पीयूष पांडे का ब्लॉग: मौला मेरे, अब न कोरोना दीजो
By पीयूष पाण्डेय | Published: August 22, 2020 02:08 PM2020-08-22T14:08:21+5:302020-08-22T14:08:21+5:30
पीयूष पांडे
मेरे पड़ोसी गुप्ताजी दुखी हैं. सुशांत सिंह राजपूत मामले की जांच सीबीआई से कराने को लेकर महाराष्ट्र सरकार जितनी दुखी नहीं है, उससे कहीं ज्यादा गुप्ताजी दुखी हैं. ना, ना आप गलत समझ रहे हैं. गुप्ताजी सुशांत मामले को लेकर हुई राजनीति से दुखी नहीं हैं. देश में सभी लोग इस वक्त सुशांत के चक्कर में ही दुखी नहीं हैं. कुछ लोग अपनी वजह से भी दुखी हैं.
गुप्ताजी इसलिए परेशान हैं, क्योंकि उन्हें सोमवार से दफ्तर जाना है. उनकी ‘वर्क फ्रॉम होम’ रूपी छुट्टी खत्म हुई. ‘वर्क फ्रॉम होम’ व्यवस्था से उनके जीवन में एक अलग आनंद का आगमन हुआ था. एक तो दफ्तर आने-जाने का समय बचता था, जिस संचित ऊर्जा का इस्तेमाल वह बच्चों की यदा-कदा धुनाई आदि कार्यो में करते थे. कार के पेट्रोल की बचत हो रही थी. इसके अलावा दोपहर में खाने के बाद एक घंटे की नींद ऐसा सुख था, जिसे संभवत: ज्योतिष में राजयोग बताया गया है.
गुप्ताजी का मानना है कि ईश्वर के घर तो देर है अंधेर नहीं लेकिन उनके तात्कालिक ईश्वर उर्फ बॉस के घर सिर्फ अंधेरगर्दी है. बॉस ने फरमान सुना दिया है कि वर्क फ्राम होम खत्म. मैंने गुप्ताजी से कहा- ‘‘ये दिन तो आना ही था. आप इतने ज्यादा दुखी क्यों हैं?’’ वह ईमानदारी से बोले- ‘‘देखो, एक तो वर्क फ्राम होम के फायदे बहुत थे. एक बड़ा फायदा यह था कि बॉस की डांट साक्षात नहीं खानी पड़ती थी. जूम वगैरह पर डांटते भी थे, तो कई बार अपन ऑडियो ही बंद कर लेते थे. लेकिन, परेशानी की दूसरी वजह यह है कि कहीं बाहर जाने से कोरोना वायरस ने हमला कर दिया तो?’’
मैंने कहा- ‘‘ऐसा मत सोचिए. आपको कुछ नहीं होगा.’’ वो बोले- ‘‘कैसे नहीं सोचूं. ये पिद्दी सा वायरस पहली बार अपने स्वभाव में समाजवादी मालूम पड़ता है. मंत्नी-संत्नी-अभिनेता सबको चपेट में ले रहा है. और अब अपन इस वायरस का शिकार नहीं होना चाहते.’’ मैंने कहा- ‘‘आप ये अब शब्द पर क्यों जोर डाल रहे हैं. क्या पहले शिकार होना चाहते थे?’’
वे बोले- ‘‘अरे, अब हाल बहुत बुरा है. हर गली-नुक्कड़ पर चार-छह मरीज बंद बैठे हैं. कोई पूछने वाला नहीं है. पहले चरण में मरीज बनते ही पूछ शुरू होती थी. दोस्त-रिश्तेदार कुशलक्षेम पूछते थे. ठीक होने के बाद सोसाइटी में स्वागत समारोह होता था. फिर, अस्पताल से लौटकर आया मरीज उसी तरह मंच से भाषण देता था, जैसे चुनाव जीतकर आया नेता देता है. एक लिहाज से नेतागिरी की प्रैक्टिस होती थी. लेकिन, अब हाल बुरा है. अब एक मुहल्ले में इतने पूर्व पीड़ित हैं कि वे मिलकर कोरोना पीड़ित पार्टी बना सकते हैं. मेरी तो मौला से दुआ है कि अब वैक्सीन आने तक बचा ले बस.’’