NIA searches 26 locations in 5 states: नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी (एनआईए) ने शनिवार को तड़के से देर शाम तक देश के पांच राज्यों के कुल 26 स्थानों पर छापेमारी कर कुछ लोगों से पूछताछ की. ऐसा बताया गया है कि केंद्रीय जांच एजेंसी को आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और उसके सहयोगी संगठन के संबंध खंगालने के दौरान बड़ी सफलता मिली. किंतु गिरफ्तारी के नाम पर शेख सुल्तान सलाहउद्दीन अयूबी उर्फ अयूबी नामक एक व्यक्ति को दबोच लिया गया. उसके खिलाफ जांच एजेंसी के पास काफी महत्वपूर्ण सबूत थे.
वह आतंकी संगठन से जुड़ा था और कुछ लोगों से मिलकर बड़ी साजिश को अंजाम देने में जुटा था. जांच एजेंसी का कहना है कि वह देश विरोधी और आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के मार्फत कई युवाओं की भरती कराने में भी जुटा था. किंतु इस कार्रवाई का आश्चर्यजनक पहलू यह है कि देश भर में चली कार्रवाई में केवल एक व्यक्ति पुष्ट जानकारी के आधार पर गिरफ्तार किया जा सका.
जबकि अन्य स्थानों पर हिरासत में लिए व्यक्तियों को नोटिस देकर बाइज्जत छोड़ना पड़ा. एनआईए ने कार्रवाई स्थानीय पुलिस के आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) और आरक्षी पुलिस बल के साथ की. आम तौर पर एनआईए की कार्रवाइयों का इतिहास है कि वे त्रुटिहीन होती हैं. वे गिरफ्तारी से सजा तक पहुंचती हैं.
मगर ताजा देशव्यापी अभियान में कुछ हाथ नहीं लगना गुप्तचर सूचनाओं पर सवाल उठाता है. हालांकि एनआईए प्राप्त सूचनाओं की अच्छी तरह से पुष्टि कर ही कोई कदम उठाती है, लेकिन जम्मू-कश्मीर से लेकर दिल्ली, असम, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में छापेमारी का परिणाम कुछ नहीं निकलना एनआईए अधिकारियों के लिए भी चुनौतीपूर्ण स्थिति है.
उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद एनआईए ने आतंकी आर्थिक सहायता और साजिश के एक बड़े मामले में देशभर में यह व्यापक छापेमारी की. उसने विधिवत मामला दर्ज कर कार्रवाई की, जिसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर के बाहर आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के प्रभाव पर रोक लगाना था.
फिर भी अनेक स्थानों पर हवा में तीर चल गया. यह तय है कि अपुष्ट सूचनाओं के आधार पर छापेमारी से समाज में असंतोष बढ़ने के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा. स्पष्ट रूप से इस तरह की कार्रवाइयों से व्यक्ति और उसके परिवार का जीवन आहत होता है. इसलिए छापों का ठोस आधार आवश्यक है. व्यापक छानबीन होनी जरूरी है. केवल कार्रवाई की खानापूर्ति कर पीठ थपथपाना अनुचित है.
आतंकवाद में आर्थिक सहायता एक जटिल विषय बन चुका है, जिसमें अक्सर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संबंध सामने आते हैं. इसलिए आतंकवाद की आर्थिक मदद की तह तक पहुंचे बिना कार्रवाई का समुचित आधार तैयार करना बहुत आसान नहीं है. इसी कारण पहली देशव्यापी कार्रवाई के सीमित परिणामों पर संतोष करना आज एक मजबूरी ही है. केंद्रीय जांच एजेंसी के लिए भी यह एक असहज स्थिति ही है.