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प्रेरणादायक रहा है आदरणीय मोहन भागवत जी का जीवन, 75वां जन्मदिवस मना रहे सरसंघचालक

By नरेंद्र मोदी | Updated: September 11, 2025 11:46 IST

मधुकरराव जी का राष्ट्र निर्माण के प्रति झुकाव इतना प्रबल था कि अपने पुत्र मोहनराव को भी इस महान कार्य के लिए निरंतर गढ़ते रहे.

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ठळक मुद्देपिता स्वर्गीय मधुकरराव भागवत जी के साथ निकटता से काम करने का सौभाग्य मिला था.मैंने अपनी पुस्तक ‘ज्योतिपुंज’ में मधुकरराव जी के बारे में विस्तार से लिखा भी है. युवावस्था में उन्होंने लंबा समय गुजरात में बिताया और संघ कार्य की मजबूत नींव रखी.

आज 11 सितंबर है. यह दिन अलग-अलग स्मृतियों से जुड़ा है. एक स्मृति 1893 की है, जब स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में विश्वबंधुत्व का संदेश दिया और दूसरी स्मृति है 9/11 का आतंकी हमला, जब विश्व बंधुत्व को सबसे बड़ी चोट पहुंचाई गई. आज के दिन की एक और विशेष बात है. आज एक ऐसे व्यक्तित्व का 75वां जन्मदिवस है जिन्होंने वसुधैव कुटुंबकम के मंत्र पर चलते हुए समाज को संगठित करने, समता-समरसता और बंधुत्व की भावना को सशक्त करने में अपना पूरा जीवन समर्पित किया है. संघ परिवार में जिन्हें परम पूजनीय सरसंघचालक के रूप में श्रद्धाभाव से संबोधित किया जाता है,

ऐसे आदरणीय मोहन भागवत जी का आज जन्मदिन है. यह एक सुखद संयोग है कि इसी साल संघ भी अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है. मैं भागवत जी को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं और प्रार्थना करता हूं कि ईश्वर उन्हें दीर्घायु व उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें. मेरा मोहन भागवत जी के परिवार से बहुत गहरा संबंध रहा है. मुझे उनके पिता स्वर्गीय मधुकरराव भागवत जी के साथ निकटता से काम करने का सौभाग्य मिला था.

मैंने अपनी पुस्तक ‘ज्योतिपुंज’ में मधुकरराव जी के बारे में विस्तार से लिखा भी है. वकालत के साथ-साथ मधुकरराव जी जीवनभर राष्ट्र निर्माण के कार्य में समर्पित रहे. अपनी युवावस्था में उन्होंने लंबा समय गुजरात में बिताया और संघ कार्य की मजबूत नींव रखी. मधुकरराव जी का राष्ट्र निर्माण के प्रति झुकाव इतना प्रबल था कि अपने पुत्र मोहनराव को भी इस महान कार्य के लिए निरंतर गढ़ते रहे.

एक पारसमणि मधुकरराव ने मोहनराव के रूप में एक और पारसमणि तैयार कर दी. भागवत जी का पूरा जीवन सतत प्रेरणा देने वाला रहा है. वे 1970 के दशक के मध्य में प्रचारक बने. सामान्य जीवन में प्रचारक शब्द सुनकर ये भ्रम हो जाता है कि कोई प्रचार करने वाला व्यक्ति होगा, लेकिन जो संघ को जानते हैं उनको पता है कि प्रचारक परंपरा संघ कार्य की विशेषता है.

गत 100 वर्षों में देशभक्ति की प्रेरणा से भरे हजारों युवक-युवतियों ने अपना घर-परिवार त्याग करके पूरा जीवन संघ परिवार के माध्यम से राष्ट्र को समर्पित किया है. भागवत जी भी उस महान परंपरा की मजबूत धुरी हैं. भागवत जी ने उस समय प्रचारक का दायित्व संभाला, जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश पर इमरजेंसी थोप दी थी.

उस दौर में प्रचारक के रूप में भागवत जी ने आपातकाल-विरोधी आंदोलन को निरंतर मजबूती दी. उन्होंने कई वर्षों तक महाराष्ट्र के ग्रामीण और पिछड़े इलाकों, विशेषकर विदर्भ में काम किया. 1990 के दशक में संघ के शारीरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम के अखिल भारतीय प्रमुख के रूप में मोहन भागवत जी के कार्यों को आज भी कई स्वयंसेवक स्नेहपूर्वक याद करते हैं.

इसी कालखंड में मोहन भागवत जी ने बिहार के गांवों में अपने जीवन के अमूल्य वर्ष बिताए और समाज को सशक्त करने के कार्य में समर्पित रहे. वर्ष 2000 में वे सरकार्यवाह बने और यहां भी भागवत जी ने अपनी अनोखी कार्यशैली से हर कठिन परिस्थिति को सहजता और सटीकता से संभाला. 2009 में वे सरसंघचालक बने और आज भी अत्यंत ऊर्जा के साथ कार्य कर रहे हैं.

भागवत जी ने राष्ट्र प्रथम की मूल विचारधारा को हमेशा सर्वोपरि रखा. भागवत जी का युवाओं से सहज जुड़ाव है और इसलिए उन्होंने अधिक से अधिक युवाओं को संघ कार्य के लिए प्रेरित किया है. वे लोगों से प्रत्यक्ष संपर्क में रहते हैं, और संवाद करते रहते हैं. श्रेष्ठ कार्य पद्धति को अपनाने की इच्छा और बदलते समय के प्रति खुला मन रखना, ये मोहन जी की बहुत बड़ी विशेषता रही है.

