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अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉग: अब आर या पार के मुहाने पर पहुंचा चुनाव

By Amitabh Shrivastava | Updated: May 18, 2024 10:11 IST

कांग्रेस, दोनों राकांपा, दोनों शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी के सर्वोच्च नेताओं ने अंतिम मुकाबले को प्रतिष्ठापूर्ण बना कर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. 

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ठळक मुद्देलोकसभा चुनाव के लिए मतदान पांचवें और महाराष्ट्र के आखिरी चरण में 13 लोकसभा सीटों पर होगा. मुंबई और आस-पास के क्षेत्र से जनप्रतिनिधि चुने जाएंगे. भाजपा को सही आधार नब्बे के दशक के आखिर से मिला और ऊंचाई केंद्र में सरकार बनने के बाद ही समझ में आई. 

लोकसभा चुनाव के लिए मतदान पांचवें और महाराष्ट्र के आखिरी चरण में 13 लोकसभा सीटों पर होगा. मुंबई और आस-पास के क्षेत्र से जनप्रतिनिधि चुने जाएंगे. किंतु राज्य की 35 सीटों पर मतदान हो चुकने के बावजूद 13 निर्वाचन क्षेत्रों पर सभी दलों ने विशेष ध्यान केंद्रित कर लिया है. कांग्रेस, दोनों राकांपा, दोनों शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी के सर्वोच्च नेताओं ने अंतिम मुकाबले को प्रतिष्ठापूर्ण बना कर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. 

राज्य के इतिहास में यह पहला ही मौका है कि प्रधानमंत्री से लेकर विपक्ष के नेताओं तक सभी एक दिन, एक ही अवसर पर मुंबई में आमने-सामने आए. इस चुनौती का नतीजा भले ही कुछ निकले या न निकले, किंतु राज्य की राजनीति को भविष्य की दिशा जरूर दिख रही है, जिसमें कुछ महीनों बाद विधानसभा चुनावों को आगे बढ़ते देखा जाएगा.

महाराष्ट्र में विदर्भ से आरंभ हुआ लोकसभा चुनाव पश्चिम महाराष्ट्र से मराठवाड़ा, खानदेश होता हुआ उत्तर महाराष्ट्र के मार्ग से मुंबई पहुंचा है. अब अंतिम लड़ाई आर या पार की है. राज्य में हो रहा यह चुनाव केवल लोकसभा के लिए ही नहीं हो रहा है. इसमें अनेक दलों का भविष्य भी दांव पर लगा हुआ है. 

इस बार विभाजित शिवसेना के दो भाग शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और शिवसेना (एकनाथ शिंदे), टूटी राकांपा के दो हिस्से राकांपा (अजित पवार) और राकांपा (शरद पवार) आपस में एक-दूसरे से मुकाबला कर रहे हैं. 

एक तरफ जहां कांग्रेस से 17 सीटों पर गठबंधन कर उद्धव ठाकरे की पार्टी 21, शरद पवार का दल 10 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भाजपा से 28 सीटों पर तालमेल कर शिवसेना के शिंदे गुट को 15, राकांपा के अजित पवार गुट को राष्ट्रीय समाज पार्टी की एक सीट मिलाकर पांच सीटें मिली हैं. 

इन सीटों के बंटवारे के आधार पर दोनों टूटी शिवसेना पिछले चुनाव की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं. वहीं टूटी दोनों राकांपा पिछले आम चुनाव की तुलना में नुकसान की स्थिति में हैं. अब चुनाव परिणामों के बाद दोनों की जीत-हार विभाजन के फैसले पर मुहर लगाएंगे. उसके साथ ही गठबंधन के परिणामों की समीक्षा भी होगी. अगले तीन-चार माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की रूपरेखा तय होगी. 

आपसी लाभ-हानि की समीक्षा होगी. यही वजह है कि दोनों ही गठबंधन एक साथ मिलकर अपनी पूरी ताकत झोंकने में लगे हैं, ताकि परिणामों पर कोई आंच न आने पाए. यदि राजनीतिक इतिहास देखा जाए तो कांग्रेस और शिवसेना दोनों ने ही अपनी जमीन को हमेशा मजबूत रखा है. भाजपा को सही आधार नब्बे के दशक के आखिर से मिला और ऊंचाई केंद्र में सरकार बनने के बाद ही समझ में आई. 

