पुलवामा हमला: भारतीय सेना को मानवाधिकार का आईना दिखाने वाली 'अरुंधति रॉय' कहां हैं?

By विकास कुमार | Published: February 15, 2019 05:27 PM2019-02-15T17:27:18+5:302019-02-15T17:39:41+5:30

अरुंधति रॉय का मानवीय पहलू ऐसा प्रतीत होता है, जहां माँ अपने एक बेटे पर तो जान न्योछावर कर रही है लेकिन उसी वक्त अपने दूसरे बेटे को अपनी ममता से महरूम रखती है. लेकिन अरुंधति को ये समझना होगा कि भारतीय समाज में माँ की अवधारणा कभी ऐसी नहीं रही है.

PULWAMA ATTACK: where is the Arundhati Roy? after coward attack of pakistan and Masood Ajhar | पुलवामा हमला: भारतीय सेना को मानवाधिकार का आईना दिखाने वाली 'अरुंधति रॉय' कहां हैं?

पुलवामा हमला: भारतीय सेना को मानवाधिकार का आईना दिखाने वाली 'अरुंधति रॉय' कहां हैं?

अमानवीय, नृशंस और कायराना हमले के बाद देश के 49 जवानों की शहादत से पूरा देश गमगीन है. आतंक के इस नंगे खेल के बाद पूरी दुनिया ने इस हमले की निंदा की है. भले ही 49 जवानों के पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचेंगे लेकिन इसका दर्द देश के सभी घरों में महसूस किया जा रहा है. लेकिन इस बीच आये दिन मानवाधिकारों पर घंटों लेक्चर देने वाली भारत के बौद्धिक जगत की नामी शख्स अरुंधति रॉय का कोई बयान नहीं आया है.

अरुंधति रॉय ने भारत की उस परंपरा को जिंदा रखा है जिसके कारण हिंदुस्तान को पूरी दुनिया में लिबरल और सबको समाहित करने वाला देश माना जाता है. 'वसुधैव कुटुम्बकम' को जब भी भारत के लोग भूलने लगते हैं तो अरुंधति रॉय झट से उन्हें अपनी परंपरा को याद दिलाने के लिए तत्पर हो जाती हैं. 

देश में कश्मीर मुद्दे पर बोलने वाले कुछ बौद्धिक लोगों की कतार का अरुंधति रॉय ने हमेशा से नेतृत्व किया है. भारतीय सेना को मानवाधिकार का आईना दिखाने में उनका अतुलनीय योगदान रहा है जिसके लिए उनकी तारीफ भी होती है. कश्मीर में सेना के पैलेट गन से घायल होने वाले लोग हों या सेना की गोली से मरने वाले खूंखार आतंकवादी, रॉय ने हमेशा आगे बढ़कर भारतीय सेना की कटु आलोचना की है. 

अरुंधति रॉय की 'अमानवीय' चुप्पी 

भारतीय समाज आलोचना को भी मानवीय पहलू से ही देखता रहा है. लेकिन अरुंधति रॉय के साथ सबसे बड़ी दिक्कत रही है कि जब वो व्यक्ति का चिंतन करने जाती हैं तो समाज को भूल जाती हैं. और समाज का चिंतन करने जाती हैं तो व्यक्ति को भूल जाती हैं. चिंतन के दौरान अगर व्यक्ति और समाज में सामंजस्य बैठा लिया जाये तो चिंतन सार्थक हो सकता है. तभी तो आज जब देश के 49 जवान शहादत को प्राप्त हुए हैं तो उनकी तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, और अतीत में भी ऐसा ही होता रहा है. क्या इन सैनिकों के बच्चे और परिवार नहीं हैं? इनके घरों में जो चीत्कार मचा है उसकी आवाज अरुंधति तक क्यों नहीं पहुंचती है? 

मानवीय चेतना को जगाने वाली लेखक 

बुकर पुरस्कार से सम्मानित अरुंधति रॉय को भारत के सबसे शानदार लेखकों में गिना जाता है, जो अपनी कहानियों में भी मानवीय पहलूओं को जोर देकर उठाती रही हैं. साम्प्रदायिकता और हिंसा के खिलाफ बोलने के कारण उनका चिंतन महात्मा गांधी से काफी प्रभावित दिखता है. लेकिन महात्मा गांधी ने सभी तरह के हिंसा का विरोध किया था. अरुंधति रॉय यहीं पर चूकती हुई दिखती हैं क्योंकि उनकी मानवता सेलेक्टिव नजर आती है जिसमें दूसरे पक्ष के लिए भावनात्मक जुड़ाव की कोई जगह नहीं है.

अरुंधति रॉय का मानवीय पहलू ऐसा प्रतीत होता है, जहां माँ अपने एक बेटे पर तो जान न्योछावर कर रही है लेकिन उसी वक्त अपने दूसरे बेटे को अपनी ममता से महरूम रखती है. लेकिन अरुंधति को ये समझना होगा कि भारतीय समाज में माँ की अवधारणा कभी ऐसी नहीं रही है. 

( अरुंधति रॉय से संपर्क साधने की कोशिश की गई, लेकिन कॉल का जवाब नहीं मिला)

Web Title: PULWAMA ATTACK: where is the Arundhati Roy? after coward attack of pakistan and Masood Ajhar

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