ब्लॉग: विपक्षी अंतर्विरोध ही एकता में सबसे बड़ा अवरोध
By राजकुमार सिंह | Published: June 21, 2023 02:52 PM2023-06-21T14:52:24+5:302023-06-21T14:53:43+5:30
अतीत में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर केसीआर और केजरीवाल तक कांग्रेस-भाजपा से समान दूरी की वकालत करते हुए क्षेत्रीय दलों का मोर्चा बनाने की कवायद करते रहे हैं.
विपक्षी एकता की कोशिशों की नई तारीख 23 जून है. 12 जून की पिछली पटना बैठक इसलिए नहीं हो पाई, क्योंकि मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन का शामिल हो पाना संभव नहीं था, पर 12 जून के बाद का घटनाक्रम भी विपक्षी एकता के लिए सकारात्मक तो नहीं रहा. पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के बैठक में शामिल नहीं होने की खबर आई और फिर बिहार में उन नीतीश कुमार के नेतृत्ववाले महागठबंधन में दरार पड़ गई, जो विपक्षी एकता के सूत्रधार बनाए गए हैं. बताया जा रहा है कि केसीआर कांग्रेस-भाजपा से समान दूरी के पक्षधर हैं.
कभी नैतिक आधार पर इस्तीफा देकर नीतीश ने जिन जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था, उन्हीं के बेटे संतोष सुमन ने बिहार मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर महागठबंधन में दरार उजागर कर दी है. मांझी के पीछे भाजपा बताई जा रही है. सवाल भी पूछा जा रहा है कि जिनसे बिहार नहीं संभल रहा, वह राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता कैसे सिरे चढ़ा पाएंगे?
स्वाभाविक ही इस घटनाक्रम पर सभी अपनी सुविधा और रणनीति के अनुरूप टिप्पणियां कर रहे हैं, लेकिन यह संकेत साफ है कि विपक्षी एकता की राह आसान नहीं है, और उसमें सबसे बड़ी बाधा इन दलों के राजनीतिक हितों एवं नेताओं के अहं का टकराव ही है. तृणमूल कांग्रेस, आप तथा टीआरएस से बनी बीआरएस से कांग्रेस के रिश्ते सहज नहीं हैं इसीलिए कांग्रेस ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को वार्ताकार की भूमिका सौंपी, जो भाजपा का साथ छोड़ महागठबंधन में आते ही न सिर्फ उसके नेताओं से मिले, बल्कि दोटूक कहा कि एक ही विपक्षी मोर्चा बनाकर भाजपा को हराया जा सकता है-और वह मोर्चा कांग्रेस के बिना नहीं बन सकता.
ध्यान रहे कि अतीत में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर केसीआर और केजरीवाल तक कांग्रेस-भाजपा से समान दूरी की वकालत करते हुए क्षेत्रीय दलों का मोर्चा बनाने की कवायद करते रहे हैं. वार्ताकार की भूमिका में नीतीश तमाम विपक्षी नेताओं से मिलते भी रहे हैं. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को अपवाद मान लें तो किसी ने भी उन्हें निराश नहीं किया. पटनायक ने नीतीश की मौजूदगी में ही कह दिया कि कोई चुनावी चर्चा नहीं हुई.
इसका अर्थ यह हर्गिज नहीं कि अंतर्विरोधों से ग्रस्त अन्य विपक्षी दलों में सब कुछ सामान्य है. नवीनतम उदाहरण पश्चिम बंगाल का है, जहां कांग्रेस के एकमात्र विधायक को भी तृणमूल ने अपने में दल में शामिल कर लिया. एकता की कवायद के बीच ऐसी सेंधमारी सकारात्मक संदेश तो नहीं देती.