सारंग थत्ते का ब्लॉगः विकलांगता पेंशन पर टैक्स ठीक नहीं
By सारंग थत्ते | Published: July 1, 2019 11:53 AM2019-07-01T11:53:50+5:302019-07-01T11:53:50+5:30
स्वतंत्नता से पहले ब्रिटिश सेना के अधीन रहते हुए भी यह कानून 1922 में बना था कि ऐसे सैनिकों से किसी भी प्रकार का टैक्स नहीं लिया जाएगा जिन्हें सेना में रहते चोटिल या विकलांगता के चलते दी गई पेंशन मिलती हो. लेकिन 24 जून 2019 को वित्त मंत्नालय के अधीन केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने एक अधिसूचना जारी की है, जिसके तहत सैन्य कर्मियों को दी जाने वाली विकलांगता पेंशन अब कर योग्य होगी.
सेना में आसपास मौजूद खतरों का अंदाज लगाया जा सकता है, लेकिन कोई विपदा अपने ऊपर आएगी यह पूर्वविदित नहीं होता. आकस्मिक दुर्घटना या गोलीबारी या ट्रेनिंग के दौरान गिरना या चोट लगना सेना की सेवा का एक अभिन्न अंग है. जांबाज सेनानी जोश में बहुत कुछ करने में सक्षम हो जाते हैं तब अपनी चिंता नहीं करते बल्कि देश के लिए कुछ करने का ध्येय ही सामने रहता है. इसी जोश और परंपरा के चलते कई बार वे चोटिल हो जाते हैं.
ऐसी किसी भी किस्म की सेवा के दौरान चोटिल होने वाले सैनिकों और अधिकारियों को सेना बेहतर चिकित्सा उपलब्ध कराती है. कुछ समय तक पूर्ण आराम और सिक लीव का भी प्रबंध होता है. कई बार चोट इतनी गंभीर होती है कि सेना की मेडिकल कोर को निर्णय लेना पड़ता है और नियत सेवाकाल से पहले ही सेनानी को मजबूरन घर का रास्ता देखना पड़ता है.
स्वतंत्नता से पहले ब्रिटिश सेना के अधीन रहते हुए भी यह कानून 1922 में बना था कि ऐसे सैनिकों से किसी भी प्रकार का टैक्स नहीं लिया जाएगा जिन्हें सेना में रहते चोटिल या विकलांगता के चलते दी गई पेंशन मिलती हो. लेकिन 24 जून 2019 को वित्त मंत्नालय के अधीन केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने एक अधिसूचना जारी की है, जिसके तहत सैन्य कर्मियों को दी जाने वाली विकलांगता पेंशन अब कर योग्य होगी.
हालांकि यह टैक्स उन पर नहीं लगेगा जिन्हें सेना की सेवाकाल की शर्तो को विकलांगता की वजह से छोड़ना पड़ा था. यह उन कार्मिकों के लिए लागू नहीं होता है, जिन्हें सेवा में अक्षम रहने के कारण सेवा से बाहर कर दिया गया था. सशस्त्न बल के जवान जो अपनी सेवा के कारण किसी प्रकार की विकलांगता झेलते हैं, उन्हें एक अलग विकलांगता पेंशन मिलती है. यह विशेष पेंशन राशि उनके रैंक और विकलांगता के प्रकार पर निर्भर करती है.
अब यह एक विवाद का कारण बन पड़ा है और सैन्य कर्मी इस फैसले से नाखुश हैं. देश के लिए अपनी सेवा अर्पित करने वालों के प्रति यह रूखा व्यवहार अफसोसजनक है. सेना तथा वित्त मंत्नालय में आपसी मंत्नणा के अभाव में इस प्रकार की अधिसूचना का प्रकाशन भी अपने आप में कई सवाल पैदा करता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द-से-जल्द इस पर सरकार अपनी नीति स्पष्ट करेगी.