ब्लॉग: कुत्तों के काटने के मामले में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद नहीं उठाए जा रहे कोई ठोस कदम, सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में देखे गए मामले

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: March 1, 2023 17:15 IST2023-03-01T16:55:07+5:302023-03-01T17:15:28+5:30

आपको बता दें कि कुत्तों के काटने की सबसे अधिक घटनाएं महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, पश्चिम बंगाल तथा आंध्रप्रदेश में होती हैं। 2019 में आवारा कुत्तों के काटने की 72.77 लाख, 2020 में 46.33 लाख और 2021 में 17.01 लाख घटनाएं हुईं। 2022 में यह आंकड़ा 27 लाख से अधिक का था।

stray dogs bitting cases inceasing steps must be taken to protect citizens | ब्लॉग: कुत्तों के काटने के मामले में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद नहीं उठाए जा रहे कोई ठोस कदम, सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में देखे गए मामले

फोटो सोर्स: ANI (प्रतिकात्मक फोटो)

Highlightsदेश भर में आवारा कुत्तों का आतंक दिन पर दिन बढ़ते ही जा रहा है। ऐसे में सरकार द्वारा अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए है। आवारा कुत्तों द्वारा काटे जाने के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में देखे गए है।

नई दिल्ली: पिछले सप्ताह हैदराबाद में आवारा कुत्तों ने चार साल के एक बच्चे पर हमला कर उसकी जान ले ली. उस घटना का शोर अभी शांत भी नहीं हुआ था कि राजस्थान में उसकी पुनरावृत्ति हो गई. राजस्थान के सिरोही में जिला अस्पताल में कुत्तों ने एक माह के मासूम को नोंचकर मार डाला. 

अस्पताल से बच्चे को उठाकर कुत्ते ने ले ली जान 

इस घटना से आवारा कुत्तों के आतंक का तो पता चलता ही है, साथ ही सरकारी अस्पताल के कर्मचारियों की घोर लापरवाही भी साफ नजर आती है. मृत बच्चे का पिता टी.बी. वार्ड में भर्ती था और उसकी देखभाल के लिए बच्चे की मां अस्पताल में ही मासूम के साथ सो रही थी. मरीजों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार गार्ड कहीं और चला गया था. इसी बीच कुत्ते वार्ड में घुसे तथा मासूम को उठा ले गए और उसकी जान ले ली. 

आवारा कुत्तों के आतंक को सरकार खुद संसद में स्वीकार कर चुकी है. देश में जहां कहीं आवारा कुत्ते किसी की जान ले लेते हैं, तो एक-दो दिन शोर होता है, प्रशासन की ओर से आवारा कुत्तों के आतंक से छुटकारा दिलाने के कदम उठाने के आश्वासन मिलते हैं और फिर सबकुछ शांत हो जाता है. 

आवारा कुत्तों के खिलाफ लिए गए एक्शन पर उठे सवाल

आवारा कुत्तों की नसबंदी और उनके टीकाकरण के लिए समय-समय पर आवाज उठती रहती है. स्थानीय प्रशासन अपने बजट में इस कार्य के लिए प्रावधान भी करते हैं लेकिन घोषणा पर या तो अमल ही नहीं होता या उसकी रफ्तार इतनी धीमी रहती है कि काम का सारा मकसद ही खत्म हो जाता है. 

पिछले साल मानसून सत्र के दौरान केंद्र सरकार ने संसद में आवारा कुत्तों के आतंक के बारे में जो आंकड़े पेश किए, वे स्तब्ध कर देते हैं. इन आंकड़ों से पता चलता है कि सड़क पर घूमने वाले कुत्तों को नियोजित करने के बारे में न तो कोई योजना और न ही कोई दिशानिर्देश अब तक बने हैं. 

कुत्तों के काटने के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में 

सड़क पर पैदल या वाहन पर चलने वालों को आवारा कुत्तों से खुद बचना होता है. गत वर्ष अगस्त में सांसद ए.एम. आरिफ के एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय पशुपालन तथा डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने जानकारी दी थी कि देश में आवारा कुत्तों द्वारा काटने की रोज 12256 घटनाएं होती हैं. 

कुत्तों के काटने की सबसे अधिक घटनाएं महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, पश्चिम बंगाल तथा आंध्रप्रदेश में होती हैं. 2019 में आवारा कुत्तों के काटने की 72.77 लाख, 2020 में 46.33 लाख और 2021 में 17.01 लाख घटनाएं हुईं. 2022 में यह आंकड़ा 27 लाख से अधिक का था. 

क्या कहती है सरकार-कानून

सरकार का कहना है कि उसने कुत्तों के काटने की घटनाओं को रोकने और उनके काटने से होने वाले रेबीज को रोकने के लिए राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम चलाया है. आवारा पशुओं की जन्म दर नियंत्रित करने के लिए भी 2001 में पशु जन्म नियंत्रण नियम बनाया गया था. इसमें 2010 में संशोधन किया गया था. 

सोमवार की रात राजस्थान और पिछले हफ्ते हैदराबाद में हुई घटनाओं से ऐसा नहीं लगता कि पशु जन्म नियंत्रण नियम या राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कानून के क्रियान्वयन के लिए कोई काम देश के किसी हिस्से में हो रहा है. सरकार ने तमाम कायदे-कानूनों के अमल की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों को सौंप दी है. 

आवारा कुत्तों से बचने के लिए जागरूकता में हुआ है इजाफा

इसके लिए स्थानीय निकायों को आर्थिक सहायता भी दी जाती है लेकिन ऐसी कोई मशीनरी नहीं है जो सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के क्रियान्वयन पर नजर रख सके. आवारा कुत्तों से बचने के लिए जागरूकता जरूर बढ़ी है. उसके फलस्वरूप कुत्ते के काटने की घटनाओं में भारी कमी दर्ज की जा रही है. 

आवारा कुत्तों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए

इसके अलावा आवारा कुत्तों के मामले में कई स्वयंसेवी संगठन भी सराहनीय कार्य कर रहे हैं. आवारा पशुओं को बेवजह नहीं मारा जाना चाहिए लेकिन जो कुत्ते नागरिकों की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाते हैं, उन्हें शहर से बाहर जंगलों या निर्जन स्थानों पर तो ले जाकर छोड़ा तो जा ही सकता है. 

आवारा कुत्तों की नसबंदी तथा टीकाकरण अत्यंत सकारात्मक उपाय हैं लेकिन जिन पर अमल की जिम्मेदारी है, उन्हें अपने कर्त्तव्य के निर्वहन में गंभीरता दिखानी होगी. इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है. सिरोही तथा हैदराबाद की घटनाएं दिल दहला देती हैं. आवारा कुत्तों पर अंकुश के लिए भी जवाबदेही तय की जानी चाहिए. यह जवाबदेही केंद्र से लेकर स्थानीय स्तर तक तय होनी चाहिए अन्यथा सिरोही, हैदराबाद की घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी.
 

Web Title: stray dogs bitting cases inceasing steps must be taken to protect citizens

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे