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जलवायु परिवर्तन के कारण दुनियाभर में चुनौती, कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने की जरूरत

By शशांक द्विवेदी | Updated: December 14, 2021 18:51 IST

विपक्षी दलों ने सरकार से पूछा कि कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करने पर खर्च को कहां से पूरा किया जाएगा.

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ठळक मुद्देविकासशील और विकसित देशों की गतिविधियों के बीच उनकी क्षमता के हिसाब से आकलन किया जाता रहा है.भारत सरकार इस नये घटनाक्रम पर चिंतित है क्योंकि अमीर देशों और गरीब देशों के कार्बन उत्सर्जन में समानता नहीं हो सकती.अमीर देश इस बाबत गरीब देशों की आड़ में छिप रहे हैं, ऐसे में भारत को काफी सोच-समझकर और योजनाबद्ध तरीके से काम करना चाहिए.

ऐसा बहुत कम होता है कि जलवायु परिवर्तन पर संसद में चर्चा हो या बहस हो लेकिन इस बार संसद के शीतकालीन सत्र में जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न चुनौतियों पर चिंता व्यक्त करते हुए विपक्षी दलों ने कहा कि कार्बन उत्सर्जन एवं इससे जुड़े अन्य विषयों पर अमेरिका, चीन जैसे अमीर एवं विकसित देशों की प्रतिबद्धता व्यावहारिक धरातल पर कमजोर होते हैं.

 

ऐसे में भारत को अपनी प्रतिबद्धताओं पर काफी सोच-समझकर एवं योजनाबद्ध तरीके से काम करना चाहिए. विपक्षी दलों ने सरकार से पूछा कि कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करने पर खर्च को कहां से पूरा किया जाएगा. सदन में नियम 193 के तहत जलवायु परिवर्तन पर शुरू हुई चर्चा को आगे बढ़ाते हुए भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने  कहा कि सरकार को ग्लासगो में हुए सीओपी 26 सम्मेलन के समझौते पर काम करते हुए देश की जरूरतों और प्रतिबद्धताओं का ध्यान रखना चाहिए.

आरएसपी के एन.के. प्रेमचंद्रन ने कहा कि 1992 से लेकर 2021 के ग्लासगो सम्मेलन तक ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने के समझौते में आधारभूत सिद्धांत के तौर पर विकासशील और विकसित देशों की गतिविधियों के बीच उनकी क्षमता के हिसाब से आकलन किया जाता रहा है. ऐसे में भारत भी अमेरिका तथा चीन जैसे अमीर देशों की सूची में आ जाता है और उसकी सकारात्मक प्रतिबद्धता होने के बाद भी व्यावहारिक धरातल पर उनका पक्ष कमजोर होता है. प्रेमचंद्रन ने कहा कि क्या भारत सरकार इस नये घटनाक्रम पर चिंतित है क्योंकि अमीर देशों और गरीब देशों के कार्बन उत्सर्जन में समानता नहीं हो सकती.

उन्होंने कहा कि अमीर देश इस बाबत गरीब देशों की आड़ में छिप रहे हैं, ऐसे में भारत को काफी सोच-समझकर और योजनाबद्ध तरीके से काम करना चाहिए. पहले जलवायु परिवर्तन  राजनीतिक दलों के एजेंडे में नहीं था न ही इस गंभीर विषय पर संसद में व्यापक चर्चा होती थी लेकिन अब समय बदल रहा है और इस विषय पर राजनीतिक दल संजीदा हो रहे हैं. कुल मिलाकर यह एक अच्छा संकेत है कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर संसद में सकारात्मक चर्चा हो रही है जिसका फायदा देरसबेर देश को जरूर मिलेगा.

देश में कोरोना महामारी का प्रकोप थम रहा है, पहली और दूसरी लहर के बाद फिलहाल अर्थव्यवस्था की गिरी हुई सेहत तेजी से सुधर रही है, ऐसे में भारत के विकास एजेंडे को अब जलवायु परिवर्तन एवं रोजगार सृजन जैसे दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों की ओर ध्यान देना होगा.  इन दो लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अगला दशक निर्णायक सिद्ध होगा.

पहले लक्ष्य के लिए आवश्यक है कि हमें जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा स्नेतों पर अपनी निर्भरता पूरी तरह समाप्त करते हुए, आर्थिक गतिविधियों को मौसम के नए बिगड़ते पैटर्न के अनुकूल बनाना होगा. वहीं दूसरे लक्ष्य से जुड़ी तात्कालिकता भारत के युवाओं के लिए हर साल उच्च गुणवत्ता वाली लाखों नौकरियों के सृजन की जरूरत को रेखांकित करती है.

भारत को अपने युवाओं के लिए रोजगार के साधन उपलब्ध कराने की जरूरत है, जबकि उसके साथ ही ‘डीकाबरेनाइजेशन (कार्बन उत्सर्जन को कम करना)’ की तरफ हमें तेजी से मुड़ना होगा. इन चुनौतियों का सामना हमें डटकर करना होगा क्योंकि अगर हम ऐसा करने में नाकाम रहे तो इसका परिणाम विनाशकारी होगा, जहां बड़े स्तर पर प्रवासी गतिविधियां शहरों के लिए असंतुलनकारी सिद्ध होंगी और सामाजिक स्तर पर वर्ग संघर्ष बढ़ेगा. आने वाले सालों में भारत द्वारा उठाए गए कदम ये तय करेंगे कि उसका विकास मॉडल सतत रूप से सभी के लिए अच्छा होगा.

देश में  अर्थव्यवस्था का विस्तार हो रहा है और आबादी दिनोंदिन बढ़ रही है जबकि ऊर्जा खपत और ऊर्जा उत्पादन के बीच एक बड़ा अंतर है जिसे भरने की जरूरत है. सस्ती व सतत ऊर्जा की आपूर्ति किसी भी देश की तरक्की के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है. किसी भी देश के लिए ऊर्जा सुरक्षा के मायने यह हैं कि वर्तमान और भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति इस तरीके से हो कि सभी लोग ऊर्जा से लाभान्वित हो सकें, पर्यावरण पर कोई कु-प्रभाव न पड़े, और यह तरीका स्थाई हो, न कि लघुकालीन.

इस तरह की ऊर्जा नीति अनेकों वैकल्पिक ऊर्जा का मिश्रण हो सकती है जैसे कि, सूर्य ऊर्जा, पवन ऊर्जा, छोटे पानी के बांध आदि, गोबर गैस इत्यादि. भारत में इसके लिए पर्याप्त  संसाधन उपलब्ध हैं, और अक्षय ऊर्जा के तरीके ग्राम स्वराज्य या स्थानीय स्तर पर स्वावलंबन के सपने से भी अनुकूल हैं,  हमें न केवल अक्षय ऊर्जा बनाने के लिए पर्याप्त इंतजाम करना होगा, बल्कि सांस्थानिक परिवर्तन भी करना होगा जिससे  लोगों के लिए स्थायी और स्थानीय ऊर्जा के संसाधनों से स्थानीय ऊर्जा की जरूरत पूरी हो सके.

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