जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक लाख करोड़ रुपए की शोध, विकास और नवोन्मेष (आरडीआई) योजना को मंजूरी दी है. यह शोध व विकास में निवेश के लिए बड़े प्रोत्साहन के रूप में है. इस योजना के अंतर्गत देश के उद्योग जगत को 20,000 करोड़ की राशि इस वर्ष वितरित की जाएगी. इसका बड़ा हिस्सा कम ब्याज या शून्य ब्याज दर पर कई फंड ऑफ फंड्स और सीधे कंपनियों को दिया जाएगा. खास बात यह भी है कि यह कोष अनुसंधान विकास के लिए अनुदान प्रदान करेगा तथा नवाचार के व्यवसायीकरण के लिए धन देगा.
गौरतलब है कि भारत में सरकार और निजी क्षेत्र का शोध व विकास में निवेश पिछले लंबे समय से चिंता का विषय रहा है. अभी भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में शोध व विकास की हिस्सेदारी करीब 0.70 फीसदी है. यह हिस्सेदारी अमेरिका, जापान और चीन जैसे देशों की 2 से 5 फीसदी हिस्सेदारी के मुकाबले बहुत कम है. साथ ही देश के तेज विकास के लिए भी बहुत कम है. अब नई योजना से शोध के रणनीतिक और उभरते क्षेत्रों को आवश्यक जोखिम पूंजी प्राप्त होगी. इस योजना का दायरा ऊर्जा सुरक्षा से लेकर क्वांटम कम्प्यूटिंग, रोबोटिक्स, जैव प्रौद्योगिकी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तक होगा. अब आरडीआई में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने के लिए कम या शून्य ब्याज दर पर लंबी अवधि के लिए धन या रीफाइनेंसिंग की सुविधा मुहैया की जाएगी.
उल्लेखनीय है कि विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) द्वारा प्रकाशित ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (जीआईआई) 2024 की रैंकिंग में 133 अर्थव्यवस्थाओं में भारत ने 39वां स्थान हासिल किया है. यह कोई छोटी बात नहीं है कि जो भारत जीआईआई रैंकिंग में 2015 में 81वें स्थान पर था, अब वह 39वें स्थान पर पहुंच गया है. जीआईआई रैंकिंग में भारत की प्रगति दुनियाभर में रेखांकित हो रही है.
यदि हम बौद्धिक सम्पदा, शोध एवं नवाचार से जुड़े अन्य वैश्विक संगठनों की रिपोर्टों को भी देखें तो पाते हैं कि भारत इस क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहा है. अमेरिकी उद्योग मंडल ‘यूएस चेंबर्स ऑफ कॉमर्स’ के ग्लोबल इनोवेशन पॉलिसी सेंटर के द्वारा जारी वैश्विक बौद्धिक संपदा (आईपी) सूचकांक 2024 में भारत दुनिया की 55 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में 42वें स्थान पर है. इस समय भारत में आरएंडडी पर जिस तरह जीडीपी का करीब 0.70 प्रतिशत ही व्यय हो रहा है, उसे रणनीतिपूर्वक बढ़ाया जाना होगा.
हमें अपने औद्योगिक ढांचे में बदलाव लाना होगा, अपनी कंपनियों को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए बदलाव को आकार देना होगा, अपनी कंपनियों पर प्रतिस्पर्धी होने का दबाव बनाने के तहत शोध और नवाचार के इस्तेमाल पर अधिक ध्यान देना होगा. भारत का उद्योग-कारोबार जगत अपनी जीडीपी का केवल 0.3 फीसदी आंतरिक शोध एवं विकास में लगाता है, जबकि वैश्विक औसत 1.5 फीसदी है.
हमारी 10 सबसे कामयाब कंपनियां अपने लाभ का महज 2 फीसदी शोध एवं विकास पर व्यय करती हैं, जबकि अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी में सफल कंपनियां भारत की तुलना में अपने लाभ का बहुत अधिक भाग शोध एवं विकास में लगाती हैं.