अगर हम व्यापक संदर्भ में देखते हैं तो संघ की 100 साल की यात्रा में भागवत जी का कार्यकाल संघ में सर्वाधिक परिवर्तन का कालखंड माना जाएगा. चाहे वो गणवेश परिवर्तन हो, संघ शिक्षा वर्गों में बदलाव हो, ऐसे अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन उनके निर्देशन में संपन्न हुए. कोरोना काल में मोहन भागवत जी के प्रयास  विशेष रूप से याद आते हैं.

उस कठिन समय में उन्होंने स्वयंसेवकों को सुरक्षित रहते हुए समाजसेवा करने की दिशा दी और टेक्नोलॉजी का उपयोग बढ़ाने पर बल दिया. इस वर्ष की शुरुआत में, नागपुर में उनके साथ माधव नेत्र चिकित्सालय के उद्घाटन के दौरान मैंने कहा था कि संघ अक्षयवट की तरह है, जो राष्ट्रीय संस्कृति और चेतना को ऊर्जा देता है.

इस अक्षयवट वृक्ष की जड़ें इसके मूल्यों की वजह से बहुत गहरी और मजबूत हैं. इन मूल्यों को आगे बढ़ाने में जिस समर्पण से मोहन भागवत जी जुटे हुए हैं, वो हर किसी को प्रेरणा देता है. समाज कल्याण के लिए संघ की शक्ति के निरंतर उपयोग पर मोहन भागवत जी का विशेष बल रहा है. इसके लिए उन्होंने पंच परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया है.

इसमें स्व बोध, सामाजिक समरसता, नागरिक शिष्टाचार, कुटुम्ब प्रबोधन और  पर्यावरण के सूत्रों पर चलते हुए राष्ट्र निर्माण को प्राथमिकता दी गई है.  देश और समाज के लिए सोचने वाले हर भारतवासी को पंच परिवर्तन के इन सूत्रों से अवश्य प्रेरणा मिलेगी. संघ का हर कार्यकर्ता वैभव संपन्न भारत माता का सपना साकार होते देखना चाहता है.

इस सपने को पूरा करने के लिए जिस स्पष्ट विजन और ठोस एक्शन की जरूरत होती है, मोहन जी इन दोनों गुणों से परिपूर्ण हैं. मोहन जी के स्वभाव की एक और बड़ी विशेषता ये है कि वो मृदुभाषी हैं. उनमें सुनने की भी अद्भुत क्षमता है.  यह विशेषता न केवल उनके दृष्टिकोण को गहराई देती है, बल्कि उनके व्यक्तित्व और नेतृत्व में संवेदनशीलता और गरिमा भी लाती है.

मोहन जी, हमेशा ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के प्रबल पक्षधर रहे हैं.  भारत की विविधता और भारत भूमि की शोभा बढ़ा रही अनेक संस्कृतियों और परंपराओं के उत्सव में भागवत जी पूरे उत्साह से शामिल होते हैं. वैसे बहुत कम लोगों को ये पता है कि मोहन भागवत जी अपनी व्यस्तता के बीच संगीत और गायन में भी रुचि रखते है. वे विभिन्न भारतीय वाद्ययंत्रों में निपुण हैं.

पठन-पाठन में रुचि उनके अनेक भाषणों और संवादों में साफ दिखती है. पिछले दिनों देश में जितने सफल जन-आंदोलन हुए चाहे स्वच्छ भारत मिशन हो या बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, मोहन जी ने पूरे संघ परिवार को इन आंदोलनों में ऊर्जा भरने के लिए प्रेरित किया. मैं पर्यावरण से जुड़े प्रयासों और सस्टेनेबल लाइफस्टाइल को आगे बढ़ाने के प्रति उनके समर्पण को जानता हूं.

उनका बहुत जोर आत्मनिर्भर भारत पर भी है. कुछ ही दिनों में विजयादशमी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 100 वर्ष का हो जाएगा. यह भी सुखद संयोग है कि विजयादशमी का पर्व, गांधी जयंती, लाल बहादुर शास्त्री की जयंती और संघ का शताब्दी वर्ष एक ही दिन आ रहे हैं. यह भारत और विश्वभर के लाखों स्वयंसेवकों के लिए एक ऐतिहासिक अवसर है.

हम स्वयंसेवकों का सौभाग्य है कि हमारे पास मोहन भागवत जी जैसे दूरदर्शी और परिश्रमी सरसंघचालक हैं, जो ऐसे समय में संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं. एक युवा स्वयंसेवक से लेकर सरसंघचालक तक की उनकी जीवन यात्रा उनकी निष्ठा और वैचारिक दृढ़ता को दर्शाती है.

विचार के प्रति पूर्ण समर्पण और व्यवस्थाओं में समयानुकूल परिवर्तन करते हुए उनके नेतृत्व में संघ कार्य का निरंतर विस्तार हो रहा है. मैं मां भारती की सेवा में समर्पित मोहन भागवत जी के दीर्घ और स्वस्थ जीवन की पुनः कामना करता हूं. उन्हें जन्मदिवस पर अनेकानेक शुभकामनाएं.

टॅग्स :मोहन भागवतBJPआरएसएसअमित शाहजेपी नड्डा
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