शशांक द्विवेदी का ब्लॉगः रिचार्ज होने वाली दुनिया के लिए नोबल

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 15, 2019 01:03 PM2019-10-15T13:03:55+5:302019-10-15T13:03:55+5:30

यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास से जुड़े अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन गुडइनफ, बिंघमटन में स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क के एम. स्टेनली व्हिटिंघम तथा जापान के असाही कासेई कॉर्पोरेशन एंड मीजो यूनिवर्सिटी के अकीरा योशिनो को नोबल पुरस्कार से नवाजा जाएगा.

Nobel prize in chemistry awarded for work on lithium-ion batteries | शशांक द्विवेदी का ब्लॉगः रिचार्ज होने वाली दुनिया के लिए नोबल

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Highlightsहाल ही में जीवाश्म ईंधन का वर्चस्व खत्म करने और पर्यावरण की बेहतरी की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए तीन वैज्ञानिकों को लीथियम आयन बैटरी के विकास पर काम के लिए रसायनशास्त्न का नोबल पुरस्कार देने का ऐलान किया गया. इन हल्की, पुन: रिचार्ज हो सकने वाली और शक्तिशाली बैटरियों का इस्तेमाल अब मोबाइल फोन से लेकर लैपटॉप और इलेक्ट्रॉनिक वाहनों आदि सभी में होता है. 

शशांक द्विवेदी

हाल ही में जीवाश्म ईंधन का वर्चस्व खत्म करने और पर्यावरण की बेहतरी की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए तीन वैज्ञानिकों को लीथियम आयन बैटरी के विकास पर काम के लिए रसायनशास्त्न का नोबल पुरस्कार देने का ऐलान किया गया. इन हल्की, पुन: रिचार्ज हो सकने वाली और शक्तिशाली बैटरियों का इस्तेमाल अब मोबाइल फोन से लेकर लैपटॉप और इलेक्ट्रॉनिक वाहनों आदि सभी में होता है. 

यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास से जुड़े अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन गुडइनफ, बिंघमटन में स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क के एम. स्टेनली व्हिटिंघम तथा जापान के असाही कासेई कॉर्पोरेशन एंड मीजो यूनिवर्सिटी के अकीरा योशिनो को नोबल पुरस्कार से नवाजा जाएगा. एकेडमी के महासचिव गोरान हैनसॉन ने कहा कि यह पुरस्कार एक ‘रिचार्ज होने वाली दुनिया’ को लेकर है. 

समिति ने  कहा कि लीथियम आयन बैटरियों ने हमारी जिंदगियों को बदल दिया है और इन वैज्ञानिकों ने एक बेतार, जीवाश्म ईंधन मुक्त समाज की बुनियाद रखी. लीथियम आयन बैटरी के विकास की शुरुआत 1970 के दशक में तेल संकट के दौरान हुई थी जब व्हिटिंघम ऐसी ऊर्जा तकनीकों पर काम कर रहे थे जो पेट्रोल-डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन से मुक्त हों.

व्हिटिंघम ने 1970 के दशक में पहली लीथियम बैटरी बनाई थी. गुडइनफ ने इस बैटरी की क्षमता को अगले दशक में दोगुना कर दिया. योशिनो ने इस बैटरी में से शुद्ध लीथियम को बाहर कर दिया जिसके कारण इसका इस्तेमाल सुरक्षित हो गया. लीथियम आयन बैटरी रिचार्जेबल बैटरी श्रृंखला की ही एक कड़ी है. इसमें मुख्यत: तीन तत्वों का संयोग होता है. 

नेगेटिव इलेक्ट्रोड, पॉजिटिव इलेक्ट्रोड और इलेक्ट्रोलाइट. बैटरी में कार्बन नेगेटिव इलेक्ट्रोड के लिए उपयोग होता है. जबकि आक्साइड का उपयोग पॉजिटिव इलेक्ट्रोड के लिए किया जाता है. वहीं लीथियम साल्ट इलेक्ट्रोलाइट के लिए होता है. लीथियम बैटरी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वोल्टेज की जरूरत के अनुसार इसके संयोग को बढ़ा और घटा सकते हैं. वहीं इसे एक छोटे से पैकेट में भी बना सकते हैं. यही वजह है कि मोबाइल, लैपटॉप और टैबलेट जैसे इलेक्ट्रानिक्स डिवाइस में धड़ल्ले से इसका प्रयोग हो रहा है. बोलचाल की भाषा में इसे ली-ऑन बैटरी कहा जाता है.

कुल मिलाकर लीथियम आयन बैटरी की खोज और विकास तकनीक की दुनिया में बहुत युगांतकारी कदम है जिसने न सिर्फ लोगों की जिंदगी को आसान बनाया है बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी यह सहायक है.

Web Title: Nobel prize in chemistry awarded for work on lithium-ion batteries

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