मुंशी प्रेमचंद के पुण्यतिथि पर पढ़ें, उनके ये अनमोल वचन

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 7, 2022 05:35 PM2022-10-07T17:35:09+5:302022-10-07T17:39:50+5:30

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प्रेमचंद का आधिकारिक नाम धनपत राय था। प्रेमचंद आजादी से पहले शिक्षा विभाग में डिप्टी इंस्पेक्टर थे। 1921 में उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी और लेखन और प्रकाशन को अपना पूर्णकालिक पेशा बना लिया। गोदान, गबन, कर्मभूमि, निर्मला, सेवा सदन इत्यादि उपन्यासों समेत उन्होंने करीब ढाई सौ कहानियाँ लिखीं। हिन्दी के इस यशस्वी पुत्र ने 8 अक्टूबर 1936 को अंतिम साँस ली।

"देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता, उसके लिए सच्चा त्यागी होना आवश्यक है।"

''मैं एक मजदूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।"

"किसी कश्ती पर अगर फर्ज़ का मल्लाह न हो तो फिर उसके लिए दरिया में डूब जाने के सिवाय कोई चारा नहीं।"

"मासिक वेतन पूर्णमासी का चाँद होता है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है।"

"जिस बंदे को पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए मर्यादा और इज्जत ढोंग है।"

"जब किसान के बेटे को गोबर में से बदबू आने लग जाए तो समझ लो कि देश में अकाल पड़ने वाला है।"

"अन्याय में सहयोग देना, अन्याय करने के ही समान है।''