Remembering Sardar Vallabhbhai Patel: 15 दिसंबर को हम भारत के महान राष्ट्रनेता सरदार वल्लभभाई पटेल को सम्मान और श्रद्धा के साथ स्मरण करते हैं, जिन्हें विश्व ‘लौहपुरुष’ के नाम से जानता है. उनका जीवन केवल राजनीतिक उपलब्धियों का इतिहास नहीं बल्कि एक दर्शन है, एक ऐसी जीवन-दृष्टि, जो आज के टुकड़े-टुकड़े समाज में हमें पुनः एकजुट होने का आह्वान करती है. 31 अक्तूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में जन्मा यह बालक, जो महात्मा गांधी के संपर्क में आकर राष्ट्रीय आंदोलन का अंग बना, आगे चलकर भारत के राजनीतिक रूपांतरण का सूत्रधार बना.
सरदार पटेल की विरासत केवल 565 रियासतों को एकीकृत करने तक सीमित नहीं है. उनके प्रेरक संदेश हर पीढ़ी को, चाहे वह किसान हो, शिक्षक हो या कोई महत्वाकांक्षी युवा, अपने जीवन में परिवर्तन लाने की प्रेरणा देते हैं. सरदार वल्लभभाई पटेल का सबसे बड़ा और सबसे प्रासंगिक संदेश एकता की अनिवार्यता में निहित है.
उनका यह कथन ‘जब जनता एक हो जाती है, तब उसके सामने क्रूर से क्रूर शासन भी नहीं टिक सकता, अतः जात-पांत के ऊंच-नीच के भेदभाव को भुलाकर सब एक हो जाइए’ केवल प्रेरक शब्द नहीं, राष्ट्र-निर्माण का सुदृढ़ दर्शन है. यह संदेश उस समय दिया गया था, जब भारत स्वतंत्रता के बाद विभाजन की गहरी पीड़ा, अविश्वास और सामाजिक विखंडन से जूझ रहा था.
सरदार पटेल भली-भांति जानते थे कि राजनीतिक स्वतंत्रता तभी सार्थक होगी, जब सामाजिक एकता उसकी आधारशिला बने. जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के नाम पर होने वाला विभाजन राष्ट्र की शक्ति को भीतर से खोखला कर देता है.
इसलिए उन्होंने बार-बार इस बात पर बल दिया कि भारत की विविधता उसकी कमजोरी नहीं, उसकी सबसे बड़ी ताकत है, बशर्ते उसे एकता के सूत्र में पिरोया जाए. देशी रियासतों के एकीकरण में उनकी निर्णायक भूमिका इसी विचार की सजीव अभिव्यक्ति थी.