ब्लॉग: राजनीति का अखाड़ा न बने संसद, गरिमा का ध्यान रखना जरूरी

By राजकुमार सिंह | Published: July 31, 2023 02:28 PM2023-07-31T14:28:07+5:302023-07-31T14:28:32+5:30

संसदीय लोकतंत्र में दो ही पक्ष होते हैं: सत्तापक्ष और विपक्ष, और दोनों की सकारात्मक भूमिका से ही संसद चल सकती है, पर जब-जब संसदीय गतिरोध पर सवाल उठते हैं, दोनों एक-दूसरे पर उंगलियां उठाने लगते हैं.

Parliament should not become an arena of politics, it is necessary to take care of dignity | ब्लॉग: राजनीति का अखाड़ा न बने संसद, गरिमा का ध्यान रखना जरूरी

ब्लॉग: राजनीति का अखाड़ा न बने संसद, गरिमा का ध्यान रखना जरूरी

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और संसद लोकतंत्र का सर्वोच्च मंदिर, पर लगता है कि उसकी गरिमा और महत्ता का ध्यान उन्हें ही नहीं है, जो उसके माननीय सदस्य हैं. विपक्ष के हंगामे या अनुपस्थिति में कुछ जरूरी सरकारी विधेयक पारित करने के अलावा देशहित में कोई महत्वपूर्ण चर्चा संसद अपने मानसून सत्र में अभी तक नहीं कर पाई है.

स्वाभाविक सवाल होगा कि क्यों, पर जवाब उतना सरल नहीं है. संसदीय लोकतंत्र में दो ही पक्ष होते हैं: सत्तापक्ष और विपक्ष, और दोनों की सकारात्मक भूमिका से ही संसद चल सकती है, पर जब-जब संसदीय गतिरोध पर सवाल उठते हैं, दोनों एक-दूसरे पर उंगलियां उठाने लगते हैं. ग्रीष्मकाल से वर्षा ऋतु आ गई, लेकिन छोटा-सा खूबसूरत पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर मैतेई और कुकी जातीय हिंसा की आग में अभी भी जल रहा है.

मणिपुर इस आग में जल तो तीन मई से रहा है, पर सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों ही उस समय कर्नाटक की सत्ता के लिए चुनावी जंग में व्यस्त थे. दूसरे, संसद के बजट सत्र में एक-दूसरे पर निशाना साधने के लिए उनके तरकश में और तमाम राजनीतिक तीर थे. फिर अब मणिपुर को हिंसा की आग में जलते हुए ढाई महीने से ज्यादा हो गया है, और उसकी तपिश अंतरराष्ट्रीय मीडिया से लेकर दूसरे देशों की संसद तक में भारतीय छवि को झुलसा चुकी है.

सो, इसी साल होनेवाले पांच राज्यों के विधानसभा और अगले साल होनेवाले लोकसभा चुनाव के लिए एक-दूसरे को कठघरे में खड़ा करने का दोनों ही पक्षों को यह अनुकूल अवसर लगता है. इसीलिए विपक्ष मणिपुर हिंसा पर नियम 267 के तहत चर्चा और प्रधानमंत्री के बयान के लिए अड़ा रहा, जबकि सत्तापक्ष नियम 176 के तहत चर्चा और गृह मंत्री अमित शाह द्वारा जवाब के लिए ही तैयार था.

दोनों ही पक्षों के अपने-अपने तर्क हो सकते हैं, पर जब एक राज्य हिंसा की आग में जल रहा है, दो मणिपुरी महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने और उनसे बलात्कार का वीडियो वायरल होकर देश को दुनिया में शर्मसार कर चुका है, तब संसद में चर्चा को नियम के विवाद में उलझा कर क्या संदेश देना चाहते थे?

अगर संसद सीमावर्ती राज्य के ऐसे संवेदनशील हालात पर भी चर्चा नहीं करती और बजट समेत महत्वपूर्ण विधेयक बिना चर्चा ही पारित कर दिए जाते हैं, तब जन मानस में देर-सवेर यह स्वाभाविक सवाल उठेगा ही कि यह संसद किसकी खातिर है, किसके लिए है?

संसदीय कार्यवाही में व्यवधान की बीमारी बहुत पहले 1963 में ही दिखाई पड़ गई थी, लेकिन उसके निदान के प्रति गंभीरता के बजाय राजनीतिक इस्तेमाल की प्रवृत्ति का परिणाम है कि वह अब नासूर बनती नजर आ रही है.

Web Title: Parliament should not become an arena of politics, it is necessary to take care of dignity

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