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ब्लॉग: खूबसूरत हिमालय बना त्रासदी की तस्वीर

By निशांत | Updated: September 1, 2023 10:01 IST

सरल शब्दों में कहें तो आज की व्यावहारिकताओं को ध्यान में रखते हुए भवन निर्माण में कांक्रीट और लकड़ी का प्रयोग.’ वो आगे बताते हैं।

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साल 1933 में ‘लॉस्ट होराइजन’ नाम के उपन्यास में लेखक जेम्स हिल्टन ने हिमालय में कहीं बसी एक काल्पनिक वादी, शांगरी ला का जिक्र किया था। यह घाटी बेहद खूबसूरत नजारों को समेटे थी।

ऐसा माना जाता है कि जेम्स हिल्टन हिमालय के सौंदर्य से मोहित थे, जिसके चलते उन्होंने शांगरी ला की कल्पना की। मगर आज अगर जेम्स हिल्टन हिमालय के स्वरूप को देखते तो शायद शांगरी ला जैसी कोई कल्पना न कर पाते।

आज हिमालय सिर्फ त्रासदी की तस्वीर बन चुका है। बेतरतीब इमारतें और समझ से परे विकास इन पर्वत श्रृंखलाओं को मजबूर कर रहा है कि वो हमसे इसका बदला लें लेकिन इमारतें न बनें तो बढ़ती जनसंख्या रहेगी कहां और विकास के लिए अगर पहाड़ काट कर सड़क न बने तो आर्थिक गतिविधियां कैसे होंगी?

रजत कपूर पेशे से एक आर्किटेक्ट हैं लेकिन सही शब्दों में कंजर्वेशनिस्ट हैं। ये हिमालय क्षेत्र में वहां के स्थानीय और परंपरागत तरीकों से मकान बनाने की वकालत करते हैं। रजत कहते हैं, ‘आर्किटेक्चर की पूरी पढ़ाई यूरोपियन पद्धतियों पर केंद्रित है इसलिए अधिकांश आर्किटेक्ट वही बनाते हैं जो उन्होंने पढ़ा है लेकिन हिमालय की संरचना पर हम वैसे ढांचे नहीं खड़े कर सकते।

यहां हम कांक्रीट की बड़ी इमारतें बना देंगे तो पहाड़ दरकने की छोटी सी भी घटना बड़ी त्रासदी का सबब बन सकती है’ तो इलाज क्या है? ‘इलाज है स्थानीय उपलब्ध मटेरियल से, परंपरागत शैली में निर्माण।

सरल शब्दों में कहें तो आज की व्यावहारिकताओं को ध्यान में रखते हुए भवन निर्माण में कांक्रीट और लकड़ी का प्रयोग.’ वो आगे बताते हैं, ‘लेकिन ऐसा करना मौजूदा नीतियों के तहत इतना जटिल हो गया है कि आप चाह कर भी लकड़ी का प्रयोग नहीं कर सकते। तमाम बंदिशें पहले इसे अव्यावहारिक बनाती हैं, फिर इसकी कीमत भी बढ़ जाती है।’

इन दरकते पहाड़ों पर जनसंख्या के बढ़ते दबाव और विकास के दौड़ते पहिये पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इंडिया ग्रीन्स पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष सुरेश नौटियाल कहते हैं, ‘बढ़ती जनसंख्या अपने आप में एक त्रासदी है। इससे निपटने में हम पहले ही देरी कर चुके हैं।

रही बात विकास की, तो हमें समझना होगा कि विकास की जो परिभाषा मैदानी राज्यों में कारगर है, वो पहाड़ी क्षेत्रों में प्रासंगिक नहीं। हमें हिमालय को बचाना है तो उसे समझना होगा, उसके अनुरूप रहना होगा।’ इस बात में दो राय नहीं कि हिमालय को अगर हमने कष्ट दिया तो वो हमें कष्ट देगा। अगर हिमालय की तस्वीर हमने अपनी चाहतों के रंगों से बनाई तो वो तस्वीर त्रासदी की ही बनेगी

टॅग्स :हिमालयभारत
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