एकता के महाकुंभ की तरह अब विकसित भारत का महायज्ञ
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 4, 2025 06:42 IST2025-03-04T06:42:24+5:302025-03-04T06:42:28+5:30
एक महायज्ञ के लिए एकता के महाकुंभ में एक हो गए. एक भारत-श्रेष्ठ भारत का यह चिरस्मरणीय दृश्य करोड़ों देशवासियों में आत्मविश्वास के साक्षात्कार का महापर्व बन गया

एकता के महाकुंभ की तरह अब विकसित भारत का महायज्ञ
किरण चोपड़ा
हाल ही में मैंने महाकुंभ को लेकर प्रधानमंत्री मोदी का आर्टिकल पढ़ा और समझा कि हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री महाकुंभ के सफलतापूर्वक सम्पन्न होने पर सभी देशवासियों को बहुत सकारात्मक तरीके से संदेश दे रहे हैं. जिन्होंने कुंभ नहाया, जो प्रयागराज गए या जिन्होंने अनुभव किया उनके मुख से भी महाकुंभ के स्नान, दर्शन यात्रा के बारे में सुना तो लगता है प्रधानमंत्रीजी का यह संदेश जरूरी था.
मैं महाकुंभ में स्नान करने तो नहीं जा सकी परंतु 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में उपस्थित रही और वहां जो देवभक्ति और देशभक्ति देखी उसका वर्णन करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. अभी भी वह दृश्य याद कर रोम-रोम प्रफुल्लित हो गया, क्या इंतजाम थे. देश के संत, प्रमुख लोग वहां थे परंतु मोदी जी एक भक्त और सेवक की तरह आए और उनका भाषण कमाल का था.
यही नहीं मोहन भागवत जी का सम्बोधन भी अंतरात्मा को छूने वाला था. मोदी जी ने ठीक लिखा कि प्रयागराज का यह तीर्थ आज हमें एकता, समरसता की प्रेरणा देता है. हर श्रद्धालु बस एक ही धुन में था-संगम में स्नान. मां गंगा, यमुना, सरस्वती की त्रिवेणी पर हर श्रद्धालु उमंग, ऊर्जा और विश्वास से भरा था. बिल्कुल सही, 13 जनवरी से मेरा कई बार प्रोग्राम बना परंतु कैंसल हुआ.
यह भी भाग्य की बात होती है. इस महाकुंभ ने संख्या के हिसाब से रिकॉर्ड बनाया और जो नहीं जा सके (मेरे जैसे) वो भी भावविभोर होकर जुड़े रहे. जो गया वहां से मेरे लिए जल लेकर आया तो मैंने और मेरे परिवार ने उस जल से स्नान किया. वाकई में कुंभ स्नान जैसा अनुभव हो रहा था. मुझे याद है जब प्रधानमंत्री काशी चुनाव के लिए गए थे तो उन्होंने कहा था ‘मां गंगा ने मुझे बुलाया है’, उसमें उनका एक दायित्व बोध भी था, जैसे कि उन्होंने मां स्वरूपा नदियों की पवित्रता, स्वच्छता को लेकर गंगा, यमुना, सरस्वती को लेकर अभियान शुरू किया है.
यही नहीं माेदी जी ने अपने लेख में लिखा है कि योगी जी के नेतृत्व में शासन, प्रशासन और जनता ने मिलकर इस एकता के महाकुंभ को सफल बनाया. केन्द्र या राज्य कोई शासक या प्रशासक नहीं था, हर कोई श्रद्धा से भरा सेवक था. वाकई में वहां का एक-एक पुलिसकर्मी, सफाई कर्मी, आईएएस आफिसर, नाविक, वाहन चालक, भोजन बनाने वाले - सबका सहयोग था, तभी सफल आयोजन था.
एकता के महाकुंभ में हर श्रद्धालु चाहे वो गरीब हो या सम्पन्न, बाल हो या वृद्ध, देश से आया हो या विदेश से, गांव का हो या शहर का, पूरब से हो या पश्चिम से, उत्तर से या दक्षिण से हो, किसी भी जाति का हो, किसी भी विचारधारा का हो, सब एक महायज्ञ के लिए एकता के महाकुंभ में एक हो गए. एक भारत-श्रेष्ठ भारत का यह चिरस्मरणीय दृश्य करोड़ों देशवासियों में आत्मविश्वास के साक्षात्कार का महापर्व बन गया. अब इसी तरह हमें एक होकर विकसित भारत के महायज्ञ के लिए एकजुट होना है.