ब्लॉग: शरद पवार के राजनीतिक जीवन की अग्निपरीक्षा

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: July 4, 2023 02:33 PM2023-07-04T14:33:02+5:302023-07-04T14:34:08+5:30

महाराष्ट्र की राजनीति में निर्णायक शक्ति रखने वाले मराठा समुदाय में इस वक्त उनके कद का कोई नेता नहीं है. मराठा वोट बैंक पर शरद पवार की पकड़ जबर्दस्त है. शरद पवार को अपने जनाधार का एहसास है. इसीलिए उन्होंने भतीजे की बगावत के दूसरे ही दिन से कार्यकर्ताओं से संपर्क करने के लिए सघन दौरा शुरू कर दिया है

Maharashtra The litmus test of Sharad Pawar's political career | ब्लॉग: शरद पवार के राजनीतिक जीवन की अग्निपरीक्षा

फाइल फोटो

Highlightsमहाराष्ट्र राजनीति में मचा घमासानशरद पवार के भतीजे अजित पवार ने की बगावत महाराष्ट्र राजनीति में बड़ी पार्टी एनसीपी पर गहराया संकट

मराठा दिग्गज तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार अपने भतीजे अजित पवार की बगावत के बाद पार्टी में विभाजन के फलस्वरूप अपने राजनीतिक जीवन की संभवत: सबसे कठिन चुनौती का सामना कर रहे हैं.

उम्र के इस पड़ाव पर पार्टी में नियंत्रण को लेकर बगावत से पवार मुश्किल में जरूर फंसे हैं लेकिन वह दृढ़संकल्प के धनी हैं. कुशल रणनीतिकार हैं तथा उनमें अद्भुत संगठन क्षमता है.

दूसरी ओर अजित पवार की बगावत और सरकार में शामिल हो जाने से सत्तारूढ़ भाजपा के चेहरे खिल जरूर गए होंगे लेकिन अगले वर्ष होने वाले लोकसभा तथा विधानसभा के चुनाव में महाराष्ट्र में उसके लिए कई पेंच खड़े हो सकते हैं.

फिलहाल भाजपा के लिए सबसे बड़ी राहत यह है कि सत्ता संघर्ष की कानूनी प्रक्रिया में अगर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके साथी विधायक अपात्र घोषित कर भी दिए गए, तब भी अजित पवार गुट के साथ आ जाने से राज्य सरकार सुरक्षित रहेगी. भारतीय राजनीति में विद्रोह के कारण राजनीतिक दलों का टूटना कोई नई बात नहीं है.

जब कांग्रेस स्वतंत्रता संग्राम लड़ रही थी, तब भी उसमें दरारें पड़ीं. स्वतंत्रता के बाद भी कांग्रेस ने फूट का सामना किया. समाजवादी पार्टी में अखिलेश ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव के खिलाफ विद्रोह किया था. अविभाजित आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम के संस्थापक तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री एनटीआर के विरुद्ध उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने पार्टी तोड़ दी थी.

मोदी सरकार में शामिल अपना दल मां और बेटी के बीच टकराव के कारण दो हिस्सों में बंट गया. सी.एन. अन्ना दुरई के निधन के बाद तमिलनाडु में द्रमुक दो फाड़ हो गई और लोकप्रिय अभिनेता एमजी रामचंद्रन ने अन्ना द्रमुक का गठन कर लिया. पवार ने सन्‌ 1978 और 1999 में उन्होंने अपनी मूल पार्टी को तोड़ा था.

अजित पवार की रविवार की बगावत ठीक उसी प्रकार की थी, जैसी पिछले वर्ष जून में एकनाथ शिंदे ने की थी और शिवसेना को तोड़ दिया था. राज ठाकरे ने भी शिवसेना से बगावत की थी. अजित पवार के पास संगठन कौशल है लेकिन उनका जनाधार बारामती के बाहर कुछ खास नहीं है. दूसरी ओर शरद पवार मराठों, दलितों, ओबीसी तथा मुसलमानों के बीच काफी लोकप्रिय हैं.

महाराष्ट्र की राजनीति में निर्णायक शक्ति रखने वाले मराठा समुदाय में इस वक्त उनके कद का कोई नेता नहीं है. मराठा वोट बैंक पर शरद पवार की पकड़ जबर्दस्त है. शरद पवार को अपने जनाधार का एहसास है. इसीलिए उन्होंने भतीजे की बगावत के दूसरे ही दिन से कार्यकर्ताओं से संपर्क करने के लिए सघन दौरा शुरू कर दिया है. पवार को भरोसा है कि जमीन से जुड़े राकांपा कार्यकर्ता एवं पार्टी का 23 वर्षों में बना वोट बैंक उनसे अलग नहीं होगा.

दूसरी ओर भविष्य में अजित पवार की राह आसान नहीं रहेगी. उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती मराठा समाज का विश्वास जीतने की होगी. साथ ही शरद पवार के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए पूरी शक्ति लगानी पड़ेगी. भाजपा से हाथ मिला लेने के कारण अल्पसंख्यक समुदाय का विश्वास अर्जित करना उनके लिए टेढ़ी खीर होगा. मराठा समाज की सहानुभूति का शरद पवार पार्टी नए सिरे से खड़ी करने के लिए निश्चित रूप से पूरा फायदा उठाएंगे.

अजित पवार को अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित रखने के लिए भाजपा की बैसाखी थामनी ही पड़ेगी क्योंकि जनाधार के बिना वे संगठन को खड़ा नहीं कर सकते. जहां तक भाजपा की बात है, एकनाथ शिंदे और अजित पवार दोनों को अगले वर्ष होने वाले लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में संतुष्ट करना उसके लिए आसान नहीं होगा.

दोनों नेताओं के साथ अपनी मूल पार्टी छोड़कर आए 70-80 विधायकों को भाजपा अगले विधानसभा चुनाव में अपने नेताओं के दावे की उपेक्षा कर टिकट कैसे दे देगी. यदि वह ऐसा करती है तो पार्टी में असंतोष भड़केगा. लोकसभा चुनाव में भी अजित और शिंदे कई सीटों पर दावा जताएंगे. इस चुनौती से भी भाजपा को निपटना होगा.

इस वक्त भाजपा को सबकुछ अच्छा लग रहा है लेकिन चुनाव आने पर उसके सामने भी गंभीर राजनीतिक संकट पैदा हो जाए तो आश्चर्य नहीं. जहां तक शरद पवार का संकट है, उनमें भतीजे की बगावत से उत्पन्न संकट से निपटने एवं राकांपा को नए सिरे से खड़ा करने की पूरी क्षमता है.

Web Title: Maharashtra The litmus test of Sharad Pawar's political career

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