अब भी पचास पार कर चुकी पीढ़ी को रेडियो पर खबरें सुनते हुए याद आने लगते हैं देवकीनंदन पांडे, अशोक वाजपेयी, विनोद कश्यप, अनादि मिश्र, रामानुज प्रसाद सिंह, राजेंद्र अग्रवाल, इंदु वाही जैसे आकाशवाणी के श्रेष्ठ न्यूज रीडर. तब माता-पिता अपने बच्चों से कहा करते थे कि वे देवकीनंदन पांडे और अन्य समाचार वाचकों की बुलंद आवाज में सुनाई जा रही खबरों को सुनें ताकि वे शब्दों का शुद्ध उच्चारण जान लें.
दरअसल एक दौर था जब देश आकाशवाणी से प्रसारित होने वाली खबरों को गंभीरता से सुनता था और उन पर चर्चाएं हुआ करती थीं. हालांकि देवकीनंदन पांडे ने हजारों बार खबरें पढ़ीं, पर नेहरूजी और इंदिरा गांधी की मृत्यु के समाचारों को पढ़ते हुए उनके हाथ कांप रहे थे, वे बताते थे. इतनी बड़ी शख्सियतों की मृत्यु का समाचार देश को देना कोई आसान काम नहीं था. देवकीनंदन पांडे के साथी उनसे नुक्ते के प्रयोग से लेकर शब्दों के सही उच्चारण को सीखा करते थे.
आकाशवाणी की लोकप्रिय समाचार वाचिकाओं में विनोद कश्यप भी थीं. 30 वर्षों से अधिक समय तक अपनी आवाज से समाचारों को घर-घर पहुंचाने वाली विनोदजी 1992 में आकाशवाणी से रिटायर हुई थीं. उनकी 2019 में मृत्यु हुई. विनोद कश्यप ने ही देश को भारत-चीन युद्ध, भारत पाकिस्तान युद्ध ( 1965, 1971), और लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के समाचार सुनाए थे.
आकाशवाणी के महान समाचार वाचकों की चर्चा हो और अंग्रेजी भाषा के समाचार वाचक मेलविल डिमेलो का नाम छूट जाए, यह तो नहीं हो सकता. पंडित नेहरू ने आकाशवाणी से 30 जनवरी, 1948 को रात 8 बजे देश-दुनिया को रुंधे गले से महात्मा गांधी के संसार से चले जाने का समाचार दिया. उसके फौरन बाद 35 साल के एंग्लो इंडियन नौजवान मेलविल डिमेलो ने अंग्रेजी के समाचार बुलेटिन में विस्तार से महात्मा गांधी की हत्या संबंधी खबर सुनाई. उन्होंने ही बापू की महाप्रयाण यात्रा का आंखों देखा हाल सुनाया. आकाशवाणी पहली बार किसी शख्यिसत की अंतिम यात्रा की कमेंट्री का प्रसारण कर रही थी.
उस शवयात्रा का आंखों देखा हाल जयपुर में जसदेव सिंह नाम का एक नौजवान भी सुन रहा था. उसने उस दिन तय कर लिया था कि वह भी रेडियो में कमेंट्री के पेशे से जुड़ेगा. वह हुआ भी. जसदेव सिंह बताते थे कि मेलविल डिमेलो ने लगातार सात घंटे तक कमेंट्री सुनाई. उन्होंने सारे माहौल को अपने शब्दों से जीवंत कर दिया था. उस भावपूर्ण कमेंट्री को सुनकर करोड़ों हिंदुस्तानी रोए थे.
अब हमारे यहां देवकीनंदन पांडे या विनोद कश्यप जैसे श्रेष्ठ समाचार वाचक क्यों नहीं आ रहे? आखिर कमी किस स्तर पर है? कौन देगा इस सवाल का जवाब?