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सारंग थत्ते का ब्लॉग: लद्दाख में धीरे-धीरे ही सामान्य होगी परिस्थिति

By सारंग थत्ते | Updated: February 12, 2021 11:03 IST

भारत और चीन के बीच एलएसी पर स्थिति अब सामान्य होती नजर आ रही है. टैंक सहित बख्तरबंद वाहन और तोपों को पीछे ले जाने के साथ-साथ सैनिकों के भी पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू हो गई है.

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ठळक मुद्देभारत-चीन के बीच बनी सहमति, दोनों देशों की सेना अपने कदम पीछे हटाने को तैयार लद्दाख में नौ महीने के गतिरोध के बाद राहत की स्थिति, भारत को लेकिन रहना होगा सावधानगलवान की घटना अब भी सबके जेहन में है, इसलिए भारतीय सेना सेना अपने कदम फूंक-फूंक कर उठाने पर मजबूर है

आखिर चीनी सेना इस बात पर राजी हो गई है कि पेंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटेंगी. खबर चीनी रक्षा मंत्रालय से आने से आशा की नई किरण नजर आ रही है. 

क्या यह वाकई में सिर्फ किरण है या आने वाले दिनों में पूरा सूरज नजर आएगा. लेकिन एक उम्मीद अब बनी है. जनवरी की 24 तारीख को दोनों देशों के बीच हुई वार्ता में इस बात पर सहमति हुई थी कि दोनों सेनाओं को पीछे हटना है. 

यह प्रक्रिया संगठित और घोषित किए गए प्रबंधन के तहत होनी है. टैंक, बख्तरबंद वाहन और तोपों को पीछे ले जाने के साथ सैनिकों के भी पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. 

भारत-चीन विवाद: नौ महीने के गतिरोध के बाद राहत की स्थिति

नौ महीने के गतिरोध के बीच युद्ध जैसे हालात में हमने अपनी मोर्चाबंदी तेज करते हुए सभी जरूरी साजोसामान और अस्त्न-शस्त्न तथा गोलाबारूद लेह से आगे पहुंचाया था. 

भारतीय सेना ने अपनी ताकत पूर्वी लद्दाख में इस तरह महफूज की थी कि यदि हालात और बिगड़ते हैं तो हमें 1962 के समान झटका न सहन करना पड़े. गुरुवार को रक्षा मंत्री ने आधिकारिक रूप से संसद में इस मुद्दे पर अपने बयान में कई बातों का खुलासा देश और दुनिया के सामने किया है. 

अप्रैल 2020 से पूर्व की स्थिति में पहुंचने की ओर हमारा ध्यान केंद्रित रखना जरूरी है. रक्षा मंत्नी के अनुसार इस दौर में हमने कुछ भी खोया नहीं है लेकिन अब भी बहुत से मुद्दों पर बातचीत और सहमति होना बाकी है. 

पीछे हटने की कार्रवाई के दौरान आपसी पेट्रोलिंग स्थगित रहेगी, यह भी कहा गया है. मंगलवार को नई दिल्ली और बीजिंग से इस बाबत शुरुआती कार्रवाई किए जाने के हुक्म दे दिए गए थे. चीन और भारत ने 10 फरवरी से इस पीछे हटने की कार्रवाई को मंजूरी देकर अपने-अपने इलाकों में कैसे कार्य किया जाएगा, इस पर शुरुआत की है. 

सभी कार्रवाई आपसी तालमेल एवं जमीन पर पुष्टि के साथ ही की जाएगी. यही इस पूरी प्रक्रिया का असली सार है जो कुछ हद तक कठिन भी है.  कहां तक पीछे जा सकते हैं, गए हैं और क्या व्यवस्था की गई है यह जानना जरूरी है. 

भारत-चीन के बीच क्या बनी सहमति और उठते सवाल

चीन अपनी सेना की टुकड़ियों को फिंगर 8 पर ले जाएगा जबकि भारतीय सेना पेंगोंग झील के उत्तरी हिस्से में मौजूद फिंगर 3 के नजदीक स्थित अपनी पक्की और पुरानी धन सिंह थापा पोस्ट तक पीछे हटेगी.

पीछे हटने की खबरें, जिसका खुलासा मीडिया में नजर आ रहा है, उसके अनुसार भारतीय क्षेत्र फिंगर 2 और 3 के पश्चिम तक सीमित रहेगा जबकि झील के हिस्से में चीन फिंगर 4 की लाइन तक पेट्रोलिंग कर सकेगा और भारतीय सेना फिंगर 8 की लाइन तक अपनी पेट्रोलिंग नहीं कर पाएगी. 

