एन. के. सिंह का ब्लॉगः देश को फिर चाहिए महात्मा गांधी जैसी शख्सियत

By एनके सिंह | Updated: November 24, 2018 04:19 IST2018-11-24T04:19:02+5:302018-11-24T04:19:02+5:30

हमारे पास नैतिक गुणांक (मॉरल कोशेंट) मापने का कोई तरीका नहीं होता. नतीजा यह होता है कि अपने सेवा काल के तीस साल बाद जब कोई सीबीआई डायरेक्टर किसी 28 साल के सेवाकाल के अफसर पर भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज करता है और दूसरे दिन वह जूनियर अफसर अपने सीनियर के खिलाफ भी भ्रष्टाचार का मामला लाता है तो पता चलता है कि इस हमाम में बगैर कपड़े के केवल वे ही नहीं, वह लोग भी हैं जो संविधान में निष्ठा की शपथ लिए हुए हैं. 

N. K. Singh's blog: country needs a person like Mahatma Gandhi | एन. के. सिंह का ब्लॉगः देश को फिर चाहिए महात्मा गांधी जैसी शख्सियत

एन. के. सिंह का ब्लॉगः देश को फिर चाहिए महात्मा गांधी जैसी शख्सियत

किसी शोधकर्ता की गणना के अनुसार इस दुनिया में  तीन करोड़ तीस लाख कानून हैं. लेकिन हत्या, बलात्कार तो छोड़िए, भ्रष्टाचार और सामाजिक और व्यक्तिगत चरित्न से जुड़े अपराध बढ़ते गए हैं. शिक्षा बढ़ी, आय बढ़ी, जीवन प्रत्याशा बढ़ी तो अपराध और अनैतिकता भी बढ़े. दरअसल अपराध का समाज में तत्कालीन नैतिक मानदंडों के प्रति आग्रह या दुराग्रह से सीधा रिश्ता होता है और अगर इन नैतिक मानदंडों की अनदेखी होगी तो समाज अपराध से मुक्ति नहीं पा सकेगा. कानून और उसे अमल में लाने वाला तंत्न तो मात्न एक छोटा सा पक्ष है. दूसरी गलत अवधारणा यह है कि आर्थिक विपन्नता अपराध को जन्म देती है.

हाल के दौर में विजय माल्या से ले कर नीरव मोदी तक को देखें, शीर्ष पर बैठे अधिकारियों और राजनेताओं पर लगे आरोपों को देखें तो लगता है सत्ता की शक्ति और अनैतिकता तथा उससे पैदा हुए अपराध के बीच समानुपातिक संबंध है यानी जितना ताकतवर उतना अनैतिक. शायद उस समुद्री डाकू को जिसे सिकंदर ‘महान’ ने बंदी बनाया, यह बात मालूम थी. सिकंदर ने दरबार में फैसला करते समय जब उससे पूछा कि डकैती और हत्याएं क्यों करते हो तो उसने जवाब में कहा, ‘‘जहांपनाह, करते तो आप भी यही हैं लेकिन चूंकि आप बड़ी सेना के सहारे पूरी जमीन और देश हड़प लेते हैं तो आपको ‘महान’ राजा कहा जाता है जबकि हम कुछ लोग मिलकर छोटी -छोटी लूट करते हैं तो हमें डाकू कहा जाता है.’’

अंग्रेजों के जमाने से ही चली आ रही व्यवस्था के तहत हम ज्ञान की लिखित परीक्षा लेकर लोक सेवा के नौकरशाहों यानी लोक सेवा के अधिकारी जैसे आईएएस और आईपीएस चुनते हैं. केंद्रीय लोक सेवा आयोग प्रतियोगी परीक्षा में उनसे यह पूछता है कि गरीबी नापने का  महालनोबिस काल में फार्मूला क्या था और एन. सी. सक्सेना तक आते-आते इसमें क्या-क्या परिवर्तन हुए. इंटरव्यू बोर्ड में भी बड़े-बड़े जानकार उससे ब्राजील के विकास मॉडल पर चर्चा करते हैं लेकिन यह जानने की कोशिश नहीं होती कि यह नौकरी में आने के कितने समय बाद भ्रष्ट हो जाएगा और विकास के लिए आए पैसों को भ्रष्ट तरीके से हड़प कर देश को और गरीब बनाता रहेगा.

