं है. पता चला है कि शिवसेना के वरिष्ठ राज्यसभा सांसद संजय राऊत को गांधी परिवार के साथ बातचीत की जिम्मेदारी दी गई थी, जिन्होंने राहुल के साथ नियमित बैठकें कीं. सूत्रों की मानें तो दोनों ने हाल ही में एक अच्छा तालमेल विकसित किया है. हालांकि, एक के बाद एक राज्यों में कांग्रेस के भीतर दरार ने गैर-भाजपा दलों को असहज कर दिया है. शिवसेना हो या राकांपा या कोई अन्य, कोई भी कांग्रेस के साथ डूबने को तैयार नहीं है और उन्होंने अन्य विकल्पों की तलाश शुरू कर दी है.

नाखुश शरद पवार

राकांपा सुप्रीमो शरद पवार बेहद नाखुश हैं क्योंकि कांग्रेस की आंतरिक कलह उन्हें व्यक्तिगत और राजनीतिक रूप से सबसे ज्यादा आहत कर रही है. वास्तव में, पवार अपने जीवन के इस पड़ाव पर कांग्रेस को चोट पहुंचाने के लिए कुछ भी करने से बच रहे हैं और भाजपा के साथ मेलजोल के इच्छुक नहीं हैं. हालांकि जी-23 के नेता उन पर नेतृत्व करने और यहां तक कि कांग्रेस को विभाजित करने के लिए भी दबाव डाल रहे हैं क्योंकि गांधी परिवार कई राज्यों में मामलों का प्रबंधन करने में असमर्थ रहा है. इसका नतीजा यह है कि राज्यों के नेता या तो भाजपा के साथ जा रहे हैं या अन्य मजबूत क्षेत्रीय दलों के साथ. जी-23 नेताओं का कहना है कि यह उपयुक्त समय है क्योंकि अंधेरे में उम्मीद की कोई किरण दिखाई नहीं दे रही है. अगर भाजपा 2024 में सत्ता में लौटती है तो यह उन सभी के लिए उम्मीदों का अंत होगा. पवार इन नेताओं को प्रोत्साहित नहीं कर रहे हैं और तीसरे मोर्चे का राग अलापने वालों पर भी नजर रख रहे हैं.

हरियाणा के ओमप्रकाश चौटाला नीतीश कुमार के साथ ऐसा मोर्चा बनाने के लिए गैर-कांग्रेसी गैर-भाजपा दलों से बात कर रहे हैं. नीतीश पहले ही स्पष्ट संकेत दे चुके हैं कि वे अब भाजपा की अधीनता स्वीकार नहीं करेंगे. भाजपा के भीतर और बाहर उन सभी पर उनकी नजर है जो असंतुष्ट हैं. कांग्रेस निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए एक ‘कोर ग्रुप’ बनाने के ममता बनर्जी के अनुरोध पर ध्यान नहीं दे रही है. राकांपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर इस लेखक से कहा, ‘सच कहूं तो हमारी पार्टी इन दिनों राहुल गांधी से काफी प्रभावित है. कांग्रेस हम तो डूबेंगे सनम, तुम्हें भी ले डूबेंगे की ओर अग्रसर है. लेकिन पवार कोई नौसिखिये नहीं हैं. शायद उनके दिमाग में बड़ी योजनाएं हैं.’

परेशान प्रशांत किशोर

प्रमुख चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर नाराज हैं क्योंकि कांग्रेस ने उन्हें पार्टी में शामिल करने पर चुप्पी साध ली है. पिछले महीने सीडब्ल्यूसी के सभी सदस्यों द्वारा 2024 के लोकसभा चुनाव की योजनाओं पर विचार-मंथन के बाद, गेंद अब गांधी परिवार के पाले में है. गांधी परिवार ‘पीके’ को एक उचित पदनाम और भूमिका देने में अपने हिसाब से समय ले रहा है. ‘पीके’ ने कुछ शर्ते रखी हैं जिनका नेतृत्व को आगे बढ़ने से पहले पालन करना होगा, लेकिन गांधी परिवार उस पर निर्णय नहीं कर पा रहा है. अब जब प्रियंका गांधी वाड्रा भारत लौट आई हैं, तो संभावना है कि इस मामले में कोई फैसला किया जाएगा. ‘पीके’ राष्ट्रीय पार्टी की समस्याओं से अवगत हैं क्योंकि उनका 2014 में भाजपा के साथ अनुभव अच्छा नहीं रहा है.

पंजाब में उथल-पुथल

संवेदनशील सीमावर्ती राज्य पंजाब में उथल-पुथल मची है और यह उन राष्ट्र-विरोधी ताकतों के लिए अनुकूल स्थान बन सकता है जो दशकों से शांत हैं. वे इन दिनों ‘आप’ में पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं और नवजोत सिंह सिद्धू को भी रिझा रहे हैं. नवनियुक्त पंजाब पीसीसी प्रमुख के क्षुब्ध होने और भला-बुरा कहने से कांग्रेस आलाकमान हतप्रभ था. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को वश में करने के लिए गांधी परिवार को ‘सिद्धू की गोली’ निगलने के लिए मजबूर होना पड़ा. केंद्र चिंतित है क्योंकि यह एक सीमावर्ती राज्य है और जम्मू-कश्मीर के अलावा यहां भी आतंकवाद का उदय विध्वंसकारी होगा. परेशान अमरिंदर सिंह ने हाल ही में प्रधानमंत्री को यह सूचित करने के लिए फोन किया कि 47 पाकिस्तानी आतंकवादी मॉड्यूल और गैंगस्टरों के 347 मॉड्यूल को 2017 से अब तक निष्प्रभावी किया गया है.

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