संवेदनशील राजनेता थे राजीव गांधी?, ‘विपक्ष के नेता नहीं, मनुष्य के तौर पर’ दिया धन्यवाद

By कृष्ण प्रताप सिंह | Updated: May 21, 2025 05:27 IST2025-05-21T05:27:28+5:302025-05-21T05:27:28+5:30

मुझको बुलाया और भारतीय प्रतिनिधिमंडल के साथ न्यूयाॅर्क में होने जा रहे संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन में जाने का अनुरोध किया.

Rajiv Gandhi sensitive politician blog Krishna Pratap Singh Rajiv thanked human being not opposition leader | संवेदनशील राजनेता थे राजीव गांधी?, ‘विपक्ष के नेता नहीं, मनुष्य के तौर पर’ दिया धन्यवाद

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Highlights मुझे उम्मीद है कि आप मेरा अनुरोध मान लेंगे और वहां अपना इलाज भी करवाएंगे. सार्वजनिक रूप से कहना चाहता हूं, क्योंकि मेरे निकट उनको धन्यवाद देने का यही एक तरीका है.भारत रत्न प्रधानमंत्रियों की पारस्परिक सदाशयता जताने वाले इस अनुभव का तफसील से जिक्र किया है.

यकीनन, देश के सातवें (और अब तक के सबसे युवा) प्रधानमंत्री राजीव गांधी की यादें ताजा करने का सबसे अच्छा उपाय गत तीन बार प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 1991 में वरिष्ठ पत्रकार करण थापर के टीवी शो ‘आईविटनेस’ के श्रद्धांजलि कार्यक्रम में ‘विपक्ष के नेता नहीं, मनुष्य के तौर पर’ राजीव को दिया गया धन्यवाद है. यह धन्यवाद कुछ इस तरह दिया गया था : ‘जैसे ही राजीव को पता चला कि मुझको कुछ किडनी संबंधी समस्या है और इलाज की जरूरत है, उन्होंने मुझको बुलाया और भारतीय प्रतिनिधिमंडल के साथ न्यूयाॅर्क में होने जा रहे संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन में जाने का अनुरोध किया.

यह भी कहा कि मुझे उम्मीद है कि आप मेरा अनुरोध मान लेंगे और वहां अपना इलाज भी करवाएंगे. मैंने वैसा ही किया, जैसा राजीव ने कहा था और संभवतः उसी से मेरी जिंदगी बची. राजीव गांधी की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु के बाद मैं यह बात सार्वजनिक रूप से कहना चाहता हूं, क्योंकि मेरे निकट उनको धन्यवाद देने का यही एक तरीका है.’

करण थापर ने अपनी पुस्तक ‘डेविल्स एडवोकेट’ के ‘फोर मेमोरेबल प्राइम मिनिस्टर्स’ अध्याय में दो अलग-अलग राजनीतिक धाराओं से आने वाले इन दोनों भारत रत्न प्रधानमंत्रियों की पारस्परिक सदाशयता जताने वाले इस अनुभव का तफसील से जिक्र किया है.

बहरहाल, देश में सर्वव्यापी हो चला जो कम्प्यूटरीकरण अब हमें खासा सुविधाजनक लगने लगा है, अपने प्रधानमंत्रीकाल में इक्कीसवीं सदी की  संभावनाओं  का लाभ उठाने का आह्वान करते हुए राजीव ने उसका आह्वान किया तो वे सारे विपक्षी दलों के निशाने पर आ गए थे. उस वक्त वे विपक्ष द्वारा अपनी नाक में किया जा रहा दम बर्दाश्त न कर कम्प्यूटरीकरण की नीति से पीछे हट जाते तो?

...इस लिहाज से देखें तो बहुत संभव है कि आने वाला समय हमें उनके दूसरे कदमों की बाबत भी नई सोचों तक ले जाए. खैर, 1944 में 20 अगस्त को मुम्बई में श्रीमती इंदिरा नेहरू व फिरोज जहांगीर की पहली संतान का जन्म हुआ तो नाना पंडित जवाहरलाल नेहरू के खास अनुरोध पर उसका नामकरण आचार्य नरेन्द्रदेव ने किया था.

कहते हैं कि 29 जनवरी, 1948 को राजीव ने खेल-खेल में बापू के पांवों पर कुछ फूल रख दिए तो बापू ने हंसकर कहा था, ‘मनुष्य पर फूल तो उसकी अंतिम सांस के बाद चढ़ाए जाते हैं.’ दुर्योग कि उसके अगले ही दिन बापू शहीद हो गए. बाद में संजय की मौत के बाद अकेली पड़ गईं श्रीमती गांधी राजीव को बरबस राजनीति में खींच लाईं, तो उनके साथ घटे दारुण अघटनीय ने ही राजीव को प्रधानमंत्री पद पर पहुंचाया. प्रधानमंत्री नहीं रहे तो खुद राजीव का अंत भी एक त्रासदी में ही हुआ!

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