सरदार पटेल की जयंती या पुण्यतिथि आती है तो उनके और पंडित जवाहरलाल नेहरू के रिश्तों के लेकर तमाम किस्से कहानियां तैरने लगती हैं। कुछ विशुद्ध गपोड़बाजी होती है तो कुछ जानबूझ कर फैलाई जा रही अफवाहों का हिस्सा। पर हकीकत यह है कि सरदार पटेल और नेहरू के बीच एक अनूठा प्रगाढ़ रिश्ता था। वो रिश्ता शायद आज की राजनीति में बिरले नेताओं के बीच ही देखने को मिल सकता है।
नेहरूजी की गांधीजी और सरदार पटेल से पहली मुलाकात 1916 में लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में हुई थी, जिसमें लोकमान्य तिलक समेत उस दौर के सारे दिग्गज नायक पधारे थे और कांग्रेस में एकता का एक नया दौर दिखा था। तब से आखिरी सांस तक उनका रिश्ता बना रहा। सरदार पटेल से नेहरूजी उम्र में 14 साल छोटे थे। उनके मन में पंडित नेहरू के प्रति अपार स्नेह भरा था। इसीलिए 7 मार्च 1937 को जब गुजरात विद्यापीठ में स्नातक सम्मेलन में यह बात उठी कि पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्रांतीय चुनाव के प्रचार के लिए गुजरात बुलाया जाए तो पटेलजी ने ऐतराज किया।
उन्होंने कहा कि उनको हम गुजरात में वोटों की भीख मांगने नहीं बुलाएंगे। यह लज्जा की बात होगी। हम उनको तब बुलाएंगे जब चुनावों में गुजरात विजयी बन कर कांग्रेस के प्रति अपनी वफादारी साबित कर देगा। तब फूल और हृदय बिछाकर हम नेहरू की अगवानी करेंगे। 1949 में सरदार पटेल ने नेहरूजी के जन्मदिन पर लिखे आशीष पत्र में इस बात को स्वीकारा था कि “कुछ स्वार्थ प्रेरित लोगों ने हमारे विषय में भ्रांतियां फैलाने का यत्न किया है और कुछ भोले व्यक्ति उन पर विश्वास भी कर लेते हैं, लेकिन वास्तव में हम लोग आजीवन सहकारियों और बंधुओं की भांति साथ काम करते रहे हैं।
अवसर की मांग के अनुसार हमने परस्पर एक-दूसरे के दृष्टिकोण के अनुसार अपने को बदला है और एक दूसरे के मता-मत का हमेशा सम्मान किया है, जैसा कि गहरा विश्वास होने पर ही किया जा सकता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकारी धन से नेताओं की मूर्तियां लगाने के विरोधी थे। पर उन्होंने खुद दिल्ली में संसद मार्ग पर 20 सितंबर 1963 को सरदार पटेल की प्रतिमा बनवाई और उसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति राधाकृष्णन से कराया।
उस मूर्ति पर नेहरू का दिया शब्द अंकित है- भारत की एकता के संस्थापक। जवाहरलाल नेहरू ने अपनी इकलौती बेटी को अपने जीवनकाल में कभी सांसद नहीं बनाया था, पर सरदार पटेल की बेटी मणिबेन और बेटे डाह्याभाई पटेल को सांसद बनाया। 1961 में गुजरात में भावनगर में कांग्रेस महाधिवेशन स्थल का नाम सरदार नगर रखा गया। इस बाबत अक्तूबर 1960 में हुए फैसले में नेहरू शामिल थे। ऐसे बहुत सारे प्रसंग हैं जो पंडित नेहरू और सरदार पटेल के संबंधों की आत्मीयता को उजागर करते हैं।