ब्लॉग: खत्म नहीं हुई है रेडियो की प्रासंगिकता

By रमेश ठाकुर | Published: February 13, 2024 09:57 AM2024-02-13T09:57:02+5:302024-02-13T09:58:54+5:30

सूचना या मनोरंजन विधाओं में चाहे कितने ही साधन क्यों न उपलब्ध जाएं, पर रेडियो की अहमियत और उसकी प्रासंगिकता कभी खत्म नहीं होगी। विश्व रेडियो दिवस सालाना 13 फरवरी को मनाया जाने वाला एक अंतरराष्ट्रीय दिवस है, जिसे यूनेस्को ने अपने 36 वें वार्षिक सम्मेलन से मनाने का निर्णय लिया था।

World Radio Day Radio's relevance has not ended | ब्लॉग: खत्म नहीं हुई है रेडियो की प्रासंगिकता

विश्व रेडियो दिवस सालाना 13 फरवरी को मनाया जाता है

Highlightsरेडियो की अहमियत और उसकी प्रासंगिकता कभी खत्म नहीं होगीविश्व रेडियो दिवस सालाना 13 फरवरी को मनाया जाता हैहिंदुस्तान में भी आजादी के कुछ दशकों तक संचार का प्रमुख जरिया रेडियो ही रहा


समूचा संसार आज ‘विश्व रेडियो दिवस’ मना रहा है। रेडियो की अहमियत मानव जीवन से कितना वास्ता रखती है, इसका अंदाज मौजूदा वर्ष-2024 की थीम से लगाया जा सकता है। इस बार की थीम ‘सूचना देने, मनोरंजन करने और शिक्षित करने वाली एक सदी’ है जिसका उद्देश्य रेडियो के उल्लेखनीय अतीत, प्रासंगिक वर्तमान और गतिशील भविष्य पर व्यापक प्रकाश डालना है।

सूचना या मनोरंजन विधाओं में चाहे कितने ही साधन क्यों न उपलब्ध जाएं, पर रेडियो की अहमियत और उसकी प्रासंगिकता कभी खत्म नहीं होगी। विश्व रेडियो दिवस सालाना 13 फरवरी को मनाया जाने वाला एक अंतरराष्ट्रीय दिवस है, जिसे यूनेस्को ने अपने 36 वें वार्षिक सम्मेलन से मनाने का निर्णय लिया था। 13 फरवरी ही वह तारीख थी जब 1946 में अमेरिका में पहली बार रेडियो ट्रांसमिशन से संदेश भेजा गया था और संयुक्त राष्ट्र रेडियो की शुरुआत हुई। इसलिए संयुक्त राष्ट्र रेडियो की वर्षगांठ के दिन से ही वर्ल्ड रेडियो डे मनाने का चलन आरंभ हुआ। विश्व के ऐसे कई छोटे मुल्क जो अब भी काफी पिछड़े हुए हैं, वो सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिहाज से आधुनिक युग में भी रेडियो पर ही निर्भर हैं।

हिंदुस्तान में भी आजादी के कुछ दशकों तक संचार का प्रमुख जरिया रेडियो ही रहा। 80 के दशक से पूर्व जनमानस का सीधा वास्ता भी रेडियो से ही होता था। संचार के विभिन्न आयाम जैसे गाना, समाचार, स्वर चित्रहार, अच्छी-बुरी सभी सूचनाएं रेडियो से ही मिलती थीं। लाइव मैच की कमेंट्री हो, या सरकारी कामकाज, खेतीबाड़ी, रोजगार आदि की जानकारी का भी एकमात्र साधन रेडियो ही होता था। नब्बे के दशक के बाद जैसे ही देश ने बदलाव की अंगड़ाई ली, उसके बाद बहुत कुछ पीछे छूट गया, काफी कुछ बदला। जबसे रंगीन टीवी का आगाज हुआ, लोगों की अभिरुचि एकाएक रेडियो से कम हुई। इसके बाद ’आल इंडिया रेडियो’ ने भी प्रादेशिक स्तर पर कई स्टेशनों को समेट लिया। तब, दर्शक तेजी से टीवी की ओर दौड़े, लेकिन एक वर्ग ऐसा था जिसका मन फिर भी रेडियो से नहीं डगमगाया। मौजूदा केंद्र सरकार रेडियो के प्रचार व प्रसार-प्रसारण पर ज्यादा ध्यान दे रही है। प्रधानमंत्री खुद अपना पसंदीदा प्रोग्राम 'मन की बात' रेडियो पर करते हैं. रेडियो दिवस के मनाने की पीछे भी एक लंबी कहानी है। ‘स्पेन रेडियो अकादमी’ ने 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाने के लिए पहली बार सार्वजनिक रूप से प्रस्ताव रखा था। फिर साल 2011 में यूनेस्को के सदस्य देशों ने उस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकारा। तब जाकर 13 फरवरी का दिन ‘विश्व रेडियो दिवस’ के लिए मुकर्रर हुआ।

Web Title: World Radio Day Radio's relevance has not ended

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