आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने एनसीबी के पर कतरे! हरीश गुप्ता का ब्लॉग
By हरीश गुप्ता | Published: November 5, 2020 01:38 PM2020-11-05T13:38:14+5:302020-11-05T13:39:38+5:30
बॉलीवुड ड्रग जांच मामले में सभी को समन भेज दिया और छोटे ड्रग पेडलर्स व ड्रग लेने वालों को गिरफ्तार किया. आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने एनसीबी को एक झटका दिया और उसकी मुख्य शक्ति को छीन लिया.
सुशांत सिंह राजपूत मामले के झटके अभी भी जारी हैं. सीबीआई ने समझदारी दिखाते हुए जल्दबाजी में कार्रवाई न करने और रिया चक्रवर्ती को आत्महत्या मामले में अपमानित या परेशान नहीं करने का रवैया अपनाया था. लेकिन ऐसा लगता है कि राकेश अस्थाना की अगुवाई वाले नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने मुंह से ज्यादा बड़ा कौर ले लिया.
उसने अति उत्साह में हद लांघकर बॉलीवुड ड्रग जांच मामले में सभी को समन भेज दिया और छोटे ड्रग पेडलर्स व ड्रग लेने वालों को गिरफ्तार किया. आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने एनसीबी को एक झटका दिया और उसकी मुख्य शक्ति को छीन लिया.
एनसीबी चार ऐसी जांच एजेंसियों में से एक है, जहां एक अधिकारी के समक्ष किसी व्यक्ति द्वारा दिया गया कोई भी बयान इकबालिया बयान के रूप में स्वीकार्य है. आम तौर पर, सीआरपीसी की धारा-164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयान को ही इकबालिया बयान माना जाता है.
एनसीबी, प्रवर्तन निदेशालय, सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और यहां तक कि आयकर अधिकारियों को कानून के तहत अधिकार दिए गए हैं कि उनके किसी अधिकारी के सामने दिए गए बयान को अदालत में दिए गए इकबालिया बयान के समान ही माना जाए. सीबीआई, राज्य पुलिस और अन्य एजेंसियों को यह विशेषाधिकार हासिल नहीं है.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने नारकोटिक्स ड्रग्स साइकोट्रोपिक सबस्टेंस (एनडीपीएस) अधिनियम, 1985 के तहत एनसीबी को झटका दिया और इकबालिया बयान लेने की शक्ति का दुरुपयोग करने की वजह से इस अधिकार को निष्प्रभावी कर दिया. एनसीबी से अदालत ने कहा कि एनसीबी के ऐसे अधिकारी पुलिस अधिकारी हैं, और उनके सामने दिया गया बयान सबूत के तौर पर स्वीकार्य नहीं है.
यह एनसीबी के लिए बहुत बड़ा झटका है और केंद्रीय गृह मंत्रलय चिंतित है क्योंकि एनसीबी उसके अधीन है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की छाया प्रवर्तन निदेशालय और इस तरह के अन्य निकायों की बेशुमार शक्तियों पर भी पड़ सकती है. सरकार में अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि मंत्रलय इस फैसले की समीक्षा के लिए कह सकता है जो कि 2:1 के बहुमत से दिया गया है. लेकिन फिलहाल तो एनसीबी के पंख कतर ही दिए गए हैं.
मुमरू पर क्यों नहीं रहा भरोसा
जी.सी. मुमरू उन दिनों से प्रधानमंत्री मोदी के सबसे पसंदीदा गुजरात कैडर के अधिकारी थे, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने तब सभी संवेदनशील मामलों को संभाला जब मोदी यूपीए के दौर में सीबीआई और अन्य एजेंसियों के हमले का सामना कर रहे थे. यह मुमरू ही थे जो उन उथल-पुथल भरे वर्षो के दौरान दिल्ली में शीर्ष कानूनी दिग्गजों के साथ समन्वय करते थे. झारखंड के रहने वाले विनम्र और समझदार आईएएस अधिकारी को अहम पद दिए गए और आखिरकार मोदी ने उन्हें जम्मू-कश्मीर के पहले उपराज्यपाल के रूप में श्रीनगर भेजा.
यह उनका पहला स्वतंत्र प्रभार था. मोदी को उनकी क्षमताओं पर बहुत भरोसा था. लेकिन चीजें कहीं गड़बडा़ गईं और पीएमओ चिंतित हो गया. शायद मोदी को मुमरू वांछित परिणाम देने में विफल रहे. मोदी इस बात से नाखुश थे कि उन्होंने राज्य में बड़े पैमाने पर यात्र नहीं की और खुद को श्रीनगर के भव्य राजभवन तक सीमित रखा.
जैसे कि यह पर्याप्त नहीं था, मुख्य सचिव के साथ भी उनकी लड़ाई चल रही थी जो सेवा में उनसे वरिष्ठ थे. अंत में, मोदी ने सड़ांध को खत्म करने और कुछ साहसिक फैसले लेने के लिए राजनीतिक रूप से वजनदार मनोज सिन्हा को भेजने का फैसला किया. यदि सिन्हा प्रधानमंत्री के लिए महत्वपूर्ण थे तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ भी उनकी घनिष्ठता थी. सिन्हा एक राजनीतिक व्यक्ति हैं और घाटी में राजनीतिक वर्ग के साथ व्यक्तिगत तालमेल भी उन्होंने विकसित किया है.
शाह पहुंच से बाहर
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का स्वास्थ्य भाजपा में लगातार चिंता का कारण बना हुआ है. हालांकि वे कोविड के हमले के बाद थकान से उबर चुके हैं लेकिन वे यात्र करने से बच रहे हैं. काफी हद तक इसी कारण से उन्होंने बिहार चुनाव में प्रचार नहीं किया, जैसी कि उम्मीद थी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के लिए यह एक वरदान साबित हुआ, जिन्होंने 24 रैलियों को संबोधित किया. यहां तक कि शर्मीले भाजपा प्रमुख जे.पी. नड्डा भी अपनी छाया से बाहर आए और एक दिन में पांच रैलियों को संबोधित किया. शाह केवडिया (गुजरात) नहीं गए और दिल्ली में ही रहे. उन्होंने श्रद्धांजलि देने के लिए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के साथ यहां संसद मार्ग पर पटेल चौक जाने का विकल्प चुना. लेकिन वे पश्चिम बंगाल की यात्र करेंगे और वहां रैलियों को संबोधित करना शुरू करेंगे.
बिहार में बेशकीमती राज्यसभा सीट
रामविलास पासवान के निधन के बाद खाली हुई राज्यसभा सीट किसे मिलेगी? कोई भी सुनिश्चित नहीं है. लोजपा अभी भी दिल्ली में राजग का हिस्सा है और इससे चिराग पासवान को उम्मीद है कि उनकी मां रीना पासवान को यह सीट दी जाएगी. लेकिन यह 10 नवंबर को आने वाले विधानसभा चुनावों के नतीजों पर निर्भर करेगा.