ब्लॉगः भारतीय सेना के संग स्नाइपर राइफल की जंग
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: January 6, 2019 05:45 IST2019-01-06T05:45:51+5:302019-01-06T05:45:51+5:30
भारतीय सशस्त्र सेना में जो स्नाइपर राइफल इस्तेमाल की जा रही है उनमें-मौसर एसपी66 (जर्मन मेक बोल्ट एक्शन), आईएमआई गलिल 7.62 स्नाइपर (इजराइल मेक), हेकलर एंड कोच पीएसजी 1 (जर्मन मेक), ड्रेगुनोव एसव्हीडी-59 डेसग्निटेड माक्स्र्मन राइफल-डीएमआर (रशियन मेक), ओएसव्ही96 (रशियन मेक) है.

ब्लॉगः भारतीय सेना के संग स्नाइपर राइफल की जंग
दुनिया भर में निशानेबाज लंबी दूरी तक दुश्मन के सैनिकों को मारने के लिए स्नाइपर राइफल का इस्तेमाल करते रहे हैं. अमेरिकन गृह युद्ध में पहली बार इस किस्म की राइफल का इस्तेमाल हुआ था. इस किस्म की राइफल में दूर की चीज पास में और बड़ी दिखती है तथा अच्छा निशाना लगाने के लिए मदद मिलती है. स्नाइपर की किसी भी इंफेंट्री यूनिट में एक अलग ही पहचान है, इस स्नाइपर की बदौलत एक यूनिट को लंबी दूरी पर मौजूद दुश्मन को मारने में घातक सिद्ध होता है.
भारतीय सेना में 50 के दशक के उत्तरार्ध तक प्रत्येक इंफैंट्री बटालियन में 10 सैनिकों का स्नाइपर सेक्शन हुआ करता था. यह सेक्शन सीधे कमांडिंग ऑफिसर के अधीन संचालित होता था. इस सेक्शन के पास ली एनफील्ड. 303 नंबर 4 मार्क1(टी) राइफल हुआ करती थी. यह हथियार उस समय की सबसे कारगर स्नाइपर राइफलों में से एक थी. इस हथियार ने भारतीय सेना के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान खुद के लिए नाम कमाया था. एक समय था जब महू के इन्फैंट्री स्कूल में 1970 तक एक बहुत कठिन स्नाइपर कोर्स भी चलाया जाता रहा था. इसके बाद हमने 60 के दशक में अर्ध स्वचालित 7.62 एम एम राइफल पर अपना हाथ जमाया. पुरानी स्नाइपर राइफल के लिए कोई विकल्प नहीं मिला जिस वजह से स्नाइपर राइफल और स्नाइपर सेक्शन दोनों ही 30 साल के लिए सेना से गायब हो गये.
सशस्त्र सेना में अभी
फिलहाल भारतीय सशस्त्र सेना में जो स्नाइपर राइफल इस्तेमाल की जा रही है उनमें-मौसर एसपी66 (जर्मन मेक बोल्ट एक्शन), आईएमआई गलिल 7.62 स्नाइपर (इजराइल मेक), हेकलर एंड कोच पीएसजी 1 (जर्मन मेक), ड्रेगुनोव एसव्हीडी-59 डेसग्निटेड माक्स्र्मन राइफल-डीएमआर (रशियन मेक), ओएसव्ही96 (रशियन मेक) है. इन स्नाइपर राइफल का उपयोग सेना, नौसेना के कमांडो-मारकोस, वायुसेना के गरुड़ कमांडो एवं एनएसजी कर रही है. मुंबई पुलिस, बीएसएफ के पास बैरेट एम107 और विध्वंसक स्नाइपर रायफल है. पैरा स्पेशल फोर्सेस गलाट्ज स्नाइपर राइफल इस्तेमाल करती हैं.
एक अद्वितीय निशानेबाज जो स्नाइपर कहलाता है, के लिए असली परीक्षा रहती है जब वह प्रथम गोली को 600 मीटर से टारगेट के सर पर दागता है और 1000 मीटर से दुश्मन की शक्ल के टारगेट पर छाती पर सही निशाना लगा पता है-वह भी जब उसे काफी समय तक अपने छुपाव की जगह पर इंतजार करना पड़ता है. इस परीक्षा में यदि एक सैनिक सफल नहीं होता तो वह मार्क्समेन या शार्प शूटर कहलाएगा.
एक अच्छे स्नाइपर के लिए कुछ जरूरी विशेषतायें होना बेहद अहम है- धीरज, उत्तम नेत्रज्योति, त्रिकोणमिति (ट्रिग्नोमेट्री), मौसम विज्ञान, भूमि और गणित का ज्ञान और मजबूत पकड़ वाला मजबूत हाथ होना जरूरी है. सेना में घातक प्लाटून और पैरा कमांडो यूनिट में स्नाइपर की जरूरत हर समय बनी रहती है एवं उनकी प्रशिक्षण और परीक्षण के लिए कदम लिए जाते हैं. भारतीय सेना ने स्नाइपर कोर्स को दोबारा शुरू किया है लेकिन नये हथियारों की कमी से बेहतर रिजल्ट अब भी नहीं मिल पा रहे हैं.