इस बात को समझे तो लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल - एलएसी में बदलाव आ सकता है. क्या यह भारतीय सेना को मान्य होगा? हालांकि रक्षा मंत्री के बयान में पेट्रोलिंग का दायरा इस समय लागू नहीं माना जा रहा है. 

इस किस्म के मुद्दे भी रक्षा विशेषज्ञ अपनी ओर से मीडिया में उठा रहे हैं. इसलिए आपसी तालमेल के प्रमुख एवं जरूरी मुद्दों पर नक्शे पर सहमति कैसे बनती है, यह देखना होगा. यह इस पूरी प्रक्रिया का गूढ़ सत्य है.

सबसे प्रमुख मुद्दा जिस पर इतने वर्षो में सहमति नहीं बन सकी है, वह है - एलएसी को माना जाए और दोनों ही सेनाएं उसका सम्मान करें. अब तक इस सांकेतिक रेखा को अपने आप बदली किया जाता रहा है, जिसकी पुनरावृत्ति न हो, इस बात पर दोनों देशों को सहमत होना बेहद जरूरी है. 

भारत को चीन से रहना होगा सतर्क

कोई भी इस स्थिति को अपनी मर्जी से बदल नहीं सकता. पाठकों को याद होगा कि पूर्वी लद्दाख में सीमा के पिलर या तारों की बाड़ लगाने का कोई प्रावधान नहीं है. आमने-सामने मौजूद सेना अपनी कथनी से अपनी सीमा को रेखांकित करती रही है और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप होते रहे हैं. इसी में 1962 से अब तक लगभग 60 वर्ष बीत चुके हैं.

इस पूरी कार्रवाई में भारतीय सेना को बेहद सावधानी बरतनी होगी और दूसरे पक्ष की हरकत, सेना की तादाद कितना पीछे खींची जा रही है और कब तक पूरी होगी एवं जमीन पर उसकी स्थिति को संभावित पुन: आक्रमण की स्थिति में कितना समय लग सकता है, इस जमीनी हकीकत से दो-दो हाथ करने ही होंगे. 

दोनों देशों पर जवाबदेही है, इस वजह से भी सैन्य अधिकारियों की पहल में दिए हुए बिंदुओं के अनुसार ठंडे दिमाग से ही आगे बढ़ना होगा. सीमा पर इस समय आमने-सामने सेना मौजूद होने की वजह से आपसी मानसिक तनाव बढ़ा हुआ है, आवेश में हैं सैनिक. इसलिए भी धैर्य और विवेक का उपयोग करना जरूरी है.

इस समय जो परिस्थिति है उसको पूरी तरह से समझने में और अपने दायरे में सेना की टुकड़ियों को पीछे लाने में समय जरूर लगेगा लेकिन ऊंचाई की पोस्टों पर 29 अगस्त 2020 को की हुई मोर्चाबंदी हमें अब भी सलामत रखनी ही होगी. 

भारतीय सेना को उठाना होगा फूंक-फूंक कर कदम

पिछले नौ महीनों में एक दूसरे पर विश्वास की अहमियत को दरकिनार किया गया था और जिस तरह गलवान में खूनी संघर्ष और झड़प ने हमारे 20 सैनिकों की जान ली, वह अब भी सबके जेहन में है. इसलिए सेना अपने कदम फूंक-फूंक कर उठाने पर मजबूर है.

यह उम्मीद लगाना कि दोनों देशों की सेनाएं ‘पीछे मुड़’ के हुक्म से जल्द से जल्द अप्रैल 2020 की  स्थिति पर पहुंच जाएंगी, शायद कुछ जल्दबाजी होगी. विशेषज्ञों की मानें तो इस पूरी कार्रवाई में 30 से 45 दिन का समय लग सकता है. 

यहां यह भी देखना होगा कि हम चीनी सेना की बातों पर विश्वास तभी कर पाएंगे जब जमीन पर असली स्थिति का मुआयना किया जाएगा और सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को मान्य होगा. हमें इंतजार करना ही होगा. विशेष रूप से मौसम की मार के चलते भी कार्य की गति धीमी रहेगी, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता.

टॅग्स :लद्दाखचीनभारतराजनाथ सिंहभारतीय सेना
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