पार्टियों में वर्चस्व की लड़ाई से मचा उथल-पुथल

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: July 12, 2022 02:59 PM2022-07-12T14:59:49+5:302022-07-12T15:00:32+5:30

महाराष्ट्र में शिवसेना में हिंदुत्व के नाम पर दरार के बाद गोवा में कांग्रेस विधायक दल दो फाड़ हो गया है। उधर दक्षिण भारत में साल भर पहले तक सत्ता में रही अन्नाद्रमुक में भी पार्टी पर अधिकार की लड़ाई चरम सीमा पर पहुंच गई है। ऐसा लगता है कि पार्टी के दो शीर्ष नेताओं ई.के. पलानीस्वामी तथा ओ. पनीरसेल्वम के बीच अन्नाद्रमुक बंट जाएगी। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में भी उथल-पुथल मची हुई है।

The fight for supremacy in the parties caused turmoil | पार्टियों में वर्चस्व की लड़ाई से मचा उथल-पुथल

पार्टियों में वर्चस्व की लड़ाई से मचा उथल-पुथल

देश में बड़ी राजनीतिक पार्टियों में उथल-पुथल जारी है। महाराष्ट्र में शिवसेना में हिंदुत्व के नाम पर दरार के बाद गोवा में कांग्रेस विधायक दल दो फाड़ हो गया है। उधर दक्षिण भारत में साल भर पहले तक सत्ता में रही अन्नाद्रमुक में भी पार्टी पर अधिकार की लड़ाई चरम सीमा पर पहुंच गई है। ऐसा लगता है कि पार्टी के दो शीर्ष नेताओं ई.के. पलानीस्वामी तथा ओ. पनीरसेल्वम के बीच अन्नाद्रमुक बंट जाएगी। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में भी उथल-पुथल मची हुई है। सपा के मौजूदा मुखिया के विरूद्ध उनके चाचा शिवपाल ने ही बगावत का झंडा बुलंद किया हुआ है। परिवार की एक सदस्य तथा सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव पहले ही भाजपा का दामन थाम चुकी हैं। सपा में कलह नहीं थमी तो सपा के कई नेता दूसरे दलों की ओर रूख कर सकते हैं। 

गोवा में कांग्रेस विधायकों का विद्रोह कांग्रेस के लिए तगड़ा झटका है। कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में 11 सीटें जीती थीं और प्रत्येक विधायक को शपथ दिलाई थी कि वह किसी भी कीमत पर पार्टी नहीं छोड़ेंगे। शपथ धरी की धरी रह गई। जब राजनीति में मूल्यों और सिद्धांतों के लिए जगह ही नहीं रह गई हो तो शपथ दिलवाकर आप निष्ठा कैसे पक्की कर सकते हैं। इसके पूर्व उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी कांग्रेस के विधायकों द्वारा सामूहिक रूप से पार्टी छोड़ने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। गोवा में कांग्रेस के पांच विधायकों के साथ आ जाने पर भाजपा को स्पष्ट बहुमत के लिए स्थानीय दलों की बैसाखी की जरूरत नहीं पड़ेगी। अभी भी कांग्रेस के पास 6 विधायक हैं लेकिन देश में जो ताजा राजनीतिक प्रवृत्ति चल रही है, उसमें हो सकता है कि इनमें से भी कुछ और भाजपा में चले जाएं। महाराष्ट्र में भी शिवसेना अपने दो तिहाई से ज्यादा विधायकों को खोने के बाद सांसदों के भी अलग होने की आशंका से जूझ रही है। 

सोमवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पार्टी सांसदों की बैठक बुलाई थी, उसमें 19 में से अधिकांश सांसद पहुंचे ही नहीं। विधायकों के सामूहिक रूप से दल बदल करने का झटका कांग्रेस को मध्यप्रदेश तथा कर्नाटक में भी लग चुका है। इन दोनों राज्यों की सत्ता उसके हाथ से चली गई थी। तमिलनाडु में जयललिता के देहांत के बाद ही अन्नाद्रमुक में फूट के बीज पड़ने शुरू हो गए थे। मुख्यमंत्री पद के लिए उसी वक्त पलानीस्वामी और पनीरसेल्वम में जबर्दस्त टकराव पैदा हो गया था। उस वक्त पार्टी को सत्ता में आए कुछ ही माह हुए थे। सत्ता के खातिर दोनों गुटों ने सुलह कर ली। समझौते के तहत सरकार पलानीस्वामी चला रहे थे और पार्टी संगठन की बागडोर पनीरसेल्वम के हाथ में दे दी गई। अब पार्टी सत्ता में नहीं है। दोनों दिग्गज चाहते हैं कि सामूहिक नेतृत्व की व्यवस्था खत्म हो तथा पार्टी का नेतृत्व एक ही हाथ में हो। पनीरसेल्वम को यह मंजूर नहीं है। दोनों ही गुट पार्टी पर नियंत्रण की जंग में उलझे हुए हैं। अन्नाद्रमुक की आम परिषद में पलानीस्वामी को अंतरिम महासचिव चुन लिया गया। इसके साथ ही पनीरसेल्वम को सभी पदों से हटाकर पार्टी से भी निकाल दिया गया है। पार्टी का मुख्यालय सोमवार को पुलिस ने सील कर दिया। अन्नाद्रमुक की यह लड़ाई पार्टी का अस्तित्व खत्म कर सकती है। इसका फायदा भाजपा को हो सकता है जो कर्नाटक के बाद तमिलनाडु में भी अपने पैर मजबूती से जमाने की कोशिश में है।

Web Title: The fight for supremacy in the parties caused turmoil

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