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ब्लॉग: पाकिस्तान! हमें क्या, तुम्हें तबाह करेगा तालिबान

By विजय दर्डा | Updated: December 27, 2021 09:05 IST

अमेरिका जब हमले कर रहा था तब तालिबान के बड़े नेताओं को पाक ने बलूचिस्तान और वजीरिस्तान में छुपने की जगह दी थी और उसका शूरा संगठन भी बलूचिस्तान से ही काम कर रहा था. पंजशीर पर कब्जे में भी पाकिस्तान ने तालिबान की मदद की थी लेकिन तालिबान ने ये सब भुलाने में कोई देरी नहीं की.

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ठळक मुद्देपाक सेना और तालिबानी फौज के बीच गोलाबारी भी हुई है. इसके वीडियो भी सामने आ चुके हैं.तालिबान समर्थकों ने सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के खिलाफ जबर्दस्त जहर उगला है.वह इस बात से भी नाराज है कि अभी तक पाकिस्तान ने भी उसकी सरकार को मान्यता नहीं दी है.

पिछले कुछ दिनों में ऐसी घटनाएं हुई हैं जो इस बात का साफ इशारा कर रही हैं कि पाकिस्तान और तालिबान के बीच दरार पड़ चुकी है. तालिबान के सैनिकों ने दोनों देशों की सीमा पर लगे कंटीले तारों को उखाड़ फेंका है. 

इसके बाद खबरें तो यहां तक आ रही हैं कि पाक सेना और तालिबानी फौज के बीच गोलाबारी भी हुई है. इसके वीडियो भी सामने आ चुके हैं. हालांकि दोनों देशों ने चुप्पी साध रखी है लेकिन तालिबान समर्थकों ने सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के खिलाफ जबर्दस्त जहर उगला है.

आपको याद होगा कि अमेरिका जब अफगानिस्तान से आनन-फानन में रुखसत हुआ तो पाकिस्तान फूला नहीं समा रहा था. उसके प्रधानमंत्री इमरान खान ने तो तालिबान के कब्जे को अफगानों की आजादी बता दिया था. पूरे पाक को भरोसा हो गया था कि अब तो बस कुछ ही दिन की बात है... तालिबान की मदद से कश्मीर फतह कर लेंगे! 

लेकिन तालिबान ने यह कहकर उनके मंसूबे पर पानी फेर दिया कि कश्मीर तो भारत का आंतरिक मामला है. अपने इस बयान से तालिबान ने संकेत दे दिया था कि वह पाकिस्तान की गोद में खेलने वाला नहीं है. इसके बावजूद पाकिस्तान ने भरोसा नहीं खोया क्योंकि उसे लग रहा था कि तालिबान उसकी मदद को नहीं भूलेगा. 

अमेरिका जब हमले कर रहा था तब तालिबान के बड़े नेताओं को पाक ने बलूचिस्तान और वजीरिस्तान में छुपने की जगह दी थी और उसका शूरा संगठन भी बलूचिस्तान से ही काम कर रहा था. पंजशीर पर कब्जे में भी पाकिस्तान ने तालिबान की मदद की थी लेकिन तालिबान ने ये सब भुलाने में कोई देरी नहीं की.

पाकिस्तान को उम्मीद थी कि उसके कबायली इलाकों में जो तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) सक्रिय है उससे निपटने में तालिबान मदद करेगा लेकिन हुआ बिल्कुल उल्टा. सत्ता में आते ही तालिबान ने बिना किसी देरी के टीटीपी के उन लड़ाकों को रिहा कर दिया जो अफगानिस्तान की जेलों में बंद थे. इससे पाकिस्तान की चुनौतियां और बढ़ गईं. 

टीटीपी ने तत्काल पाकिस्तान के भीतर हमले बढ़ा दिए. ये वही संगठन है जिसने 2014 में पेशावर के एक स्कूल में कत्लेआम मचाया था और 140 बच्चे मारे गए थे. इसके बाद इमरान खान ने पर्दे के पीछे से तहरीके तालिबान से समझौते की बात की. संघर्ष विराम भी हुआ लेकिन वह एक महीने भी नहीं चला. तालिबान ने कोई मदद नहीं की. 

