सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला, भ्रष्टाचार पर लगाम कसने की दिशा में पहल
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: December 17, 2022 05:14 PM2022-12-17T17:14:05+5:302022-12-17T17:14:05+5:30
सर्वोच्च अदालत ने तो यहां तक कहा है कि यदि शिकायतकर्ता बयान से मुकर जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है या फिर सुनवाई के दौरान वह साक्ष्य पेश करने में असमर्थ रहता है तो किसी अन्य गवाह के मौखिक या दस्तावेजी सबूत को स्वीकार कर अवैध लाभ की मांग संबंधी अपराध को साबित किया जा सकता है।
लोकसेवकों के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के मामले में निश्चय ही सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला ऐतिहासिक साबित होगा। न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गुरुवार को कहा कि भ्रष्टाचार के मामले में अवैध लाभ हासिल करने के आरोप में कोई प्रत्यक्ष मौखिक या दस्तावेजी सबूत नहीं होने की सूरत में किसी लोकसेवक को परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर भी दोषी ठहराया जा सकता है।
दरअसल भ्रष्टाचार करने वालों ने पकड़े जाने से बचने के लिए इतना एहतियात बरतना शुरू कर दिया है कि अब उनके खिलाफ प्रत्यक्ष या दस्तावेजी सबूत हासिल कर पाना बहुत आसान नहीं रह गया है। संभवत: उनके इसी पैंतरे को ध्यान में रख कर सर्वोच्च अदालत ने यह फैसला दिया है ताकि शासन-प्रशासन को साफ-सुथरा एवं भ्रष्टाचारमुक्त बनाया जा सके।
बेशक ईमानदार लोकसेवकों के लिए डरने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम संशोधित विधेयक-2018 में प्रावधान है कि लोकसेवकों पर भ्रष्टाचार का मामला चलाने से पहले केंद्र के मामले में लोकपाल से तथा राज्यों के मामले में लोकायुक्तों से अनुमति लेनी होगी।
यह सच है कि देश में भ्रष्टाचार पहले के मुकाबले कम हुआ है लेकिन वैश्विक स्तर पर इस मामले में हम अभी भी बहुत पीछे हैं। इसी साल जनवरी में जारी हुए ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार संवेदन सूचकांक (सीपीआई 2021) में भारत एक अंक चढ़कर 85वें स्थान पर आ गया।
चूंकि 2020 में भारत 86वें स्थान पर था, इसलिए कहा जा सकता है कि इसमें थोड़ा सुधार हुआ है लेकिन 180 देशों की सूची में भारत जैसा बड़ा देश 85वें स्थान पर रहकर संतोष नहीं कर सकता है। इसलिए सरकार तो अपनी तरफ से भ्रष्टाचार पर अधिकाधिक अंकुश लगाने के लिए प्रयास कर ही रही है। अदालत का ताजा आदेश भी इस मामले में एक बड़ा कदम है।
सर्वोच्च अदालत ने तो यहां तक कहा है कि यदि शिकायतकर्ता बयान से मुकर जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है या फिर सुनवाई के दौरान वह साक्ष्य पेश करने में असमर्थ रहता है तो किसी अन्य गवाह के मौखिक या दस्तावेजी सबूत को स्वीकार कर अवैध लाभ की मांग संबंधी अपराध को साबित किया जा सकता है या अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर मामला सिद्ध कर सकता है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्वोच्च अदालत के इस फैसले से भ्रष्टाचार पर और भी लगाम कसने में मदद मिलेगी और जनता को साफ-सुथरा एवं भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन मिल सकेगा।