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Project Tiger: संरक्षण के रंग लाते प्रयासों से दोगुनी हुई बाघों की संख्या 

By अभिषेक कुमार सिंह | Updated: February 8, 2025 08:16 IST

Project Tiger: इंसानों की 8.2 अरब की आबादी वाली दुनिया में वन्यजीव, खासकर जंगलों में पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली मानी जाने वाली जीव प्रजाति पैंथरा टिग्रिस के विशालकाय जीव यानी बाघों के लिए बहुत कम जगह बची है.

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ठळक मुद्देभारत में बाघों की संख्या का बढ़ना एक सुखद सूचना है.संख्या यानी 3600 दुनिया भर के बाघों की आबादी का तीन चौथाई है. बाघों के इंसानों से संघर्ष की घटनाओं में कमी आई है.

Project Tiger: आधुनिक इतिहास में पहली बार 15 साल पहले 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में वन्यजीव संरक्षण विशेषज्ञ और कई प्रमुख राजनेता ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम के गठन के मकसद से एक मंच पर आए तो तय किया गया था कि 2022 तक दुनिया में बाघों की संख्या दोगुनी कर ली जाएगी. इनमें भारत ही ऐसा मुल्क साबित हुआ जो न सिर्फ इंसानों की आबादी के मामले में सर्वाधिक घनत्व वाला देश है, बल्कि बाघों की सबसे ज्यादा यानी 75 फीसदी संख्या भी आज यहीं है. यह एक विरोधाभासी उपलब्धि कही जाएगी. वजह यह कि इंसानों की 8.2 अरब की आबादी वाली दुनिया में वन्यजीव, खासकर जंगलों में पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली मानी जाने वाली जीव प्रजाति पैंथरा टिग्रिस के विशालकाय जीव यानी बाघों के लिए बहुत कम जगह बची है.

ऐसी गैर-मानव या जीव प्रजातियों का वजूद सिर्फ इसलिए जरूरी नहीं है क्योंकि उनका मानव-मूल्य से परे अस्तित्व का अधिकार है, बल्कि इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि ये जानवर हमारे समूचे पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन और अखंडता के लिए भी जरूरी हैं. भारत में बाघों की संख्या का बढ़ना एक सुखद सूचना है.

रिसर्च जर्नल साइंस में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार सिर्फ एक दशक में ही हमारे देश में बाघों की संख्या दोगुने तक बढ़ गई है. यह संख्या यानी 3600 दुनिया भर के बाघों की आबादी का तीन चौथाई है. अध्ययन के मुताबिक भारत के एक लाख 38 हजार 200 वर्ग किलोमीटर इलाके में आबाद ये बाघ उस इंसानी आबादी के करीब रहते हैं, जिनकी संख्या छह करोड़ है.

मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, कर्नाटक आदि राज्यों के संरक्षित इलाकों (टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क यानी वन्यजीव अभयारण्य) वाले इन क्षेत्रों में बाघों के लिए भोजन मिलना अपेक्षाकृत आसान है, लेकिन यह आश्चर्य का विषय है कि इस अवधि में बाघों के इंसानों से संघर्ष की घटनाओं में कमी आई है.

इसका मतलब यह निकलता है कि इन टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क के इर्दगिर्द जो मानव बस्तियां हैं, उनमें रहने वाले लोगों और बाघों ने एक-दूसरे के साथ खुद को अनुकूलित किया है. इसमें एक भूमिका पारिस्थितिकी तंत्र में वन्यजीवों की उपस्थिति संबंधी महत्ता को समझने और संघर्ष टालने की नीतियों को अपनाने की भी है.

प्रतीत होता है कि इस बारे में सरकार और वन्यजीव अभयारण्यों की ओर से चलाए गए जनजागरण अभियानों का असर हुआ है. लोगों ने यह समझा है कि कैसे बाघों के साथ संघर्ष की स्थिति नहीं बनने दी जाए. भले ही वन क्षेत्रों के नजदीक बसी बस्तियों में रहने वालों में से ज्यादातर खेती और पशु-पालन आधारित अर्थव्यवस्था पर निर्भर हैं.

लेकिन बाघ संरक्षण-जिसमें मुख्यतः इस जीव के निवास को संरक्षित करने के प्रयास किए गए, की नीतियों का असर वहां यह हुआ है कि इंसान और जंगली जीव के बीच टकराव की घटनाओं में कमी आई. उल्लेखनीय है कि बाघों को सबसे ज्यादा खतरा हम इंसानों से ही है. और इंसानों की समस्या तब बढ़ती है, जब जंगल का यह ताकतवर जीव अपनी रिहाइश छोड़कर खासतौर से भोजन की तलाश में मानव बस्तियों की ओर निकलता है.  

टॅग्स :भारत सरकारMadhya Pradeshमहाराष्ट्र
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