इसके बावजूद इमरान खान ने तालिबान को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी ताकि तालिबान उनकी गोद में बैठ जाए लेकिन उनकी हर कोशिश नाकाम रही. यहां तक कि इमरान खान ने इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) की बैठक भी बुलाई लेकिन उसके 57 सदस्य देशों में से केवल 20 के विदेश मंत्री ही इस्लामाबाद पहुंचे. अन्य देशों ने अपने प्रतिनिधि भेजे. 

इस मामले में दिलचस्प बात यह है कि जिस दिन इस्लामाबाद में बैठक थी ठीक उसी दिन भारत में भी अफगानिस्तान को लेकर एक बैठक हुई जिसमें ओआईसी के सदस्य ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने भाग लिया. इनमें से तीन देश ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान अफगानिस्तान के साथ सीमा साझा करते हैं. जाहिर सी बात है कि अफगानिस्तान के पड़ोसी पाकिस्तान के साथ नहीं हैं. वे भारत पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं.

इस घटना ने तालिबान को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि पाक उसके किसी काम का नहीं है. वह इस बात से भी नाराज है कि अभी तक पाकिस्तान ने भी उसकी सरकार को मान्यता नहीं दी है जबकि पिछले शासनकाल में उसने सबसे पहले मान्यता दी थी. तालिबान इस बात से भी वाकिफ है कि आर्थिक तौर पर पाकिस्तान उसकी कोई मदद नहीं कर सकता. वो बेचारा कटोरा लेकर खुद ही घूमता रहता है. दूसरों को क्या खिलाएगा? 

भारत ने जब अफगानिस्तान की मदद के लिए सड़क मार्ग से गेहूं और दवाइयां भेजने की बात की तो पाकिस्तान ने अड़ंगा लगा दिया कि भारतीय ट्रक सीधे वहां नहीं जाएंगे. भारत-पाक सीमा पर पाकिस्तानी ट्रकों में माल लादा जाएगा. इससे तालिबानियों को लगा कि कहीं पाकिस्तान सहायता की सामग्री में हाथ न मार दे. 

तालिबान को सत्ता में आने के बाद यह भी महसूस हुआ है कि उसकी जमीन पर पाक का कब्जा है. दरअसल दोनों देशों के बीच 2640 किलोमीटर लंबी सीमा है जिसे अफगानिस्तान नहीं मानता. उसका मानना है कि पाकिस्तान का कबायली इलाका उसका है.

तालिबान की सोच यह है कि पाकिस्तान के कबायली इलाकों पर भी उसका कब्जा हो. अफगान तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने साफ तौर पर कहा भी है कि पाकिस्तान की व्यवस्था इस्लाम पर आधारित नहीं है. हालांकि इसके आगे उन्होंने कुछ नहीं कहा लेकिन इरादे स्पष्ट हैं. 

तहरीके तालिबान उन कबायली इलाकों में इस्लामी शासन चाहता है. स्पष्ट है कि अफगान और पाक दोनों के ही तालिबान एक हैं. जाहिर सी बात है कि जिस तालिबान को पाकिस्तान ने पाला-पोसा, सोने के चम्मच से खिलाया, ताकतवर बनाया और बड़ा किया वही उसके लिए भस्मासुर साबित होने जा रहा है. अभी तो यही लगा रहा है कि तालिबान उसे तबाह कर देगा. खुदा खैर करे..!

एक बात और कहना चाहूंगा कि मुझे सबसे ज्यादा चिंता होती है पाक में रहने वाले मासूम और बेगुनाह लोगों की. उनका कोई दोष नहीं है. शासनकर्ता ही गलत नीतियों पर चलने लगे तो क्या होगा? 

और हां, मैं पाकिस्तान को एक सलाह देना चाहूंगा कि कश्मीर अपने दिमाग से निकाल दीजिए तो आपका भला हो जाएगा, आपकी अवाम का भला हो जाएगा..!

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