किंतु कांग्रेस और शिवसेना दोनों ने विभाजन का लगातार सामना किया. कांग्रेस से अलग-अलग होकर बने दल हर बार गठबंधन में साथ रहे या फिर विलय तक जा पहुंचे. वहीं शिवसेना का विभाजित अंग कभी पार्टी में विलय की नौबत तक नहीं पहुंचा. ताजा समीकरणों में शिवसेना टूट को लेकर किसी किस्म की सुलह या फिर विलय की संभावना नहीं बनती है, लेकिन राकांपा की टूट के भविष्य का अंदाज फिलहाल लगाया नहीं जा सकता है. 

इसी कारण शिवसेना उद्धव गुट, राकांपा शरद पवार गुट और कांग्रेस अपनी क्षमताओं का जनमानस के मन-मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभाव से आकलन कर रहे हैं. यही नहीं, इसमें कांग्रेस और भाजपा भी अपने गठबंधन के भविष्य के परिणामों की समीक्षा करने पर मजबूर हैं. राज्य की राजनीति में आम तौर पर दो ही गठबंधन सामने रहे हैं, जिनमें से एक धर्म निरपेक्ष चेहरे के तौर पर रहा और दूसरा भगवा छवि के साथ दिखाई दिया. 

वर्तमान समय में दोनों ही छवि को बनाए रखने की कोशिश में हैं. किंतु एक तरफ जहां महागठबंधन राकांपा के अजित पवार गुट के साथ है, तो महाविकास आघाड़ी शिवसेना जैसे कट्टर हिंदुत्व की भावना को लेकर चलने वाले दल के रूप में है. लोकसभा चुनाव में इन सभी दलों को विपरीत विचारधारा के साथ चलने के परिणामों से दो-चार होना पड़ा. भविष्य में विधानसभा चुनाव में भी यही भावना असर करेगी. 

यदि राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो इंडिया गठबंधन व्यापक स्वरूप में लोकसभा के चुनाव की सीमा तक तो संदेश देने के लिए बेहतर है, लेकिन जब बात विधानसभा चुनाव की आएगी तो महाविकास आघाड़ी को अपने तीन दलों के प्रदर्शन के आधार पर ही चुनाव मैदान पर उतरना होगा. उन्हें राष्ट्रीय या अन्य राज्यों के दलों की उपस्थिति का कोई लाभ नहीं होगा. 

किंतु महागठबंधन के साथ यह नहीं होगा, क्योंकि उसके साथ जुड़े दल महाराष्ट्र के ही हैं और उन्हें अपनी ताकत का अंदाज लोकसभा चुनाव में मिल जाएगा. किंतु सुधार के लिए अभी समय अधिक नहीं मिल पाएगा. फिलहाल लोकसभा चुनाव के प्रचार के बहाने एकजुटता का संदेश जनमानस तक पहुंचाने की कोशिश जारी है, जो कहीं न कहीं शक्ति प्रदर्शन ही है. माना जा रहा है कि मुंबई का ऐतिहासिक समागम राजनीति की दिशा स्पष्ट करेगा. 

पहली बार दोनों ठाकरे ने एक-दूसरे के खिलाफ आमने-सामने का मंच संभाला. मगर मोर्चों और गठबंधन का आधार जमीनी स्तर पर तय होगा. राजनीति संगठन की नींव से चलती है. वर्तमान में दलीय विभाजन से सालों-साल के संगठनात्मक ढांचे को नुकसान पहुंचा है, जिसकी भरपाई आसान नहीं है. उसके लिए मेहनत काफी करनी होगी. 

पहली परीक्षा तो पूरी होने जा रही है. उसके परिणाम भी जल्द ही सामने आएंगे, लेकिन आर या पार करने के इरादे सही नतीजे मजबूत आधार से ही मिल पाएंगे. इस बात को सभी दल समझेंगे और अपने बिखराव के कारणों की समीक्षा कर जनमत का संरक्षण करेंगे.

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