ड्रेगुनोव स्नाइपर राइफल
1963 में सोवियत यूनियन में बनी हुई सेमी ऑटोमेटिक स्नाइपर राइफल के प्रणोता रहे है-येव्जेनी ड्रेगुनोव जिन्होंने 1958 में नयी स्नाइपर राइफल की बनावट को स्थिरता दी और 200 स्नाइपर राइफल का पहला ऑर्डर इझमाश कंपनी को मिला जिसका नाम बाद में बदलकर कालशीनिकोव कनसर्न हुआ. तब से विश्व के कई देशों में ड्रेगुनोव को एक बेहतर स्नाइपर राइफल का तमगा हासिल हुआ है. इस हथियार के कई मॉडेल इजाद हो चुके हैं. यह राइफल गोली से निकली गैस की मदद से चलती है. इसकी बैरेल की लंबाई 620 एमएम है एवं वजन 4.30 से 5.02 किलोग्राम के बीच है. इसकी लंबाई 1225 एमएम (48.2 इंच) है. इसमे इस्तेमाल गोली 7.62 गुणा 54 एमएम की है जो प्रति मिनिट 30 गोली की ऱफ्तार से फायर की जा सकती है. इसकी कारगर रेंज 800 मीटर है, इसपर टेलीस्कोपिक साइट और नाइट विजन दूरबीन भी लगाई जा सकती है.
नई स्नाइपर राइफल
भारतीय सेना अब 2018 में नयी स्नाइपर राइफल की खरीद के लिए खोजबीन कर रही है. भारतीय सेना अपने लिए 5719 स्नाइपर राइफल 982 करोड़ रुपये से खरीदने के लिए खरीद फरोख्त की जा रही है. रक्षा अधिग्रहण समिति ने इस खरीद के लिए अपनी हरी झंडी दे दी है. 2019 के मध्य तक इस किस्म की राइफल की खरीद पर मुहर लग जाएगी. इसके बाद कम से कम तीन साल और लगेंगे जब हथियार का परीक्षण किया जाएगा और नये हथियार और गोलियां भारतीय सेना तक पहुचेंगे. यही इस प्रक्रिया की विडंबना है. इस वक्त जो स्नाइपर राइफल इस्तेमाल की जा रही है, उसके बनिस्पत नयी राइफल की कारगर रेंज ज्यादा और सही निशाने पर लगने वाली होगी. 7.62 एमएम गोली की बनिस्पत 8.6 एमएम की गोली में ज्यादा दूरी की पहुंच और मारक क्षमता मौजूद है. नये हथियार को भारत में बनाने पर भी बात की जाएगी, जिसमे प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण पर समझौता किया जाएगा. भारतीय इंफेंट्री की यूनिटों को एक बेहतर विकल्प मिलेगा.
इसके साथ 50,000 गोलियां भी निर्यातक से खरीदी जाएंगी एवं 52,000 को भारत में बनाया जाएगा. इस समय सेना की यूनिटों में प्रेक्टिस के लिए गोलियों की कमी है, जिसके चलते स्नाइपर की ट्रेनिंग पर कुछ हद तक असर पड़ रहा है. एक अच्छे स्नाइपर के लिए कम से कम दो साल की प्रशिक्षण की जरूरत महसूस की जाती है. पाकिस्तान की तरफ से अमेरिकी मेक की रेमिंगटन मेक की स्नाइपर राइफल इस्तेमाल की जा रही है, जिसकी कारगर रेंज 1500 मीटर है. इंफेंट्री स्कूल, महू (इंदौर के पास, मध्य प्रदेश में) प्रति वर्ष चार से छह विशेष प्रशिक्षण कोर्स होते है. स्नाइपर के प्रशिक्षण में अब तकनीकी रूप से जानकारी के अलावा दिमागी कसरत एवं शारीरिक कसावट पर भी जोर दिया जा रहा है. एक अच्छे स्नाइपर को योग भी सिखाया जाता हैं तथा सांस पर अपना नियंत्रण रखने की कला में निपुण होना जरूरी है. इसके उपरांत यूनिट में जा कर ये स्नाइपर अपने हथियारों से आगे का प्रशिक्षण लेते हैं.
इस समय कुछ आतंकियों के पास भी स्नाइपर राइफल देखी गयी है. आतंकियों ने कश्मीर में हमारे सीआरपीएफ कैंप, सशस्त्र सीमा बल, एसएसबी और सीआईएसएफ के जवानों को स्नाइपर राइफल की मदद से लंबी दूरी से पेड़ों पर चढ़कर निशाना लेकर मारा था. हमारे सैनिक कम रोशनी में मोबाइल का इस्तेमाल खुले इलाके में कर रहे थे जब इस तरह से स्नाइपर की हरकत में जान गंवानी पड़ी थी. अब जरूरत है हमारी स्नाइपर राइफल की खरीद फरोक्त की प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा किया जाए और यूनिटों को अधिक मात्र में गोलियों मिले जिससे उनके स्नाइपर का प्रशिक्षण पूरी तरह से कारगर सिद्ध हो.
(लेखक सेवा निवृत्त कर्नल हैं )