Parliament Monsoon Session: जनहित के काम छोड़कर अखाड़ा न बने संसद, सत्र में 8 नए विधेयक
By प्रमोद भार्गव | Updated: July 19, 2025 05:19 IST2025-07-19T05:19:57+5:302025-07-19T05:19:57+5:30
मणिपुर वस्तु एवं सेवा कर संशोधन विधेयक-2025, सार्वजनिक न्यास प्रणाली (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक-2025, भारतीय प्रबंधन संस्थान संशोधन विधेयक-2025, पुरातत्व धरोहर स्थल और अवशेष (संरक्षण और देखरेख विधेयक-2025, राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक-2025 एवं राष्ट्रीय डोपिंग (कचरा) रोधी संशोधन विधेयक-2025 शामिल हैं.

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21 जुलाई से शुरू होने वाले मानसून सत्र को गर्माए रखने के लिए कांग्रेस समेत लगभग समूचे विपक्ष ने अपने-अपने हथियार भांज लिए हैं. गोया, यह आशंका कायम है कि विपक्षी दल संसद को ठप बनाए रखने में ही अपना समय जाया करेंगे. इस सत्र में लंबे समय तक चलने वाला हंगामा बिहार में मतदाता सूची के गहन परीक्षण को लेकर हो सकता है. चुनाव आयोग के इस बड़े प्रयास पर समूचा विपक्ष बड़े राजनीतिक संग्राम की तैयारी में जुटा है. लोकसभा चुनाव की तरह एक बार फिर से इस मुद्दे पर इंडिया गठबंधन के दल एकजुट होते दिखाई दे रहे है.
सरकार ने इस सत्र में 8 नए विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित कराने के लिए सूचीबद्ध किए हैं. इन विधेयकों में मणिपुर वस्तु एवं सेवा कर संशोधन विधेयक-2025, सार्वजनिक न्यास प्रणाली (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक-2025, भारतीय प्रबंधन संस्थान संशोधन विधेयक-2025, पुरातत्व धरोहर स्थल और अवशेष (संरक्षण और देखरेख विधेयक-2025, राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक-2025 एवं राष्ट्रीय डोपिंग (कचरा) रोधी संशोधन विधेयक-2025 शामिल हैं.
इन विधेयकों पर सहमति बनाए जाने की चर्चा से पहले विपक्ष चाहेगा कि पहलगाम हमले में गुप्तचर तंत्र की नाकामी, सैन्य ऑरेशन सिंदूर के दौरान विदेशी हस्तक्षेप, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मध्यस्थता के दावों के बीच सेना के अभियान को अचानक क्यों रोका गया जैसे मुद्दों पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा हो.
विपक्ष की मंशा मुद्दों की सच्चाई से कहीं ज्यादा सरकार को घेरना है. सत्तारूढ़ पक्ष इन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दे बताकर चर्चा से बचने की कोशिश कर सकता है. इन बड़े मुद्दों के अलावा न्यायाधीश यशवंत वर्मा के निवास में लगी आग के दौरान नकद धनराशि जलने के मामले में महाअभियोग लाने की पैरवी करने के साथ ओडिशा की छात्रा के साथ हुए अत्याचार जैसे मुद्दे भी सदन में गरमा सकते हैं.
यदि संसद में राजनीतिक गतिरोध बना रहता है और संसद अखाड़े में तब्दील होती रही तो उन विधेयकों और अधिनियमों पर बारीकी से बहस संभव नहीं है, जो देश की जनता की भलाई व नियमन के लिए कानून बनने जा रहे हैं. प्रत्येक सांसद का दायित्व बनता है कि वह विधेयकों के प्रारूप का गंभीरता से अध्ययन करे, जिससे यह समझा जा सके कि उसमें शामिल प्रस्ताव देश व जनता के हित से जुड़े हैं अथवा नहीं. लेकिन राज्यसभा और लोकसभा का यह दुर्भाग्य है कि ज्यादातर सांसद अधिनियम के प्रारूप पर चर्चा करने की बजाय, ऐसे मुद्दों को बेवजह बीच में घसीट लाते हैं,
जिनसे उनकी क्षेत्रीय राजनीति चमकती रहे. ऐसी स्थिति सत्तारूढ़ सरकार के लिए लाभदायी होती है, क्योंकि वह बिना किसी बहस-मुबाहिसे के ही ज्यादातर विधेयक पारित करा लेती है, जबकि विपक्ष सार्थक बहस करने की बजाय गाहे-बगाहे सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश में लगा रहकर संसद का समय जाया कर देता है. प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा की दृष्टि से यह स्थित देशहित में नहीं है.