हमारे पास नैतिक गुणांक (मॉरल कोशेंट) मापने का कोई तरीका नहीं होता. नतीजा यह होता है कि अपने सेवा काल के तीस साल बाद जब कोई सीबीआई डायरेक्टर किसी 28 साल के सेवाकाल के अफसर पर भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज करता है और दूसरे दिन वह जूनियर अफसर अपने सीनियर के खिलाफ भी भ्रष्टाचार का मामला लाता है तो पता चलता है कि इस हमाम में बगैर कपड़े के केवल वे ही नहीं, वह लोग भी हैं जो संविधान में निष्ठा की शपथ लिए हुए हैं. 

हमने चोरी पकड़ने के लिए पुलिस बनाई, फिर उसकी चोरी पकड़ने के  लिए विजिलेंस डिपार्टमेंट बनाया. जब इससे भी कुछ नहीं हुआ तो आजादी मिलने के 14 साल बाद पंडित नेहरू ने संथानम समिति की रिपोर्ट पर अमल करते हुए देश में भ्रष्टाचार रोकने के लिए केंद्रीय सतर्कता (विजिलेंस) आयोग बनाया और इसे कानूनी रूप से मजबूत किया. फिर इन सबकी चोरी पकड़ने के लिए भ्रष्टाचार निरोधक कानून, 1988 बनाया. फिर इसे तीन बार संशोधित कर ताली बजाई कि बहुत मजबूत हो गया है और इसमें प्रावधान रखा कि जो घूस देगा उसे भी सजा- मानो घूस कोई बहुत खुश हो कर देता है.

गणतंत्न बनने के लगभग 36 साल बाद तत्कालीन प्रधानमंत्नी राजीव गांधी ने कहा विकास के एक रुपए में मात्न 15 पैसा जमीन पर पहुंचता है. सन 2011 तक आते-आते अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होते हैं और पूरा देश उनके साथ हो जाता है. अबकि उनका फार्मूला था ‘मजबूत लोकपाल’ यानी पटेल के प्रशासनिक ‘फौलादी ढांचे’ को भ्रष्टाचार रूपी जंग से ढहने से बचाने के लिए एक और संस्था. अन्ना शायद यह भूल गए कि सिस्टम के खिलाफ सिस्टम में ही एक और संस्था उसी सिस्टम का हिस्सा बन जाएगी और उसमें केवल अरविंद केजरीवाल पैदा हो सकेगा. 

सीबीआई के दो शीर्ष अधिकारियों में जब भ्रष्टाचार के आरोप-प्रत्यारोप के प्रहार चले तो देश को एक बार फिर झटका लगा. यह झटका विश्वास की बुनियाद में भूकंप की मानिंद था जब 18 साल की आईपीएस की नौकरी वाले एक डीआईजी एम. के. सिन्हा ने पूरे फौलादी ढांचे की कलई खोल कर रख दी.
    
दरअसल नैतिकता का पाठ दो संस्थाएं पढ़ाती हैं - मां की गोद और प्राइमरी का शिक्षक (मास्साब). मां ने बच्चे को ‘आया’ को थमा दिया या ‘डे केयर’ में डाल कर वेतन कमाने पहुंच गई ताकि अबकी पड़ोसी की तरह वह भी बड़ी गाड़ी ले सके और शिक्षक वेतन आयोग की रिपोर्ट का इंतजार करने लगा. लिहाजा समाज की फैक्ट्री में अच्छे लोग शायद बनना बंद हो गए. आज जरूरत है किसी गांधी की जिसकी मकबूलियत सौ साल पहले की तरह इतनी हो कि लोग उसमें ही अपना ‘विधाता’ देखें. शायद इस गांधी पर सत्ता के कुप्रभाव बेअसर रहेंगे और वह लंगोटी पहने कुटिया से नैतिकता का संदेश दे सकेंगे.

Web Title: N. K. Singh's blog: country needs a person like Mahatma Gandhi

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