निर्माण कार्यों में बेशर्मी का बोलबाला

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: July 18, 2025 07:36 IST2025-07-18T07:34:45+5:302025-07-18T07:36:05+5:30

दुर्भाग्य से, लोग (मतदाता) सार्वजनिक निर्माण कार्यों में गुणवत्ता की मांग न करके इसे हल्के में ले रहे हैं. अंग्रेजों के जमाने के कई पुल सौ साल बाद भी आज कैसे शान से खड़े हैं?

Shamelessness prevails in construction works | निर्माण कार्यों में बेशर्मी का बोलबाला

निर्माण कार्यों में बेशर्मी का बोलबाला

अभिलाष खांडेकर
शुक्र है कि भारतीय टीवी चैनलों ने इंदौर के सोनम और राज रघुवंशी दंपति की हनीमून गाथा से विराम ले लिया है. अब वे अधिक महत्वपूर्ण विषयों और जनहित की वास्तविक समस्याओं को दिखा रहे हैं. गुजरात में वडोदरा के निकट एक पुल का ढह जाना, लगभग सभी राज्यों में जलमग्न शहरी सड़कें, राजमार्गों और अंतर-शहरी सड़कों की खराब स्थिति और ‘सोने पर सुहागा’ भोपाल का 90 डिग्री ‘इंजीनियरिंग चमत्कार’ - इन सब पर राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर पूरी गंभीरता से अब चर्चा हो रही है.

भोपाल, इंदौर, पुणे, गुरुग्राम, बेंगलुरु या कानपुर आदि में लाखों लोग रोजाना इन्हीं समस्याओं से जूझते हैं, पर सरकार में किसी को परवाह नहीं है. एक-दो बारिश में ही सड़कें बदहाल हो जाती हैं; गुजरात, बिहार या मध्य प्रदेश में पुल कभी भी ढह सकते हैं. लेकिन किसी को गुस्सा नहीं आता. ‘मतदाता’ पूरी तरह से बेबस हैं. उनका काम सिर्फ मतदान करना है और विभिन्न  कर चुकाते रहना है.

ये ऐसे मुद्दे नहीं हैं जिन्हें पहली बार उठाया जा रहा है या जिनका सामना भारतीय मतदाता पहली बार कर रहे हैं. यह एक निराशाजनक दस्तूर है कि मानसून आते ही सड़कें जलमग्न हो जाती हैं, नदियां उफान पर आ जाती हैं और नागरिक अंतहीन कष्ट झेलते हैं. कई जानें असमय चली जाती हैं, लेकिन सत्ताधारी बेशर्मी से बेफिक्र बने रहते हैं. शायद वे चुनाव जीतने-जिताने में अधिक व्यस्त रहते हैं.

जनता की सेवा के नाम पर मोदी सरकार के बुनियादी ढांचे के विकास पर अभूतपूर्व ध्यान के कारण, गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आ रही है.  डिजाइन, सामग्री की गुणवत्ता, निर्माण तकनीक और हर स्तर पर ईमानदार निगरानी लगभग पूरी तरह से नदारद है, जिससे निर्माण एजेंसियों की बल्ले-बल्ले है. इस क्षेत्र के विशेषज्ञों ने मुझे बताया है कि आधिकारिक एजेंसियों द्वारा डिजाइन परामर्श आदि के लिए उन्हें अक्सर  बुलाया जाता है, लेकिन जब कार्यान्वयन की बात आती है तो सरकारी इंजीनियरिंग विभाग उन विशेषज्ञों की सलाह को दरकिनार कर देते हैं.

परियोजनाओं के लिए सिर्फ निविदाएं जारी करने में ही जब अधिकारियों की हथेली भरपूर गरम हो जाती है फिर गुणवत्ता की ओर वे क्यों  समय बर्बाद करें?

इन एजेंसियों, ठेकेदारों, इंजीनियरों को वास्तव में ‘राष्ट्र-विरोधी’ या ‘शहरी नक्सली’ करार दिया जाना चाहिए, न कि उन अन्य लोगों को जिन्हें भाजपा यह नाम देना पसंद करती है. मेरा मानना है कि दोषपूर्ण ढांचों के निर्माण में करदाताओं के भारी सार्वजनिक धन की बर्बादी और मानव जीवन की हानि को देशद्रोह माना जाना चाहिए.

