एन. के. सिंह का ब्लॉग: केंद्र-राज्य संबंधों में आड़े न आए राजनीति

By एनके सिंह | Updated: January 4, 2020 05:43 IST2020-01-04T05:43:20+5:302020-01-04T05:43:20+5:30

अगर केंद्र सरकार यह रुख अपनाती है तो विपक्ष को यह आरोप लगाने का मौका मिलता है कि केंद्र की भाजपा सरकार उन करोड़ों लोगों को बताना चाहती है कि तुमने मुझे वोट नहीं दिया लिहाजा हम बदला लेंगे. शायद इसी की प्रतिक्रिया है कि 13 राज्यों ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू करने से मना कर दिया है.

N. K. Singh blog: Politics should not come in the way of center-state relations | एन. के. सिंह का ब्लॉग: केंद्र-राज्य संबंधों में आड़े न आए राजनीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)

राज्यों को विकास के पैरामीटर्स पर आईना दिखाने के लिए ‘गवर्नेस इंडेक्स’ शुरू करना मोदी सरकार का इस वर्ष शुरू होने वाला एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है. लेकिन वहीं जब केंद्र सरकार गैर-भाजपा शासित चार बड़े राज्यों- महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, केरल और दिल्ली की झांकियां आगामी गणतंत्न दिवस समारोह पर रोक देती है तो यह सहकारी संघवाद (को-ऑपरेटिव फेडरलिज्म) के उस वादे को मुंह चिढ़ाता है जो सन 2014 में सरकार बनाने के बाद प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने किया था. प्रश्न यह है कि क्या केंद्र सरकार इस स्तर पर आकर गैर-भाजपा शासित राज्यों के खिलाफ प्रतिक्रिया देगी? भारत की अर्ध-संघीय संवैधानिक व्यवस्था है जिसमें केंद्र के पास ज्यादा शक्ति सन्निहित की गई है.

अगर केंद्र सरकार यह रुख अपनाती है तो विपक्ष को यह आरोप लगाने का मौका मिलता है कि केंद्र की भाजपा सरकार उन करोड़ों लोगों को बताना चाहती है कि तुमने मुझे वोट नहीं दिया लिहाजा हम बदला लेंगे. शायद इसी की प्रतिक्रिया है कि 13 राज्यों ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू करने से मना कर दिया है. भाजपा के ही 13 में से 10 मित्न दलों ने भी इसके खिलाफ बयान दिया है. क्या यह केंद्र सरकार का फर्ज नहीं था कि इस कानून को लाने के पहले सभी राज्यों और सहयोगी दलों को विश्वास में ले? केंद्र को यह भी सोचना होगा कि उसकी तमाम योजनाएं तभी सफल हो सकती हैं जब राज्यों की सरकारें उन्हें उत्साह से अमल में लाएं.

एक अन्य सकारात्मक प्रयास में प्रधानमंत्नी ने जननेता और पूर्व-प्रधानमंत्नी अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर ‘अटल भूजल योजना’ शुरू करते हुए लोगों से जल-संरक्षण को भी उसी गंभीरता से लेने की बात कही जिस गंभीरता से उन्होंने स्वच्छता अभियान को लिया था. साथ ही किसानों से पीढ़ियों से चले आ रहे सिंचाई के तरीके को, जो पानी की बर्बादी वाला है, बदल कर केवल पौधों की जड़ में पानी डालने की अपील की. यह प्रयास प्रधानमंत्नी की दूरदर्शी सोच का परिणाम है. लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू देखें. लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना शुरू करते हुए सांसदों से आग्रह किया था कि अपने-अपने क्षेत्न के कम से कम एक गांव को आदर्श गांव के रूप में विकसित करें और सन 2016 तक दो गांव और सन 2019 तक पांच गांव.

