ब्लॉग: कांग्रेस के राजनीतिक प्रबंधन पर उठते सवाल

By राजकुमार सिंह | Published: March 16, 2024 09:48 AM2024-03-16T09:48:29+5:302024-03-16T09:49:47+5:30

बेशक सत्ता केंद्रित राजनीति में विचार की जगह स्वार्थ ने ले ली है, लेकिन कांग्रेस जैसी भगदड़ अन्य दलों में नजर नहीं आती। इसलिए भी कि वरिष्ठ नेताओं के भी पलायन का अनुमान लगाने व उसे रोक पाने में कांग्रेस आलाकमान अक्सर नाकाम नजर आता है।

questions arising of congress political management Lok Sabha election 2024 | ब्लॉग: कांग्रेस के राजनीतिक प्रबंधन पर उठते सवाल

(फाइल फोटो)

Highlightsकांग्रेस से पलायन थमता नहीं दिख रहाकांग्रेसियों में पार्टी का हाथ छोड़ने की होड़-सी मची हैदल-बदल की रफ्तार और तेज हो सकती है

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान भी कांग्रेस से पलायन थमता नहीं दिख रहा। दक्षिण भारत को अपवाद मान लें तो उत्तर से लेकर पूर्व और पश्चिम तक कांग्रेसियों में पार्टी का हाथ छोड़ने की होड़-सी मची है। घोषित कार्यक्रम के अनुसार राहुल की यात्रा 20 मार्च को मुंबई पहुंचेगी, लेकिन जारी भगदड़ में पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण तक कई नेता कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं। कारण अलग-अलग हो सकते हैं, पर मंजिल एक ही है- भाजपा और उसके मित्र दल। 

गुजरात में तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और विधानसभा में विपक्ष के नेता रह चुके अर्जुन मोढवाडिया ने कांग्रेस का हाथ झटक दिया। मोढवाडिया के अलावा पार्टी के दो पूर्व विधायक अंबरीश डेर और मुलूभाई कंडोरिया भी भाजपा में चले गए। विधानसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा देनेवाले मोढवाडिया ने कारण रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन से पार्टी की दूरी को बताया है, लेकिन फैसला लेने में उन्हें महीने से भी ज्यादा लग गया। अरुणाचल में तीन विधायक कांग्रेस का हाथ छोड़ चुके हैं। हाल ही में राजस्थान के दो पूर्व मंत्रियों, एक पूर्व सांसद और पांच पूर्व विधायकों ने हाथ छोड़ कर कमल थाम लिया।
 
अनुभव बताता है कि जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आएंगे, दल-बदल की रफ्तार और तेज हो सकती है। बेशक सत्ता केंद्रित राजनीति में विचार की जगह स्वार्थ ने ले ली है, लेकिन कांग्रेस जैसी भगदड़ अन्य दलों में नजर नहीं आती। इसलिए भी कि वरिष्ठ नेताओं के भी पलायन का अनुमान लगाने व उसे रोक पाने में कांग्रेस आलाकमान अक्सर नाकाम नजर आता है। दरअसल हिमाचल प्रदेश में जो कुछ हुआ, उससे तो कांग्रेस के राजनीतिक प्रबंधन पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाता है।

अन्य राज्यों में भी सब कुछ सामान्य नहीं है। गुटबाजी कांग्रेस के राजनीतिक चरित्र का हिस्सा रही है, पर आलाकमान और प्रादेशिक नेताओं के बीच ऐसी संवादहीनता कभी नहीं रही। ऐसा राजनीतिक प्रबंधन तंत्र भी हमेशा रहा, जो देश से लेकर प्रदेशों तक कांग्रेस नेताओं पर नजर रखता था, ताकि बीमारी गंभीर होने से पहले ही जरूरी उपचार किया जा सके। लगता है कि अहमद पटेल के निधन के बाद वैसा कोई राजनीतिक प्रबंधन तंत्र कांग्रेस में नहीं है। हाल यह है कि किसी एक मठाधीश के हवाले पूरे राज्य की राजनीति छोड़ दी जाती है- और बाकी नेता उसके रहमोकरम पर। ये मठाधीश अपनों के अलावा किसी और को पनपने नहीं देते। परिणामस्वरूप आलाकमान की भी उन पर निर्भरता लगातार बढ़ती जाती है। इससे संगठन तो खोखला हो ही रहा है, आलाकमान की कमान भी कमजोर पड़ रही है और क्षत्रप उसे आंखें दिखाने में संकोच नहीं करते। शायद कांग्रेस को भाजपा से कुछ सबक सीखने चाहिए जो शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और रमन सिंह सरीखे क्षत्रपों को बदलने में संकोच नहीं करती- और जिसका आलाकमान अपने ही नहीं, दूसरे दलों के नेताओं से मुलाकात के लिए भी सहज सुलभ रहता है।

Web Title: questions arising of congress political management Lok Sabha election 2024

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