Maharashtra-Jharkhand Chunav 2024 Dates: महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों के लिए तारीखों की घोषणा बुधवार कोे निर्वाचन आयोग ने कर दी. इसके साथ ही पक्ष-विपक्ष के बीच शक्ति-परीक्षण का एक और दिलचस्प दौर शुरू हो गया. सितंबर-अक्तूबर में ही हरियाणा तथा जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला था. हरियाणा में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर थी तो जम्मू-कश्मीर में भाजपा का मुकाबला कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस के गठबंधन से था. हरियाणा में अकेले चुनाव लड़ने की बहुत बड़ी कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ी जबकि जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के साथ हाथ मिलाने के शानदार नतीजे सामने आए. महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावों पर पूरे देश की निगाहें रहेंगी.
निश्चित रूप से झारखंड से ज्यादा उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र उन महत्वपूर्ण प्रदेशों में से है जहां विधानसभा चुनाव के नतीजे देश की राजनीति की दशा एवं दिशा बदलने की क्षमता रखते हैं. महाराष्ट्र में मुकाबला भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के बीच जोर-आजमाइश के रूप में नहीं देखा जा रहा है.
यहां भाजपा शिवसेना के शिंदे गुट तथा राकांपा को तोड़कर बने राकांपा (अजित गुट) के साथ मिलकर सरकार चला रही है और इन तीनों दलों का गठबंधन महायुति के नाम से जाना जाता है. उसका मुकाबला इंडिया गठबंधन के ही तीन दलों कांग्रेस, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना और मराठा दिग्गज शरद पवार द्वारा मूल रूप से स्थापित राकांपा को मिलाकर बनी महाविकास आघाड़ी से है.
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में भी दोनों गठबंधनों के मुकाबले को महायुति बनाम महाविकास आघाड़ी के रूप में देखा गया था और विधानसभा चुनाव में भी उसी रूप में देखा जाएगा. पिछले पांच वर्षों में महाराष्ट्र ने बहुत ज्यादा राजनीतिक उथल-पुथल देखी है. भाजपा से उद्धव ठाकरे की नहीं बनी और उन्होंने कांग्रेस तथा राकांपा से हाथ मिलाकर महाविकास आघाड़ी सरकार बना ली.
यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी. वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने शिवसेना को तोड़कर अपनी अलग शिवसेना बना ली और उनके बाद अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार को झटका देते हुए अपनी अलग राकांपा बना ली. शिंदे की बगावत ने उद्धव सरकार का तख्ता पलट दिया तो अजित पवार के चाचा का साथ छोड़कर भाजपा से हाथ मिला लेने के फलस्वरूप एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार काफी मजबूत हो गई. इन सब घटनाक्रमों के बाद लोकसभा चुनाव भाजपा, शिंदे तथा अजित पवार की महायुति और कांग्रेस, उद्धव तथा शरद पवार के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गए थे.
विशेषकर उद्धव तथा शरद पवार के सामने यह साबित करने की चुनौती थी कि उनके दलों का वोट बैंक शिंदे व अजित पवार के साथ नहीं गया है. लोकसभा चुनाव की कसौटी पर शरद पवार तथा उद्धव ठाकरे खरे उतरे तथा महाविकास आघाड़ी ने 48 में से 30 लोकसभा सीटें जीत लीं. सांगली की एक सीट कांग्रेस के बागी विशाल पाटिल ने जीत ली.
विधानसभा चुनाव में महाविकास आघाड़ी के सामने लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराने की कठिन चुनौती है तो सत्तारूढ़ महायुति में भाजपा के सामने अपना खोया जनाधार वापस पाने और अजित पवार एवं एकनाथ शिंदे के सामने अपने राजनीतिक वजूद को मजबूती से स्थापित करने की अग्निपरीक्षा है.
एक बात तय है कि लोकसभा चुनाव का माहौल अब नहीं रहा और महायुति ने अपनी खोई जमीन पाने के लिए कड़ी मेहनत की है. ‘लाडकी बहीण’ जैसी योजनाएं तथा भाजपा नेताओं, अजित पवार व एकनाथ शिंदे का सतत जनसंपर्क इसके उदाहरण हैं. महाविकास आघाड़ी भी जमीनी यथार्थ को समझती है क्योंकि उसके पास शरद पवार जैसा अनुभवी तथा रणनीति बनाने में माहिर नेता है.
आघाड़ी की तीनों पार्टियों के नेता भी लगातार जनसंपर्क में जुटे हैं. ये चुनाव उद्धव तथा शरद पवार की राजनीतिक साख के लिहाज से भी निर्णायक साबित हो सकते हैं. चुनाव में हार-जीत तो चलती रहती है लेकिन राजनेताओं से जनता की अपेक्षा है कि चुनाव के दौरान लोकतंत्र की गरिमा को बनाए रखें और एक आदर्श चुनाव का उदाहरण पेश करें.