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ब्लॉग: देश और राजनीति के आगे चलने वाली मशाल थे प्रेमचंद

By राजेश कुमार यादव | Published: July 31, 2021 10:45 AM

कथा सम्राट प्रेमचंद की रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं. वे फीके और कमजोर नहीं पड़े बल्कि समय के साथ और भी ताकतवर होकर उभरे हैं.

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साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखने वाले प्रेमचंद का लेखन हिंदी साहित्य की एक ऐसी विरासत है, जो हिंदी के विकास की यात्रा को संपूर्णता प्रदान करता है. प्रेमचंद की रचनाओं में उनके गढ़े गए किरदारों के जरिये हम अपने आसपास होती हलचल को महसूस कर सकते हैं.

समाज को देखने का एक नजरिया जो प्रेमचंद अपनी रचनाओं से दे गए हैं, वह न जाने कितने ही बेआवाज लोगों की आवाज के तौर पर संकलित होकर हमारे सामने भयावह और मर्मदर्शी हकीकतें पेश करता है. भले ही प्रेमचंद के किरदार तकरीबन सौ बरस पहले गढ़े गए हों लेकिन इस दौरान ये बिल्कुल भी फीके और कमजोर नहीं पड़े हैं बल्कि और भी ताकतवर होकर उभरे हैं.

प्रेमचंद का कहना था कि साहित्यकार राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई नहीं, अपितु उसके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सच्चाई है. यह बात उनके साहित्य में उजागर हुई है. प्रेमचंद का समूचा रचनाकर्म ही अपने समय की राजनीतिक-सामाजिक हलचलों की बानगी देता है. ‘सोज-ए-वतन’ की कहानियों से लेकर ‘गोदान’ सरीखे उपन्यास और ‘महाजनी सभ्यता’ जैसे लेख इसके साक्षी हैं.

हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में शुमार प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय था. नबावराय के नाम से वे उर्दू में लिखते थे. इसी दौरान उनकी पांच कहानियों का संग्रह सोजे वतन (1909, जमाना प्रेस, कानपुर) छपा. इसमें उन्होंने देश प्रेम और देश की जनता के दर्द को लिखा. अंग्रेज शासकों को इसमें बगावत की बू आने लगी.

लिहाजा नवाब राय पकड़ लिए गए और उनके सोजे वतन कहानी-संग्रह की सभी प्रतियां तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने जब्त कर ली थीं. सरकारी कोप से बचने के लिए उर्दू अखबार ‘जमाना’ के संपादक मुंशी दया नारायण निगम ने नबाव राय के स्थान पर ‘प्रेमचंद’ उपनाम सुझाया. यह नाम उन्हें इतना पसंद आया कि नबाव राय के स्थान पर वे प्रेमचंद हो गए. मुंशी दया नारायण निगम ने ही प्रेमचंद की पहली कहानी  ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’  प्रकाशित की थी. प्रेमचंद को शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था.

प्रेमचंद ने हिंदी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया.   परिवार का पालन-पोषण करने के लिए प्रेमचंद अपनी किस्मत आजमाने 1934 में माया नगरी मुंबई भी गए थे. अजंता कंपनी में कहानी लेखक की नौकरी भी की, लेकिन साल भर का अनुबंध पूरा करने से पहले ही वापस घर लौट आए.

प्रेमचंद का कहानी संसार भारतीय समाज की विसंगतियों पर प्रहार करता है, उसकी जड़ता को तोड़ता है और नई राह सुझाता है. वस्तुत: प्रेमचंद का समूचा साहित्य एक संवेदनशील एवं जागरूक मन की उपज है. वे स्कूली शिक्षा के बजाय व्यावहारिक शिक्षा के पक्षधर थे. उनका मानना था कि अनुभवों से व्यक्ति सब कुछ अर्जित कर सकता है. हिंदी का कथा जगत प्रेमचंद का हमेशा ऋणी रहेगा.

टॅग्स :प्रेमचंद
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