आज पांच साल के बाद भी स्वयं मोदी के संसदीय क्षेत्न वाराणसी में जिस जयापुर गांव को गोद लिया गया था उसमें वादे के अनुसार अभी भी न तो अस्पताल बना, न बालिका इंटर कॉलेज का अता-पता है न ही बजबजाते नालों से छुटकारा है. यहां के युवाओं ने स्किल इंडिया के तहत ट्रेनिंग तो कर ली है पर रोजगार तो छोड़िये, प्रमाणपत्न ही नहीं मिला है. अन्य सांसदों की इस स्कीम को लेकर ऐसी उदासीनता है कि सन 2014 में 500 लोकसभा सांसदों ने ग्राम तो चुन लिए पर विकास तो दूर, सन 2019 तक आते-आते केवल 208 गांव ही रह गए हैं. जबकि इस काल में कुल 4500 गांवों को आदर्श बना देना था.

दूसरी हरित क्रांति की घोषणा मोदी सरकार ने पहली बार सरकार में आने के साथ ही की थी. सन 2017 में अगले पांच साल में किसानों की आय दूनी करने की घोषणा हुई जो लगातार चुनाव-मंचों से आज तक गूंजती रही है. लेकिन हुआ उल्टा, उनकी आय लागत के मुकाबले लगातार घटती गई है. केवल दो साल में कैसे कुछ बजटीय प्रावधानों के साथ इसे दूना किया जा सकेगा यह कल्पना से परे है. ताजा आंकड़ों के अनुसार केवल महाराष्ट्र में विगत नवंबर माह में 300 किसानों ने आत्महत्या की यानी रोज दस किसान.                        
पूर्व प्रधानमंत्नी अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म-दिवस ‘गुड गवर्नेस डे’ (सुशासन दिवस) पर इस साल से मोदी सरकार ने ‘गुड गवर्नेस इंडेक्स’ (जीजीआई) जारी करने का सिलसिला शुरू किया है. राज्यों को तीन वर्गो - बड़े राज्य, पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्य व केंद्र-शासित राज्य - में रखा गया है और इनके परफॉर्मेस का आकलन कृषि और संलग्न क्षेत्न, वाणिज्य एवं उद्योग, मानव संसाधन विकास यानी शिक्षा, जन स्वास्थ्य, जन-अंतरसंरचना और जन-सुविधाएं, आर्थिक शासन, समाज कल्याण तथा विकास, न्याय एवं जन सुरक्षा, पर्यावरण तथा जन-केंद्रित शासन पर होना है. केवल इस साल के मार्च तक उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर केंद्र सरकार की इस सूची के वर्ग में सबसे निचले पायदान पर हैं बिहार, गोवा, उत्तर प्रदेश और झारखंड. मध्य प्रदेश नौवें और छत्तीसगढ़ चौथे स्थान पर है.

ये सभी विश्लेषण-काल तक ज्यादातर  भाजपा के शासन में रहे हैं और इनमें से कुछ तो दशकों तक. बिहार वैसे तो सम्मिलित अंक पर सबसे नीचे के चार राज्यों में यानी 15 वें स्थान पर है लेकिन न्याय एवं जन-सुरक्षा में सबसे नीचे 18 वें स्थान पर. झारखंड और उत्तर प्रदेश क्र मश: 15 वें और 16 वें स्थान पर हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार में न्याय और जन-सुरक्षा सहित कुल विकासहीनता की यही स्थिति साल-दर-साल बनी रही है.

केंद्र में भी चूंकि वही दल है इसलिए यह संदेश भी जाता है कि केंद्र सरकार और उसके मुखिया इन राज्यों पर प्रभावी अंकुश लगा इन्हें विकासोन्मुख करने में असमर्थ हैं. बिहार का मामला तो समझा जा सकता है जहां जदयू की सरकार में भाजपा ‘नियंत्नक’ की स्थिति में नहीं है लेकिन देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भी अगर विकास रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है और न्याय एवं जन-सुरक्षा गर्त में है तो केंद्र के भी मानव विकास के आंकड़े प्रभावित हो रहे हैं. दूसरा, इन राज्यों में जनता के पास विकल्प के रूप में बहुत से राजनीतिक दल उपलब्ध हैं. लिहाजा प्रधानमंत्नी को सख्त संदेश देना होगा.

Web Title: N. K. Singh blog: Politics should not come in the way of center-state relations

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