जब लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) द्वारा (कु)प्रसिद्ध 90 डिग्री रेलवे ओवरब्रिज का भोपाल में निर्माण किया गया था, तो एक वरिष्ठ संपादक ने एक हालिया पत्रकारिता समागम में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव से सबके सामने एक तीखा सवाल पूछा था. मुख्यमंत्री ने इसका बचाव करने की भरपूर कोशिश की, लेकिन जल्द ही उन्हें इसकी गंभीरता का एहसास हुआ और सरकार ने आठ इंजीनियरों को निलंबित करने का आदेश जारी कर दिया.लेकिन क्या यह सजा काफी है?

पुल बनाने वालों और सड़क ठेकेदारों का भी यही हाल है. जयपुर में सड़क के बीचोंबीच एक बड़ा गड्ढा सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है. सड़क किसने बनाई, अनुबंध की शर्तें क्या थीं? क्या निविदा में सामग्री की कुछ खास विशेषताओं के साथ चिकनी, टिकाऊ सड़क का जिक्र नहीं था? दुर्भाग्य से, लोग (मतदाता) सार्वजनिक निर्माण कार्यों में गुणवत्ता की मांग न करके इसे हल्के में ले रहे हैं. अंग्रेजों के जमाने के कई पुल सौ साल बाद भी आज कैसे शान से खड़े हैं?

इसी तरह, ज्यादातर शहर बाढ़ की सालाना चुनौती का सामना कर रहे हैं, लेकिन कोई भी ‘स्मार्ट सिटी’ इसका सरल समाधान नहीं दे पाई. क्या ऐसी ‘सेवाएं’ पाने पर लोगों को टैक्स का भुगतान करते रहना चाहिए?

चूंकि बड़े पैमाने पर खुले इलाकों का कांक्रीट से भराव करने से अलग-अलग पेशे के लोगों को भारी पैसा मिलता है, इसलिए शहरों में पानी को जमीन में समाने के लिए खुली जगह ही नहीं बच रही है. मुंबई जैसे शहर का लगभग 90 फीसदी हिस्सा पक्का हो चुका है. सड़कों के किनारे कोई नालियां नहीं हैं. अगर नालियां हैं भी, तो वे प्लास्टिक कचरे से अटी पड़ी हैं.

पानी जाने की कोई जगह नहीं है. पिछले साल दिल्ली में भारी बारिश कई घरों में तबाही लाई. एक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने मुझे अपने दशकों पुराने कानूनी कागजात और महत्वपूर्ण किताबें वगैरह दिखाईं, जो एक ही रात में लुगदी बन गईं; राष्ट्रीय राजधानी की एक बढ़िया कॉलोनी में उनके घर में और आसपास के इलाकों में खूब पानी भर गया था.
निर्माण की संदिग्ध गुणवत्ता ने नई दिल्ली स्थित संसद भवन में ‘सेंट्रल विस्टा’ की नई इमारतों को भी नहीं बख्शा. पिछले मानसून में ही उनमें से पानी टपकने लगा था. पर क्या किसी पर कार्रवाई की गई? उसके निर्माणकर्ता काफी वजनदार होने के कारण शायद बच गए.

मुद्दा शासन-प्रशासन का है. भ्रष्टाचार पर ‘जीरो टॉलरेंस’ का दावा करने वाली सरकारें जानबूझकर बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की ओर से आंखें मूंद लेती हैं. कारण सबको पता है - दिल्ली में भी.

भारत में शहरी नियोजन की स्थिति तो बहुत ही चिंतनीय है. शहरी बाढ़, पुलों के गिरने और सड़कों की खराब गुणवत्ता जैसी बुनियादी समस्याओं को रोकने के लिए सरकार को अधिकारियों, ठेकेदारों, डिजाइनरों और इंजीनियरों के बीच स्पष्ट दिखने वाली सांठगांठ पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.

अब समय है कि मतदाताओं को गुणवत्ता और कड़े पर्यवेक्षण की मांग करनी चाहिए, साथ ही भ्रष्टाचार में शामिल लोगों को कड़ी सजा भी देनी चाहिए. जवाबदेही शीर्ष

Web Title: Shamelessness prevails in construction works

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे