ब्लॉग: प्रेमचंद ने जब लिखी थी अमर कहानी ‘कफन’

By विवेक शुक्ला | Published: July 31, 2023 11:21 AM2023-07-31T11:21:23+5:302023-07-31T11:28:25+5:30

दिल्ली की जामिया पहुंचने से पहले मुंशी प्रेमचंद सेवासदन’ (1918), ‘रंगभूमि’ (1925), ‘कायाकल्प,’ (1926), ‘निर्मला’ (1927), ‘गबन’ (1931), ‘कर्मभूमि’ (1932) और अनेक कहानियां और उपन्यास लिख चुके थे।

modern Hindustani literature writer premchand when write story kafan | ब्लॉग: प्रेमचंद ने जब लिखी थी अमर कहानी ‘कफन’

फोटो सोर्स: Wiki Media Commons -(https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Unique_photo_of_Premchand.jpg)

Highlightsमुंशी प्रेमचंद ने अपने दोस्त के कहने पर कहानी ‘कफन’ लिखी थी। यह कहानी त्रैमासिक पत्रिका ‘रिसाला जामिया’ के दिसंबर, 1935 के अंक में छपी थी।ऐसे में ‘कफन’ का आगे चलकर हिंदी में लिप्यंतरण हुआ था।

मुंशी प्रेमचंद की अप्रैल, 1935 की दिल्ली यात्रा बेहद खास थी. वे बंबई (अब मुंबई) से वापस बनारस लौटते हुए दिल्ली में रुक गए थे. वे फिल्म नगरी के माहौल से अपने को जोड़ नहीं सके थे. उन्हें वहां पर आनंद नहीं आ रहा था इसलिए उन्होंने उसे अलविदा कह दिया था. 

प्रेमचंद दिल्ली आए तो यहां उनके मेजबान ‘रिसाला जामिया’ पत्रिका के संपादक अकील साहब थे. उन दिनों जामिया करोल बाग में थी. उसे अलीगढ़ से दिल्ली शिफ्ट हुए कुछ समय ही हुआ था. प्रेमचंद और अकील साहब मित्र थे. 

अपने दोस्त के कहने पर प्रेमचंद ने लिखी थी ‘कफन’

जामिया में प्रेमचंद से मिलने वालों की कतार लग गई. सब उनसे मिलना चाहते थे. वे तब तक ‘सेवासदन’ (1918), ‘रंगभूमि’ (1925), ‘कायाकल्प,’ (1926), ‘निर्मला’ (1927), ‘गबन’ (1931), ‘कर्मभूमि’ (1932) और अनेक कहानियां और उपन्यास लिख चुके थे. 

बहरहाल, जामिया कैंपस में एक बैठकी में अकील साहब ने प्रेमचंद से गुजारिश की कि वे यहां रहते हुए एक कहानी लिखें. ये बातें दिन में हो रही थीं. प्रेमचंद ने अपने मित्र को निराश नहीं किया. उन्होंने उसी रात को अपनी अमर कहानी ‘कफन’ लिखी.

‘कफन’ प्रेमचंद की आखिरी कहानी थी 

‘कफन’ मूल रूप से उर्दू में लिखी गई थी. कफन का जामिया में पाठ भी हुआ. उसे कई साहित्य प्रेमियों ने सुना. कहानी को पसंद किया गया. कफन मुंशी प्रेमचंद की अंतिम कहानी है, जिसके पात्र धीसू-माधव ऐसे बाप-बेटे हैं जो निठल्ले, काम चोर और नशेबाज हैं. इस फितरत के कारण उनका परिवार मुफलिसी की जद में जकड़ा होता है. 

तंगहाल माधव की जवान पत्नी बुधिया प्रसव पीड़ा में छटपटाती है और धनाभाव में घर के अंदर बिना इलाज के ही दम तोड़ देती है. बाप-बेटे गांव के लोगों से रुपए मांगकर कफन खरीदने शहर जाते हैं किंतु जेब में पैसा आने पर उनके कदम मयखाने की तरफ बढ़ जाते हैं. 

‘कफन’ को हिन्दी में कुछ छोटा कर दिया गया है

वे कफन की रकम शराब पीने और पूड़ी खाने में खर्च करते हैं. कफन कहानी त्रैमासिक पत्रिका ‘रिसाला जामिया’ के दिसंबर, 1935 के अंक में छपी थी. 8 अक्तूबर 1936 में उनकी मृत्यु हो जाती है. कफन का आगे चलकर हिंदी में लिप्यंतरण हुआ. 

लिप्यंतरण के दौरान कफन में कुछ बदलाव भी कर दिए गए. जामिया मिलिया इस्लामिया में लंबे समय तक पढ़ाते रहे प्रो.अब्दुल बिस्मिल्लाह बताते हैं कि कफन का केंद्रीय पात्र उर्दू में माधो है, हिंदी में माधव हो जाता. प्रेमचंद उर्दू में ‘लास’ लिखते हैं, हिंदी में ‘लाश’ हो जाती है. कफन को हिंदी में कुछ छोटा कर दिया गया है.
 

Web Title: modern Hindustani literature writer premchand when write story kafan

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