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अंतरिक्ष : कल्पना और हकीकत के बीच के मिटते फासले

By अभिषेक कुमार सिंह | Updated: August 23, 2024 08:51 IST

भारत के मार्स मिशन- मंगलयान और चंद्रयान-1 तथा चंद्रयान-3 की कामयाबी ने वह रास्ता दुनिया को दिखाया कि इरादे पक्के हों तो आर्थिक मजबूरियां भी आखिर में घुटने टेक देती हैं.

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ठळक मुद्देइसरो के चंद्रयान (चंद्रयान-1 और चंद्रयान-3) ने अब तक क्या हासिल किया है, इसे विस्तृत रूप से चंद्रयान-1 के हासिल से समझा जा सकता है. आज हम यह बात बेखटके कह सकते हैं कि चंद्रयानों की बदौलत भारत (इसरो) ने तकनीक के एक अहम पड़ाव को पार कर लिया है. जब चंद्रयान-1 के साथ भेजे गए अमेरिका के मून मिनरलॉजी मैपर (एम-3) ने वहां से एकत्रित डाटा का विस्तृत अध्ययन किया. 

भारत के मार्स मिशन- मंगलयान और चंद्रयान-1 तथा चंद्रयान-3 की कामयाबी ने वह रास्ता दुनिया को दिखाया कि इरादे पक्के हों तो आर्थिक मजबूरियां भी आखिर में घुटने टेक देती हैं. ऐसे में अगर देश चंद्रयान-3 की कामयाबियों का जश्न मनाने के लिए प्रथम राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस (नेशनल स्पेस डे) का आयोजन करता है, तो असल में इस तरह वह दुनिया को यह संदेश देता है कि सपनों की मंजिल हौसले से हासिल की जाती है. 

इस पड़ाव पर पहुंचने के साथ इसरो की ओर से यह दावा भी किया गया है कि भारत जल्द ही चंद्रयान-4 और चंद्रयान-5 के प्रक्षेपण की तैयारी में है. सरकार की मंजूरी मिलते ही इन कार्यक्रमों को भी साकार किया जाएगा. 

23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा पर उतरने (सॉफ्ट लैंडिंग करने) वाले दुनिया के चौथे और इस प्राकृतिक उपग्रह के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाले पहले देश की ऐतिहासिक उपलब्धि की याद को केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला कर लिया. इसरो के चंद्रयान (चंद्रयान-1 और चंद्रयान-3) ने अब तक क्या हासिल किया है, इसे विस्तृत रूप से चंद्रयान-1 के हासिल से समझा जा सकता है. 

22 अक्तूबर, 2008 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अंतरिक्ष में भेजा गया चंद्रयान-1 मिशन करीब एक साल (अक्तूबर 2008 से सितंबर 2009 तक) संचालित किया गया था और 312 दिन की अवधि में इससे चंद्रमा पर पानी के पहले निशान देखने का सौभाग्य भारत के हिस्से आया था. 

चंद्रमा की सतह से करीब सौ किलोमीटर ऊपर चांद के तकरीबन हर हिस्से के ऊपर से गुजरे चंद्रयान-1 ने पता लगाया था कि चंद्रमा के ध्रुवीय इलाकों में पानी की भारी मात्रा बर्फ की शक्ल में मौजूद हो सकती है. यह वाकई पानी ही है, इसकी पुष्टि तब हुई थी, जब चंद्रयान-1 के साथ भेजे गए अमेरिका के मून मिनरलॉजी मैपर (एम-3) ने वहां से एकत्रित डाटा का विस्तृत अध्ययन किया. 

नासा का यह अध्ययन पीएनएएस जर्नल में प्रकाशित हुआ था. यह अध्ययन चांद की ऊपरी पतली परत में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की मौजूदगी तथा उनके रासायनिक संबंध पर केंद्रित था. एम-3 द्वारा चंद्रमा पर पानी के अस्तित्व की पुष्टि इसी अध्ययन का परिणाम था.

इससे पहले चांद से धरती पर लाए गए नमूनों की जांच करने वाले शोधकर्ता लगभग चालीस वर्षों में इतना ही कह पाए थे कि चांद पर कभी कुछ पानी जरूर रहा होगा. लेकिन इसे साबित करने के लिए उनके पास कुछ नहीं था.

आज हम यह बात बेखटके कह सकते हैं कि चंद्रयानों की बदौलत भारत (इसरो) ने तकनीक के एक अहम पड़ाव को पार कर लिया है. यह बहुत मुमकिन है कि जिस तरह अभी गणित के शून्य पर होने वाली कोई भी बातचीत भारत के जिक्र के बिना पूरी नहीं होती है, उसी तरह आगे चलकर चंद्रमा पर कोई भी वैज्ञानिक चर्चा भारत के बिना अधूरी रहेगी. 

यही नहीं, अब भारत जिस तरह गगनयान से भारतीय यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने की योजना पर काम कर रहा है, उससे हमारा देश अंतरिक्ष में एक बड़ी शक्ति के रूप में सामने आएगा. ये अंतरिक्ष कार्यक्रम असल में भारत की पिछलग्गू देश की छवि तोड़ रहे हैं और एक नई मान्यता स्थापित कर रहे हैं कि भारत अब वो देश है, जिसने फैसले लेना शुरू कर दिया है.  

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